घर के तनाव से दूर भागी अनामिका लेकिन … 

किसी तरह अनामिका का मामला सुलट तो गया, लेकिन इसमें न फंसती तो अनामिका जैसी तेज़ लड़की कितना कुछ कर लेती। मजबूरी में उसे इतनी कम उम्र में घर गृहस्थी के चक्कर में पड़ना पड़ गया।

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बिहार के अररिया ज़िले के त्रिस्कुंड गाँव की गरीबी की कहानी

नौशेरवाँ आदिल: नेता लोग कहते हैं कि गरीबी नहीं है। जो भी लोग गरीब हैं वह कामचोर हैं, आलसी हैं और मेहनत नहीं करते। ज़्यादा

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भूमिहीन नहीं थे हम पहले

अमित: ये कहानियाँ 1997 में पश्चिम चंपारण ज़िले में गाँव की मीटिंग में सुनीं थीं। स्कूल के कमरे में एक दिवसीय मीटिंग के लिये इकट्ठे

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हम गरीब कैसे बने – 3 : महंगी पड़ी नमला को जुवार!

कुछ सुनी, कुछ आँखों देखी – अस्सी – नब्बे के दशक में पश्चिम मध्य प्रदेश के आलीराजपुर ज़िले में खेडुत मजदूर चेतना संगठ में काम

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आजच्या परिस्थितीबद्दल माझं मतं मांडत आहे | आज के हालातों पर मेरे विचार

उमेश ढुमणे: आपल्या देशात संविधान/लोकशाही आहे। डॉ। बाबासाहेबांनी सांगितलं आहे। संविधान कितीही चांगलं असो पण संविधान चालवणारे लोकं जर वाईट असतील तर आज जी परिस्थिती

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कविता: मेरे देश की आँखें- अज्ञेय

नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैंपुते गालों के ऊपरनकली भवों के नीचेछाया प्यार के छलावे बिछातीमुकुर से उठाई हुईमुस्कान मुस्कुरातीये आँखें –नहीं, ये

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