मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ – कविता 

डॉ. नेरन्द्र दांभोळकर:

मूर्तियाँ पूजने के बजाय
मैं मानव पूजता हूँ
कृत्रिम देवों को न मानकर
मैं फूले-शाहू-अंबेडकर को पढ़ता हूँ
मैं छाती ठोककर कहता हूँ
मैं झूठ त्यागकर, नास्तिक हूँ।

पोथी-पुराण पढ़ने के बजाय
मैं शिवाजी को पढ़ता हूँ,
पत्थर के सामने क्यों झुकूँ
सावित्री, जिजाई, रमाई के
सामने झुकता हूँ,
मैं छाती ठोंककर कहता हूँ
मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ ।

मेहनत का कमाना
दान-पेटी में गंवाना
बामनों का घर मैं भरता नहीं,
प्यासों को पानी,
भूखों को भोजन देता हूँ,
मैं ऐसा देवता खोजता हूँ,
मैं छाती ठोंक कर कहता हूँ,
मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ ।

हिन्दू -मुस्लिम-सिख-ईसाई
पर गर्व करने की बजाय
मैं इंसान होने पर गर्व करता हूँ,
धर्म में पाखंड जपने के बजाय
मैं मानवता को जपता हूँ,
छाती ठोंककर कहता हूँ,
मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ ।

कर्मशील मानव के आगे
मैं पत्थर को श्रेष्ठ नहीं मानता हूँ,
मंत्र, होम-हवन, कर्मकांड
पाँव के नीचे रख,
तर्क पर विश्वास रखता हूँ,
छाती ठोंककर कहता हूँ,
मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ।
मैं वास्तविक जीवन जीता हूँ ।

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