नर्सरी के काम को रोज़गार बनाने वाले महाराजगंज उ. प्र. के वृद्धि चंद मौर्य 

राज कुमार और आफाक उल्लाह: उत्तर प्रदेश का महाराजगंज ज़िला, बिहार और नेपाल से सटा हुआ है, इसे 2 अक्टूबर 1989 को गोरखपुर ज़िले से

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कहाँ जाते होंगे वो सब जो कट चुके पेड़ों के नीचे मिलते थे?

आफाक: विकास की बयार में घर, मकान और दुकान के साथ बहुत कुछ उजड़ रहा है। हमारा गाँव पहाड़गंज घोसियाना है, घोसियाना दो हिस्सों में

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सरलता भरी पहाड़ों की जीवनशैली – एक यात्रा वृत्तांत

सिम्मी व आफ़ाक़: वैसे तो पहाड़ों के साथ अपना रिश्ता कोई नया नहीं हैं। हिमाचल से उत्तराखंड और नेपाल के पहाड़ों में कुछ-कुछ दिनों के

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महुआ के पेड़ के साथ ग्रामीण समाज का संबन्ध

मो नसीम / आफाक:  अप्रैल के महीने में महुआ चुना (गिरना) शुरू हो जाता हैं। जब महुआ पेड़ पर आता है, तो सारी पत्तियाँ पेड़

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सर्दियों में अब ना अम्मा की बुनाई दिखती है, न ऊन के गोले

अफ़ाक उल्लाह: मुझे आज भी याद है कि जैसे ही सर्दियाँ आती थी, हम लोग बड़े बक्से से अपने गर्म कपड़े, स्वेटर, टोपी, मफलर और

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उत्तर प्रदेश के जनसंस्कृति के वाहक राजबली यादव

अफ़ाक उल्लाह: उत्तर प्रदेश के अविभाजित फ़ैज़ाबाद ज़िले में जन्मे राजबली यादव 15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी को मुकम्मल नहीं मानते थे। वो आज़ादी

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