ये परीक्षा है, ज़िंदगी थोड़ी – कविता

गोपाल पटेल: ज़िंदगी हमारीइम्तिहान ले रही।सब्र हमाराधैर्य को परख रहा। वाज़िद होकर भी,इस डगर कोअपने आप हीसंभाल रहे हम… लक्षित राह परउलझनों भरीदास्तां के साथचल

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ठाकुर का कुआँ – कविता

ओमप्रकाश वाल्मीकि: चूल्‍हा मिट्टी कामिट्टी तालाब कीतालाब ठाकुर का। भूख रोटी कीरोटी बाजरे कीबाजरा खेत काखेत ठाकुर का। बैल ठाकुर काहल ठाकुर काहल की मूठ

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नींद किस चिड़िया का नाम है? – पुस्तक समीक्षा 

शिवांशु मिश्रा: पिछले दिनों अपनी लाइब्रेरी में किताबें खोजने के दौरान एक शीर्षक देखकर अचानक रुक गया और किताब को झट से उठा लिया। आमतौर

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सभ्य होने का दंश

अरबिंद भगत: हम अच्छे भले जी रहे थेइस दुनिया से दूर,जिसे सभ्य कहा जाता है आज। हम जी रहे अपनी ज़िंदगी,उन जंगलों के साथ,जो हमें

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गोण काठा दिहे आवहोत

यह कविता पावरी भाषा में लिखी गयी है। यह भाषा पश्चिम मध्य प्रदेश और उससे लगे महाराष्ट्र के भील, पावरा आदिवासियों द्वारा बोली जाती है।शहरों

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हमे लूट रही मिल के, जा सरकार…

मोहन सिंह: हमे लूट रही मिल के, जा सरकार… x 2 जाग-जाग नौजवान तू जाग,अपने हक़-अधिकार को पहचान..जाग-जाग नौजवान तू जाग,अपने हक़-अधिकार को पहचान..हमे लूट

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