गोरख पांडे की बेबाकी और दुस्साहस उनकी कविताओं की पहचान है

सिद्धार्थ:  गोरख पाण्डे हिन्दी साहित्य के उन कुछ गिने चुने नामों में से हैं जिन्होंने कविता लेखन की प्रचलित शैलियों से इतर, एक अलग अंदाज़

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गढ़वाली भाषा और गढ़वाली लोगों की आवाज़ – नरेंद्र सिंह नेगी

सिद्धार्थ:  ये बात साल 1994 की है, मेरी उम्र तब 9 साल की थी और मैं मेरे परिवार के साथ श्रीनगर गढ़वाल में रहता था।

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कैसे खत्म कर दिए गए लैटिन अमेरिका के मूलनिवासी

सिद्धार्थ: 9 अगस्त को भारत सहित दुनिया भर में विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया। लेकिन आदिवासी हैं कौन? ट्राईबल, इंडिजीनियस, मूलनिवासी, अनुसूचित जनजाति और वनवासी

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पुस्तक परिचय: धरती सागर और सीपियाँ- अमृता प्रीतम

सिद्धार्थ: अमृता प्रीतम भारतीय साहित्य के कुछ उन चुनिन्दा नामों में से एक है जिन्होंने अपनी लिखावट को किसी एक खास फ़र्मे में बांधकर नहीं

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उत्तराखंड की गढ़वाली कहावतों या औखाणों की रोचक दुनिया

सिद्धार्थ:  इंसान के पाषाण काल के दौर से आज तक के सफर को तय करने और इस दौरान विकसित होने में, भाषाओं का बेहद अहम

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उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में पारंपरिक अनाजों से मनाई जाती है दिवाली

सिद्धार्थ: किसी त्यौहार को एक कहानी से जोड़ देना और उन्हें एक ही तरीके से मनाना ऐसा खासतौर पर शहरों में ही देखने को मिलता

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