अरविंद अंजुम:

मनुष्य की अद्भुत कल्पना है – स्वर्ग। स्वर्ग के बारे में सबसे बुनियादी कल्पना व ख्वाहिश है कि मनुष्य मृत्यु से मुक्त होकर अमरत्व प्राप्त कर ले, इसलिए स्वर्ग जाने के बाद कोई मरता नहीं है। वास्तव में यह महज कल्पना नहीं बल्कि ख्वाहिशें हैं, जिनके ठिकाने के रूप में स्वर्ग की कल्पना की गई है। 21वीं शताब्दी से पहले तक यह कोई सोच भी नहीं सकता था कि मनुष्य स्वर्ग की कल्पनाओं में उपलब्ध सारी सुविधाओं को एक दिन हासिल करने की दिशा में अग्रसर हो जाएगा। लेकिन न्यू यॉर्क टाइम्स की खबर को माने तो शायद जल्द ही कुछ अमीर लोग बायोहैकिंग के माध्यम से अमर हो सकते हैं। 

मनुष्य मरना नहीं चाहता है, पृथ्वी का सबसे बड़ा भय है – मृत्यु। मनुष्य मृत्यु से मुक्त होना चाहता है। इसी बिना पर कई प्रकार के विचार व दर्शन भी विकसित हुए। तसल्ली के लिए ‘आत्मा के अमरत्व’ का सिद्धांत आया, पुनर्जन्म की, निर्वाण की कथाएं प्रकट हुई, क्यूंकि मनुष्य इस महान भय के नीचे जी नहीं सकता था और जीने के लिए किसी ठोस तसल्ली व सहारे की ज़रूरत थी। ‘स्वर्ग’ इसी मांग की पूर्ति करता है। 

बहरहाल, निष्कर्ष यह है कि मानव का अमरत्व हासिल करना ही चरम अभीष्ट है और अगर मनुष्य अमर हो तो फिर वह देवताओं की पदवी प्राप्त कर लेता है।

धर्म व दर्शन ने अपने तरीके से मनुष्य को देवत्व प्रदान करने का आध्यात्मिक प्रयास कर लिया है और अपने स्तर पर संतुष्ट करने की कवायद की सीमा भी तय कर दी है, लेकिन मनुष्य उन प्रयासों से संतुष्ट नहीं हुआ है। अतः अब यह बीड़ा चिकित्सा शास्त्र व विज्ञान ने उठा लिया है कि मनुष्य कभी मरे ही नहीं। इस आश्चर्यजनक चाहत व कल्पना की दिशा में विज्ञान अग्रसर भी है। इन्ही वैज्ञानिक उद्यमों का परिणाम है कि 19वीं सदी में मनुष्य की औसत आयु 40 वर्ष थी, जो 20वीं सदी में बढ़कर 70 वर्ष हो गयी और विज्ञान की ऐसी ही कोशिशें जारी रही तो 21वीं सदी के अंत तक यह आयु 150 वर्ष हो जाएगी। फिर अगली सदी में अमरत्व भी प्राप्त कर लिया जा सकता है।

क्या यह आयुवर्धन और अमरत्व की बातें भी स्वर्ग की तरह कल्पनाएं हैं या इनका कोई आधार भी है। इन बातों पर विचार करने के पहले एक ख़बर को जान लिया जाना बेहतर है। न्यूयॉर्क टाइम्स के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखक व उद्यमी हैं – डेव एस्प्रे। उनका लक्ष्य व दावा है कि वे 180 साल तक ज़िन्दा रहेंगे। फिलहाल वे 47 वर्ष के हैं और इस लक्ष्य के अनुसार वे 2153 तक जीवित रहेंगे। यह दावा किसी तपस्या या किंवदंतियों का मोहताज नहीं है। इसके लिए चिकित्सा शास्त्र के आधुनिक आविष्कारों का प्रयोग किया गया है। डेव के शरीर के बोनमैरो से स्टेम सेल निकालकर उसे फिर से उनके शरीर में प्रत्यारोपित किया गया। इससे शरीर की बायोलॉजिकल घड़ी (क्लॉक) उल्टा घूमने लगेगी। इस तकनीक को बायोहैकिंग कहा जाता है। 

डेव का दावा है कि भविष्य में यह तकनीक आम हो जाएगी और मोबाइल फोन की तरह प्रचलन में आ जाएगी। अपने दीर्घ जीवन के लिए वे कोल्ड क्रायोथेरेपी चैंबर और खास आहार पद्धति का तरीका भी अपना रहे हैं। डेव का मानना है कि यदि 40 वर्ष से कम उम्र वाले इस तरीके को अपना लें तो 100 साल तक वे खुश और खासे क्रियाशील बने रह सकते हैं। डेव ने अपने भोजन व नींद को नियंत्रित एवं संयोजित कर लिया है। वे कहते हैं कि इन सब तरीकों को अपनाकर और बुढ़ापा रोकने वाले अन्य उपचार करके उन्होंने खुद को इस तरह बना लिया है कि शरीर में कम से कम ज्वलन (इन्फ्लेमेशन) हो। उन्होंने बताया कि जब हम युवा होते हैं, तो शरीर में करोड़ों सेल (कोशिकाएँ) होती हैं। उम्र बढ़ने लगती है तो ये नष्ट होने लगते हैं। इसलिए वे इंटरमिटेंट फास्टिंग अर्थात अंतराल में भोजन अपनाते हैं। इससे शरीर जब भोजन नहीं पचा रहा होता है तो खुद की मरम्मत करता है। कोल्ड क्रायोथेरेपी शरीर के क्षतिग्रत उतकों का कम तापमान में उपचार करने की पद्धति है। (7 फरवरी, दैनिक भास्कर)। 

डेव एस्प्रे ने अपने दीर्घायु जीवन के लिए अपनाई गयी विभिन्न पद्धतियों पर 7.4 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। स्वाभाविक है कि दीर्घायु या अमरत्व शायद आम नहीं होकर खास हो। वैसे भी धर्म-दर्शन व आध्यात्म भी सबके स्वर्ग व निर्माण का रास्ता कहां खोजता है? इस तरह विज्ञान व आध्यात्म कम से कम इस मामले में समान भूमिका में आ गया है।

चिकित्सा शास्त्र व विज्ञान मनुष्य की आदिम इच्छा को पूरा करने को उद्यत है, भले ही हवा, पानी, सूर्य की रोशनी, खेती, अनाज की तरह आयु अर्जन व अमरत्व भी एक व्यापारिक सुविधा बन जाए। जिनके पास धन होगा, वे शताब्दी के बाद किसी भालू पार्क में टहलते हुए नज़र आयेंगे तो कोई एक-दूसरे से कहेगा – ‘‘देखो, इस व्यक्ति की उम्र 232 वर्ग है।’’ आप सोचें कि जब कोई 200 या 300 साल तक जियेगा तो फिर उसका सामाजिक व मनोवैज्ञानिक परिणाम क्या होगा?

और ऐसा भी है कि मनुष्य मरेगा ही नही। किसी के मारने पर या दुर्घटना में तो मर सकता है, लेकिन स्वाभाविक मृत्यु के दायरे से परे जाकर वह सुपर ह्यूमन – अति मानव की श्रेणी में आ जायेगा और दूसरी ओर गरीब वर्ग कीड़े-मकोड़े में तब्दील हो जायेंगें। तब क्या होगा? अपनी कल्पनाओीं को उस दिशा में छोड़ दें। किन्तु यह तथ्य है कि मनुष्य ईश्वर बनने की दिशा में अग्रसर है। बनेगा या नहीं, अधर में है जवाब।

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