धर्मों का बदलता स्वरूप आज एक चिंता का विषय है 

अफ़ाक उल्लाह:

हम सभी किसी न किसी धर्म से जुड़े हुए हैं। हमारे प्रत्येक क्रियाकलाप में धार्मिक मान्यताएं शामिल हैं। पर हम जो देखते हैं कि आज लोग धर्म के बाहरी हिस्से को बहुत खूबसूरती से जीने की कोशिश करते हैं। मसलन लोग आज अत्यधिक कर्मकांडी हो गए हैं। कर्मकांड से यहाँ मेरा अभिप्राय है कि लोग धर्म को अपनी अंतरात्मा से जोड़कर नहीं देखते हैं। बल्कि धर्म के जो बाहरी हिस्से है, जो हमको दिखाई देता है। जैसे पूजा-पाठ करना, व्रत करना, जागरण करना, रोजा, नमाज करना, मजलिस करना, जुलूस निकालना, विसर्जन करना आदि। यह सब धर्म के बाहरी रूप को दर्शाता है। लेकिन अगर हम धर्म की उत्पत्ति को, और विभिन्न धर्मों को गहराई से समझने का प्रयास करें तो हमको समझ में आता है कि विभिन्न धर्मों के विकास में मानव को उसके दैनिक क्रियाकलाप में किस प्रकार से व्यवहार करना है। कैसे अपने पड़ोसी, अपने परिवार के साथ रिश्ता बनाना है। उसको एक सभ्य मानव के तौर पर कैसे जीवन जीना है। इसके बारे में काफी कुछ परिभाषित किया गया है। 

आज धर्म के बाहरी हिस्से को दिखाने और जीने की एक होड़ सी मची हुई है। हर कोई यह साबित करने में लगा हुआ है उससे बड़ा कोई दूसरा धार्मिक नहीं है। यहाँ पर ऐसे कह सकते हैं एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों को अपने से नीचा दिखाने और समझने में लगे हुए हैं। अपने को बढ़ाने के प्रयास में लगे हुए हैं। जो कि धर्म की मूल आत्मा को ही पलट कर रख देता है। जहां पर अपने धर्म को मानते हुए दूसरे धर्म की इज्जत करना बहुत बार बताया गया है। यह जानते हुए भी जियो और जीने दो के सिद्धांत को नहीं अपनाते हैं। जो आपको अच्छा लगता है, वैसे काम आप दूसरों के लिए भी करें। जिससे आपके जीवन में ना कोई रुकावट आए और ना ही दूसरे के जीवन में कोई रुकावट पैदा करें। 

धर्म का मूल काम मानव को सभ्यता के विकास में आगे ले जाना और मानव को मानव रूप में समझना और व्यवहार करना के बारे में बताया गया है। ऐसे बहुत सारे ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है। अभी नया-नया एक अध्ययन शुरू हुआ है तुलनात्मक धर्म और सभ्यता का विकास कि हम विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करें। कैसे हमारी सभ्यता का विकास हुआ है। इसको भी विद्यार्थी समझने की कोशिश करें। तो मानव सभ्यता के विकास में धर्म की अपनी भूमिका है, धार्मिक मूल्यों के आधार पर लोग अपने आचार विचार करते हैं। ऐसा नहीं है कि सभी लोग धर्म के विकृत रूप को ही अपनाए हुए हैं। ऐसे भी लोग हैं जो वसुधेव कुटुंबकम की संस्कृति को मानते हैं। अपने धार्मिक क्रियाकलापों को करने के साथ दूसरे धर्मों पंथो की भी सामान्य इज्जत करते हैं। 

धर्म हमेशा से ही नवीन विषय की तरह है। जिसको जितना खोजा जाए उतना ही कम दिखाई देता है। जब किसी को लगता कि वह धर्म को समझने लग गया है। वहीं से और व्यक्ति की समझने की जिज्ञासा खत्म होने की तरफ जाती हैं। तो समझ लीजिए कुछ ना कुछ आपकी समझदारी में कमी आ रही है। क्योंकि ठहरे हुए पानी में सड़न पैदा होती है और सड़न से बीमारी होती है। चाहे शरीर बीमार हो या हमारा दिमाग उससे मानवीय सभ्यता कमजोर और शर्मसार होती है। इसलिए आज समस्त विद्यार्थियों को अपने परिवेश में जो धर्म संस्कृति है, उसको समझना और उसके सुंदर रूप को समाज में अपनाने के लिए सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है।

Author

  • अफ़ाक / Afaaq

    अफ़ाक, फैज़ाबाद उत्तर प्रदेश से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं। वह अवध पीपुल्स फोरम के साथ जुड़कर युवाओं के साथ उनके हक़-अधिकारों, आकांक्षाओ, और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं।

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