अमित: ये कहानियाँ 1997 में पश्चिम चंपारण ज़िले में गाँव की मीटिंग में सुनीं थीं। स्कूल के कमरे में एक दिवसीय मीटिंग के लिये इकट्ठे

युवाओं की दुनिया
अमित: ये कहानियाँ 1997 में पश्चिम चंपारण ज़िले में गाँव की मीटिंग में सुनीं थीं। स्कूल के कमरे में एक दिवसीय मीटिंग के लिये इकट्ठे
किसान आंदोलन को अगर और मज़बूत करना है तो किसान आंदोलन में सक्रिय उत्तर भारत के किसानों को भारत के आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन से संबंधित मुद्दों को समझना ही पड़ेगा।
अरविंद अंजुम: आप जानते ही हैं कि पिछले 9 महीने से भी ज़्यादा समय से किसान तीन कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य
प्रशीक वानखेड़े: मेरे शहर में भी एक मंदिर बना दो, हर मुश्किल का समाधान वही हैं। नष्ट होती फसलों का, किसानों के टूटते हौंसलों का,
अजय कनोजे: किसान, बेहद मेहनतकश और अपने काम के प्रति ईमानदार होता है, यह आप सभी जानते हैं। ठंड की चादर ओढ़कर, फटी एड़ियों को
अमित: आज देश में चल रहे किसान आंदोलन को तीन महीने से ज़्यादा हो गये। इस बीच खेती की समस्यओं पर और किसानों के मुद्दे