ये परीक्षा है, ज़िंदगी थोड़ी – कविता

गोपाल पटेल: ज़िंदगी हमारीइम्तिहान ले रही।सब्र हमाराधैर्य को परख रहा। वाज़िद होकर भी,इस डगर कोअपने आप हीसंभाल रहे हम… लक्षित राह परउलझनों भरीदास्तां के साथचल

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मैं परीक्षा हूँ

गोपाल पटेल: मैं परीक्षा हूँ, परायों की इच्छा हूँ, लोग मेरी इच्छा करते हैं। मुझे पाने की ओर, जिद्दजहत करते हूँ, मैं परीक्षा हूँ, परायों

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साहब यहाँ बस घोषणाएँ होती हैं

गोपाल पटेल: साहब यहाँ तो घोषणाएँ होती हैं।अमल होना तो, बाकी है। बेरोज़गार युवा आस लगाए बैठे हैं।इस उम्मीद में…कि घोषणा वीर मामा…नौकरी निकालेगा…इस उम्मीद

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प्रकृति पुकारे…!

मैं प्रकृति हूँ…आओं मुझे संवार लोमैं सुरक्षित रहूंगी तोतुम संरक्षित रहोगे। मैं प्रकृति हूँ…मैं सदियों से लालन-पालन करते आ रही हूँ।मैं “प्रत्याशाओं” से भरी हूँ…मुझ

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ज़िंदगी में रिश्तों की अहमियत

गोपाल पटेल: इस दुनिया में रिश्ते बनाना आसान है, लेकिन रिश्तों को निभाना बहुत कठिन है। जो इसकी अहमियत जानता है , वही इसे इत्मिनान

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