बिहार के अररिया ज़िले के त्रिस्कुंड गाँव की गरीबी की कहानी

नौशेरवाँ आदिल:

नेता लोग कहते हैं कि गरीबी नहीं है। जो भी लोग गरीब हैं वह कामचोर हैं, आलसी हैं और मेहनत नहीं करते। ज़्यादा रुपया कैसे कमाया जाए, यह सोचते ही नहीं। ये ज़्यादा दारू पीते हैं, इनके ज़्यादा बच्चे हैं, इसलिए ये गरीब हैं। मैं उन नेता लोगों से कहना चाहता हूँ कि वह पहले जाके इन लोगों के बीच समय बिताएं। उनके सारे काम को देखें, उनका हाथ बटाएं। दूसरी बात यह कि वे विचार करें कि सारे कारखानों में और मकान-बिल्डिंग आदि बनाने के लिए मज़दूरी करने वाले कौन लोग हैं? ये वही मज़दूर हैं जो पिछड़े गाँवों से आते हैं, इसमें वही लोग हैं जो जाति व्यवस्था की नजर में नीचे आते हैं। जैसे:- रिसीदेव, पासवान, अंसारी आदि। नेताओं के घरों के सारे काम कौन करते हैं? वह कौन लोग हैं? वो भी दलित और गरीब लोग ही हैं। 

हमे थोड़ा सोचने की ज़रूरत है। हमें शब्दों की राजनीति करने वाले इन नेताओं के चरित्र को समझने की ज़रूरत है। यह लोग कहते हैं कि तुम लोग गंवार हो, तुम्हे कुछ पता नहीं है। मुझे चुनाव जिताओ, मैं इंदिरा गांधी आवास दिलवा दूंगा, रोड बनवा दूंगा, तुम्हारे दु:ख-दर्द में मदद करूंगा। लेकिन सच्चाई तो यह है कि एक बार चुनाव जीतने के बाद दुबारा कोई मिलता भी नहीं है। 

हमारा संगठन त्रिस्कुंड गाँव के बच्चों के साथ खेल-खेल में पढ़ाने का काम करता है, इस काम के सिलसिले में मैं भी अक्सर यहाँ जाता रहता हूँ। इस गाँव के घरों की स्थिति बिलकुल भी ठीक नहीं है, यहाँ ज़्यादातर टूटे-फूटे और नीची झोपड़ीनुमा घर हैं। गाँव के घरों और लोगों दोनों की ही स्थिति बहुत ही दयनीय है। जीवन जीने के लिए मूलभूत आवश्यकताएं जैसे- हॉस्पिटल , हाईस्कूल, मवेशी हॉस्पिटल भी यहाँ नहीं है। गाँव के लोगों के खाने के बारे में बोलू तो इस महंगाई के दौर में लोग तेल, मसाले का कम ही इस्तेमाल करते हैं। पोषण के लिए ज़रूरी फल-सब्ज़ियाँ लोग पैसों के अभाव में नहीं खरीद पाते हैं। पौष्टिक आहार ना मिल पाने के कारण गाँव के बहुत से बच्चे कुपोषित हैं। कभी पर्व-त्यौहार में ही मीट व मजे का खाना खा पाते हैं। वह सिर्फ होली, दीपावली के मौके पर ही मांस-मछली खरीद पाते हैं।

नए कपड़े भी सिर्फ पर्व-त्यौहारों में ही ले पाते हैं और बच्चो को लेकर देते हैं। बाकी समय में फटे-कटे कपड़े पहन के जीवन जी रहे हैं। गाँव के सरकारी स्कूल की स्थिती सही नहीं है, यहाँ पढ़ाई का स्तर बिलकुल भी अच्छा नहीं है। गरीबी के कारण लोग अपने बच्चों को ना ही निजी स्कूलों में भेज पाते हैं और ना ही कोचिंग-ट्यूशन के लिए भेज पाते हैं। 

ठंड के मौसम में इनकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। नेताओं की तरह इनके पास मोटे-मोटे कंबल और रज़ाई नहीं हैं कि ठंड में आराम से रात कटे। यहाँ के लोग सिर्फ 2 पतले-पतले कंबल ओढ़ने में इस्तेमाल करते हैं। सोने के लिए बांस से बने टंग (पलंग) का इस्तेमाल करते हैं। गाँव के सभी लोग भूमिहीन हैं, काम भी सिर्फ मौसम और खेती के समय पर मिलता है, इसलिए गाँव में बेरोज़गारी की समस्या बहुत बढ़ गयी है। अब रोज़गार के लिए उनको अपना घर, राज्य छोड़ के दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है।

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  • नौशेरवाँ आदिल / Nausherwan Aadil

    नौशेरवा आदिल अररिया बिहार से हैं और जन जागरण शक्ति मंच संगठन के साथ युवाओं के मुद्दों पर काम कर रहे हैं। आदिल सामाजिक परिवर्तन शाला से भी जुड़े हैं।

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