गोपाल पटेल:
मैं वृक्ष हूँ, इस माटी का x2
जो मुझे सींच कर रखती है।
मैं वृक्ष हूँ इस माटी का
जो मुझे जीवन देती है।
मैं वृक्ष हूँ, इस संसार का
मैं धरा पर प्राणवायु प्रवाहित करता हूँ।
मैं वृक्ष हूँ इस माटी का।
मैं वृक्ष हूँ, इस धरा का
मुझे संवार लो, इंसान।
मैं ज़िंदगी को उजियारा देता हूँ।
मुझे संवार लो, इंसान।
मैं वृक्ष हूँ, इस कायनात का
जग को हरा-भरा रखता हूँ।
मैं लोगों को, औषधि गुणों से युक्त रखता हूँ।
यही मेरी पहचान है, यही मेरा संसार है।
मैं वृक्ष हूँ, इस संसार का
मैं वृक्ष हूँ, इस धरा का
मैं वृक्ष हूँ, इस माटी का
मेरे प्रिय मित्र पटेल जी को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहता हूँ जो की एक वर्क्षो के ऊपर बहुत ही अच्छी कविता लिखी गयी है जो आने वाले पीढ़ी को एक उज्वल भविष्य की प्रेरणा मिल सके जो , यह कविता जो की मेरे दिल को छा गयी , बहुत बहुत धन्यवाद पटेल जी
आदरणीय परम मित्र सकाराम जी को सहृदय से शुक्रिया अदा करता हूं 🙏🏻