प्रकृति पुकारे…!

मैं प्रकृति हूँ…
आओं मुझे संवार लो
मैं सुरक्षित रहूंगी तो
तुम संरक्षित रहोगे।

मैं प्रकृति हूँ…
मैं सदियों से लालन-पालन करते आ रही हूँ।
मैं “प्रत्याशाओं” से भरी हूँ…
मुझ में सारी “कायनात” समाहित है।

मैं प्रकृति हूँ…
तुम मेरे रक्षक बनों
मैं तुम्हारी संरक्षकहूँ।
मुझे बचा लो इंसान

मैं प्रकृति हूँ…
आज मेरा अस्तित्व खतरें में है,
मुझे बचा लो इंसान
मैं रहूंगी तो…..
तुम्हारा “अस्तित्व” संरक्षित रहेगा।

मैं प्रकृति हूँ…
जनजातीय लोग मुझे माँ
कहकर पुकारते हैं।
मेरा संबंध “ममत्व” जैसा है।

मैं प्रकृति हूँ
कुछ चुनिंदा लोगों के द्वारा
मेरे रक्षकों (जनजातीय) को,
यातनाएँ दीं जा रही है।

अपने लाभ के लिए
मुझे और मेरी “विरासत” को
समाप्त करने पर तुले हैं।

मैं सुरक्षित रहूंगी तो
तुम संरक्षित रहोगे।

आओं चलें प्रकृति की ओर
प्रकृति है तो हम है।

Author

  • गोपाल पटेल / Gopal Patel

    गोपाल, मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले से हैं। वर्तमान में वे कलाम फाउंडेशन से जुड़कर लोगों की मदद कर रहे हैं। साथ में गोपाल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहें हैं।

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