पढ़ने की उम्र में पेट पालने की मजबूरी

कमलजीत कौर:   “हुर्रर्रर्र… हेहेहेहे…हौ…हेहेहेहे…हौ…” सूरज ने डरावनी सी आवाज़ निकाली और देखते ही देखते बाग़ से भागते पक्षियों ने आसमान भर दिया। सूरज नाशपाती के

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उसे ये फिक्र है कि हरदम नया तर्ज ए जफा क्या है

सुनील पासवान: ‘हमें ये शौक है, देखें सितम की इंतेहा क्या है।’ मेरे पापा श्री दीपानारायण पासवान, उफ़रेल चौक, वार्ड नं 9, अमगाछी पंचयात, सिकटी

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बिहार के अररिया ज़िले के त्रिस्कुंड गाँव की गरीबी की कहानी

नौशेरवाँ आदिल: नेता लोग कहते हैं कि गरीबी नहीं है। जो भी लोग गरीब हैं वह कामचोर हैं, आलसी हैं और मेहनत नहीं करते। ज़्यादा

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अररिया ज़िले की आमगाछी पंचायत में सच्चाई पर एक नज़र

मेरे पापा ऐसी परिस्थिति से एकदम भी नही घबराते हैं। उनका हँसता हुआ चेहरा हम सभी को बहुत हिम्मत दे रहा है। सच्चाई को परेशान किया जा सकता है, लेकिन सच्चाई को मिटाया नही जा सकता।

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साहस की जीती जागती मिसाल है अररिया की मांडवी

जब मांडवी बीडीओ के दफ्तर पहुंची तो उसके स्टाफ ने कहा कि 1100 रुपए देंगी तो आपको जोड़ देंगे। यह सुनकर मांडवी बोली, “हम यहाँ बिकने के लिए नहीं आए हैं, जो करते हैं अपनी मर्ज़ी से करते हैं। हमें नहीं करनी आपकी नौकरी, हमें जो काम अच्छा लगेगा वही काम करेंगे।”  

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अररिया के मज़दूर की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

नरेश धड़कार एक गरीब घर से थे I वो एक कारीगर थे, जो रोज़ बांस की टोकरी और गर्मी के समय इस्तेमाल किया जाने वाला हाथ पंखा बनाकर बेचते थे और इसी से अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे।

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