प्रदीप:
आज जिनके हाथों में हल है,
मत भूलना उन्हीं के हाथों में तुम्हारा कल है।
जो अपने हाथों से पूरे देश को खिलाता है,
ये उन किसानो का बल है।
तुम कह रहे हो कॉन्ट्रॅक्ट फार्मिंग से,
किसान होगा मालामाल है।
पर छोटे किसानों को बनाकर मज़दूर,
ठेकेदारों को मलिक बनाने की तुम्हारी चाल है।
ऊपर से तुम हमे ही बोलो, ये प्रोपोगेंडा वाले है,
तरकीब तो तुम्हारी ये भी बेमिसाल है।
एक्ट के हिसाब से तो आलू-प्याज भी,
अब इसेंशियल कमोडिटी नही है।
क्यूंकि अब बिजनेस मैन, ठेकेदार बोलेंगे,
सिर्फ वही बात तो सही है।
विकास प्रकल्पों और बांध के नाम तुम,
आदिवासियों का कर रहे हो कत्लेआम।
तुम्हारे लिये उनकी जिंदगी का है,
सिर्फ कुछ चंद रुपया का दाम।
एक-एक करके सारा देश बेचने पे तुले हो,
ये देश तुम्हारे बाप की जायदाद नहीं, क्या ये बात तुम भूले हो।
विकास का नारा जो तुम लगा रहे हो,
उसमे ना कोई सुर है, ना कोई ताल है।
अमीर तो मजे से सोने के चम्मच में खा रहा है,
और गरीब आज भी बेहाल है।
हमे खलिस्तानी, टेरेरिस्ट बता कर,
तुमने देशभक्ती का ओढ़ा हुआ नकाब है।
तुम कह दो चाहे कितना भी इसे देशद्रोह,
पर यही तो असली इंकलाब है।
साथ चलना साथी, गुज़रेगी ज़ुल्मों की ये शाम,हौंसला रखना, कदम से कदम बढ़ाना,
क्योंकि मज़दूर और किसानों के इस देश में,
आयेगा नया ज़माना… आयेगा नया ज़माना…
