
पारंपरिक रोज़गार और हुनर को बचाने में भूमि अधिकारों का महत्व
जुहेब आज़ाद: बुनकर समुदाय के लोग अपने असाधारण बुनाई कौशल के लिए जाने जाते रहे हैं, भारत के पारंपरिक कपड़ा उद्योग की समृद्ध विरासत का वह एक अभिन्न अंग रहे हैं। हालाँकि, खगड़िया ज़िले के पर्वता ब्लॉक के अगुवानी गाँव की फील्ड विज़िट के दौरान एक बेहद ही हताश करने वाली वास्तविकता सामने आई। यहाँ…

शिक्षा का अधिकार?
अमित: हमारे पड़ोसी के दो बेटे राहुल और शिवम अपनी तीन बकरियाँ हमारे खेत के किनारे चरा रहे थे। मैं उनके पास गया तो था, थोड़ा डांट कर बताने कि खेत में न घुसाएँ बकरियाँ, लेकिन फिर उनका प्यारा सा कटोरा कट हेयर स्टाइल देख कर बातों में लग गया। “बाल बड़े अच्छे कटे हैं…

चित्तौड़गढ़ में शंभू लाल भील के सामुदायिक प्रयास: स्वास्थ्य सेतु की एक रिपोर्ट
चित्तौड़गढ़ में शंभू लाल भील, स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ पाने हेतु अति गरीब लोगों को शासकीय सेवाओं से जोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं। ये गाँव के पंच हैं और स्वास्थ्य सेतु साथी फेलो भी हैं। यह रिपोर्ट उनके द्वारा गत महीने में किए गए कार्यों के आधार पर उन्हीं के द्वारा बनाई गई…

बिहार के गया ज़िले से सामाजिक परिवर्तन शाला के प्रतिभागी ब्रजेश का परिचय
ब्रजेश कुमार निराला: मेरा जन्म 1 जनवरी 2005 को बिहार के गया ज़िले के गम्हरिया गाँव में हुआ था। मेरे पिता का नाम मिथिलेश कुमार निराला और माँ का नाम मीना कुमारी भारती है। मेरी दादी बताती थी कि मैं बचपन में बहुत शरारती था, जब उनसे अपने बचपन की कहानियाँ सुनता था तो बहुत…

सांप्रदायिकता पर मज़ेदार व्यंग्य है शॉर्ट फिल्म “पंडित उस्मान”
फरीद आलम: शाॅर्ट फिल्म “पंडित उस्मान” से व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता-अखण्डता को विकसित करने वाली बंधुता की समझ का प्रयास। अकरम हसन द्वारा लिखित व निर्देशित शाॅर्ट फिल्म “पण्डित उस्मान” धार्मिक समागमता को प्रहसन के माध्यम से समाज की उस अयोग्यता का परीक्षण करती नज़र आती है जो इसकी स्वीकार्यता से पूरी…

गोंदिया (महाराष्ट्र) के नांगलडोह गाँव की दयनीय हालत का जिम्मेदार कौन?
मनीषा शहारे: नांगलडोह गाँव, महाराष्ट्र के गोंदिया ज़िले के अर्जुनी मोरगाँव तालुका में आता है। यह गाँव 10 किमी दूर स्थित भरनोली गाँव की ग्रामपंचायत में आता है और जंगलों से घिरा हुआ है। भरनोली से तिरखुरी गाँव तक रास्ता है, पर नांगलडोह पहुँचने के लिए तिरखुरी गाँव से 8 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता…

शायद इंसानियत अभी ज़िंदा है – कहानी
साधना: एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर बैठे थे और गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। तभी जूते पालिश करने वाला एक लड़का आकर बोला, “साहब जूते पालिश कर दें?” उसकी दयनीय सूरत देखकर उन्होंने अपना जूता आगे बढ़ा दिया और बोले, “तो ठीक से चमकाना”। लड़का ने काम तो शुरू किया परंतु अन्य लोगों की…

झाड़-फूँक वाले बाबा के जाल से कैसे छूटी सुशीला दीदी ?
शैलेश सिंह: सुशीला दीदी से बातचीत के दौरान उनके जीवन में हुई एक घटना की जानकारी मिली। सुशीला दीदी बताती हैं कि शादी के बाद उनको बच्चे के लिए परिवार और पति से बहुत कुछ सुनना पड़ा, काफी दवा-इलाज के बाद भी उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुईl घर वालों और पति के ताने सुन-सुन कर…

संविधान साक्षर होऊ लागल्या महिला…
दिपक कांबळे: संविधान आपल्या जीवनाबरोबर आणि जीवनानंतरही आहे। आपल्या जन्मा आधीपासून ते मृत्यूनंतर सुद्धा संविधान आपल्या सोबत असते, आपल्या हितासाठी विकासासाठी, आपल्या हक्काच्या संरक्षणासाठी, माणूस म्हणून जगण्यासाठी संविधान समजून घेणे महत्त्वाचे आहे। भारतीय संविधान प्रत्येक भारतीयाचा सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ आहे। त्यामुळे हा ग्रंथ समजून घेणे काळाची गरज आहे त्यामुळे संविधान वाचणे व जाणून घेणे खरी गरज…
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