छत्तीसगढ़ राज्य का पारंपरिक अक्ति त्यौहार 

मंजुलता मिरी व राजिम केटवास:

अप्रैल माह में, छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले के गाँवों में हम लोग अक्ती तिहार (त्यौहार) मनाते हैं। हमारे क्षेत्र में अक्ती त्यौहार खूब ज़ोर-शोर से मनाया जाता है। अक्ति त्यौहार छत्तीसगढ़ का कृषि नववर्ष है, इस दिन से ही कृषि के नये कार्य आरंभ होते है। त्यौहार के दिन, गाँव के सभी लोग, गाँव में एक जगह पर इकट्ठा होते हैं। सभी अपने-अपने घर से चावल, तेल और धान लेकर, गाँव के बैगा (पूजा करने वाला) के पास जाते हैं। सभी लोग अपने घर से तरह तरह का बीज लाकर बैगा को देते हैं। फिर गाँव के कुछ मुख्य लोग, बैगा के साथ गाँव के ठाकुर देव के स्थल पर जाकर, ठाकुर देव की पूजा करते हैं। पूजा के बाद यह बीज सबको बाँट दिया जाता है गाँव के कुछ मुख्य लोग, बैगा के साथ गाँव के ठाकुर देव के स्थल पर जाकर, ठाकुर देव की पूजा करते हैं।

पूजा करने के बाद पेड़ के आसपास 7 बार घूमते हैं, मिट्टी के हड्डी में धान और बाकी बीज को लेकर फिर उसी बीज को गाँव के सभी घरों को थोड़ा-थोड़ा देते हैं

इस स्थल पर केवल पुरूष ही पूजा करते हैं, महिलाओं को इस स्थल पर नहीं जाने देते हैं। जब तक पूजा नहीं हो जाती, गाँव के लोग अपने घर में पानी नहीं भरते हैं। पूजा होने के बाद, बैगा और कुछ लोग धान को मिट्टी के बर्तन में डालते हैं और उसमे पानी डाल कर रख देते हैं, और गाँव के ठाकुर देव से गाँव में अच्छी खेती होने की प्रार्थना करते हैं। उसके बाद बैगा गाँव के घर-घर जाकर, हर परिवार को थोड़ा-थोड़ा धान देता है और गाँव वाले बैगा को चावल, दाल और कुछ पैसे देते हैं।

बैगा द्वारा जो धान दिया जाता है, उसको परसा पेड़ के पत्ते का दोना बना कर, उसमें रखते हैं। बैगा द्वारा दी गई धान के कुछ अंश को अनाज भंडार घर में भी रखते हैं। फिर परिवार अपने खेत में हल चला कर, बोआई करते हैं। इस दिन के बाद से फिर खेत में हल चलाना शुरू करते है। अक्ती त्यौहार मनाने के बाद, जंगल से झाड़ू नहीं लाते हैं ना ही घास की कटाई करते हैं। ये इस खेती के मौसम का, गाँव में मनाये जाने वाला पहला त्यौहार होता है।

अक्ती त्यौहार के दिन को शुभ माना जाता है और उसी दिन से सभी घरों में साग-सब्जी भी बाड़ी में लगाते हैं। हमारे गाँव में लोक संस्कृति कार्यक्रम भी होता है और बच्चे मिट्टी से बनाये गुड्डे-गुड़िया का विवाह भी करते हैं। इसे राज्य के ग्रामीण अंचलों में पुतरा-पुतरी भी कहते हैं। बच्चों की टोलियों में से एक दल वर पक्ष होता है और एक कन्या पक्ष। अन्य लोक मान्यताओं के अनुसार ग्राम देवी, ठाकुर देव, साहड़ा देवता (जिन्हें ग्राम रक्षक भी कहा गया है), देवी शीतला की उपासना और कोतवालों के हांका पारने के बाद ही, मंदरो में जाकर तेल, हल्दी और महुआ या पलाश के पत्तों से बने दोने में धान भी चढ़ाते हैं।

टोकरियां में तरह तरह के बीजों की पूजा करते हुए

हमारे समाज में त्योहारों को मौसमों से जोड़ा जाता है। इसे खेतों में बीज बुवाई से पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार को अलग-अलग गांव में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। किसी गांव में इसे गर्मी के दिनों में मनाया जाता है और कहीं इसे बारिश के मौसम में मनाया जाता है। हालांकि इस त्योहार के समय और रीति-रिवाजों के विभिन्न रूप हो सकते हैं लेकिन उन सभी गांव में यह त्यौहार मनाने की भावनाएं एक समान है। गांव वाले इस त्यौहार के माध्यम से प्रार्थना करते हैं कि फसल अच्छी हो। अति त्यौहार का मतलब होता है साल का प्रथम बड़ा त्यौहार यह त्यौहार खेतों में फसल उगाने वाले किसान से जुड़ा हुआ है और बारिश  लगने से पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाएं बिना लोग नए साल का कोई भी कृषि संबंधी कार्य नहीं करते हैं। इस त्यौहार में गांव के स्थानीय देवी देवता की पूजा की जाती है। इन देवी देवताओं के नाम है ठाकुर दे, बूढ़ी माई, मरही माता, रक्षा देवी, हत्या देवी आदि। अलग अलग गांव में अलग अलग नाम से देवी देवताओं को जाना जाता है। इन देवी देवताओं की पूजा करने के बाद ही गांव वाले अपने खेतों में साल का पहला हल चलाते हैं । सावन सिंह बताते हैं कि इस त्यौहार को उनके पूर्वजों से मनाते चले आ रहे हैं। आदिवासी इलाकों में लोगों और खेतों के बीच घनिष्ठ संबंध है। इस त्यौहार के द्वारा भूमि को माता के रूप में पूजा जाता है। गांव के देवी देवताओं की पूजा आवश्यक है क्योंकि देवी देवता ही लोगों की रक्षा करते हैं, ऐसा लोग मानते हैं। 

अक्ती तोहार मनाने के लिए गांव की बरगदवा गांव के लोगों को बुनियादी कराया जाता है। सभी गांव वालों को इस त्यौहार में शामिल होने के लिए बुलाया जाता है। पूरा गांव मिलकर यह निर्णय लेता है कि किस त्यौहार को मनाया जाए ताकि फसल में कई दिक्कत ना हो। त्यौहार की तारीख तय होने के बाद यह जानकारी ग्रामीणों में फैला दी जाती है ताकि सब गांव वाले इसकी तैयारी कर सकें। गांव के निवासियों को त्योहार से 1 दिन पहले पानी भरने के लिए कहा जाता है ताकि अगले दिन पानी की कमी ना हो। अपनी त्यौहार का शुरू एक महुआ के पेड़ के नीचे ठाकुर देव की पूजा से किया जाता है इस पूजा में काली मुर्गी, नारियल, धूप, अगरबत्ती की जरूरत पड़ती है जो गांव के बैगा द्वारा व्यवस्था किया जाता है। गांव के लोग अपने साथ बांस की बनी हुई टोकरी में थोड़ा सा धान, गोबर का लेप लगा हुआ धोबी का पौधा और नारियल लेकर आते हैं। सभी लोग पूजा करते हैं।

Authors

  • मंजुलता मिरी / Manjulata Miri

    मंजुलता, छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़ी हैं। वर्तमान में मंजु, दलित आदिवासी मंच के साथ जुड़कर जल-जंगल-ज़मीन के मुद्दों पर काम कर रही हैं।

  • राजिम केतवास / Rajim Ketwas

    राजिम छत्तीसगढ़ के बलोदा बाज़ार ज़िले से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़ी हैं। 2007 में, राजिम ने दलित और आदिवासी समुदायों के प्राकृतिक संसाधन अधिकारों पर काम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ दलित आदिवासी मंच की स्थापना की। संगठन जल-जंगल-ज़मीन के अधिकारों के साथ-साथ तस्करी, यौन हिंसा, घरेलू श्रम मज़दूरी, स्वास्थ्य और रोज़गार के मुद्दों पर काम करता है।

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