सभ्य होने का दंश

अरबिंद भगत: हम अच्छे भले जी रहे थेइस दुनिया से दूर,जिसे सभ्य कहा जाता है आज। हम जी रहे अपनी ज़िंदगी,उन जंगलों के साथ,जो हमें

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गोण काठा दिहे आवहोत

यह कविता पावरी भाषा में लिखी गयी है। यह भाषा पश्चिम मध्य प्रदेश और उससे लगे महाराष्ट्र के भील, पावरा आदिवासियों द्वारा बोली जाती है।शहरों

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हमे लूट रही मिल के, जा सरकार…

मोहन सिंह: हमे लूट रही मिल के, जा सरकार… x 2 जाग-जाग नौजवान तू जाग,अपने हक़-अधिकार को पहचान..जाग-जाग नौजवान तू जाग,अपने हक़-अधिकार को पहचान..हमे लूट

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यादों का मौसम

विश्वजीत नास्तिक:अररिया, बिहार | कक्षा 12वी तेरी यादों का मौसम,बेमौसम बरसात की तरह है…,जब भी आती है,मुझे भीगा जाती है…। तेरी जुल्फों की महक,निशा की

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बरसात का आगाज़

मुस्कान पटेल: बरसात का आगाज़किसान की आवाज़ तिल अभी बस मुस्कुराई थी,उड़द, लहलहाई ही थीमूंग में महक आई ही थी,कि अधिक पानी,सब एक साथ ले

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हम करोड़ों दिए भी जला देंगे पर…

ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह: हम करोड़ों दिए भी जला देंगे परराम जंगल से वापस आएंगे नहीं। हमने लाखोंदिखावे-छलावे कियेमन के दीपक कभी भी जलाए नहीं। हम

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