अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर ईरानी मज़दूर साबिर हका की कविताएँ 

अनुवाद: गीत चतुर्वेदी 

ईरानी मज़दूर साबिर हका की कविताएँ तड़ित-प्रहार की तरह हैं। साबिर का जन्‍म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ। अब वह तेहरान में रहते हैं और इमारतों में निर्माण-कार्य के दौरान मज़दूरी करते हैं।

साबिर हका के दो कविता-संग्रह प्रकाशित हैं और ईरान श्रमिक कविता स्‍पर्धा में प्रथम पुरस्‍कार पा चुके हैं। लेकिन कविता से पेट नहीं भरता। पैसे कमाने के लिए ईंट-रोड़ा ढोना पड़ता है। 

एक इंटरव्‍यू में साबिर ने कहा था, ”मैं थका हुआ हूँ। बेहद थका हुआ। मैं पैदा होने से पहले से ही थका हुआ हूँ। मेरी माँ मुझे अपने गर्भ में पालते हुए मज़दूरी करती थी, मैं तब से ही एक मज़दूर हूँ। मैं अपनी माँ की थकान महसूस कर सकता हूँ। उसकी थकान अब भी मेरे जिस्‍म में है।” 

साबिर बताते हैं कि तेहरान में उनके पास सोने की जगह नहीं और कई-कई रातें वह सड़क पर भटकते हुए गुज़ार देते हैं। इसी कारण पिछले बारह साल से उन्‍हें इतनी तसल्‍ली नहीं मिल पाई है कि वह अपने उपन्‍यास को पूरा कर सकें।

  1. शहतूत

क्‍या आपने कभी शहतूत देखा है, 

जहां गिरता है, उतनी ज़मीन पर 

उसके लाल रस का धब्‍बा पड़ जाता है. 

गिरने से ज़्यादा पीड़ादायी कुछ नहीं. 

मैंने कितने मज़दूरों को देखा है 

इमारतों से गिरते हुए, 

गिरकर शहतूत बन जाते हुए.

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  1. (ईश्‍वर)

(ईश्‍वर) भी एक मज़दूर है 

ज़रूर वह वेल्‍डरों का भी वेल्‍डर होगा. 

शाम की रोशनी में 

उसकी आंखें अंगारों जैसी लाल होती हैं, 

रात उसकी क़मीज़ पर 

छेद ही छेद होते हैं.

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  1.  बंदूक़

अगर उन्‍होंने बंदूक़ का आविष्‍कार न किया होता 

तो कितने लोग, दूर से ही, 

मारे जाने से बच जाते. 

कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं. 

उन्‍हें मज़दूरों की ताक़त का अहसास दिलाना भी 

कहीं ज़्यादा आसान होता.

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  1.  मृत्‍यु का ख़ौफ़

ताउम्र मैंने इस बात पर भरोसा किया 

कि झूठ बोलना ग़लत होता है 

ग़लत होता है किसी को परेशान करना

ताउम्र मैं इस बात को स्‍वीकार किया 

कि मौत भी जि़ंदगी का एक हिस्‍सा है

इसके बाद भी मुझे मृत्‍यु से डर लगता है 

डर लगता है दूसरी दुनिया में भी मजदूर बने रहने से.

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  1.  कॅरियर का चुनाव

मैं कभी साधारण बैंक कर्मचारी नहीं बन सकता था 

खाने-पीने के सामानों का सेल्‍समैन भी नहीं 

किसी पार्टी का मुखिया भी नहीं 

न तो टैक्‍सी ड्राइवर 

प्रचार में लगा मार्केटिंग वाला भी नहीं

मैं बस इतना चाहता था 

कि शहर की सबसे ऊंची जगह पर खड़ा होकर 

नीचे ठसाठस इमारतों के बीच उस औरत का घर देखूं 

जिससे मैं प्‍यार करता हूं 

इसलिए मैं बांधकाम मज़दूर बन गया.

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  1. मेरे पिता

अगर अपने पिता के बारे में कुछ कहने की हिम्‍मत करूं 

तो मेरी बात का भरोसा करना, 

उनके जीवन ने उन्‍हें बहुत कम आनंद दिया

वह शख़्स अपने परिवार के लिए समर्पित था 

परिवार की कमियों को छिपाने के लिए 

उसने अपना जीवन कठोर और ख़ुरदुरा बना लिया

और अब 

अपनी कविताएं छपवाते हुए 

मुझे सिर्फ़ एक बात का संकोच होता है 

कि मेरे पिता पढ़ नहीं सकते.

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  1. आस्‍था

मेरे पिता मज़दूर थे 

आस्‍था से भरे हुए इंसान

जब भी वह नमाज़ पढ़ते थे 

(अल्‍लाह) उनके हाथों को देख शर्मिंदा हो जाता था.

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  1. मृत्‍यु

मेरी मां ने कहा 

उसने मृत्‍यु को देख रखा है 

उसके बड़ी-बड़ी घनी मूंछें हैं 

और उसकी क़द-काठी,जैसे कोई बौराया हुआ इंसान.

उस रात से 

मां की मासूमियत को 

मैं शक से देखने लगा हूं.

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  1.  राजनीति

बड़े-बड़े बदलाव भी 

कितनी आसानी से कर दिए जाते हैं. 

हाथ-काम करने वाले मज़दूरों को 

राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देना भी 

कितना आसान रहा, है न!

क्रेनें इस बदलाव को उठाती हैं 

और सूली तक पहुंचाती हैं. 

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  1. दोस्‍ती

मैं (ईश्‍वर) का दोस्‍त नहीं हूं 

इसका सिर्फ़ एक ही कारण है 

जिसकी जड़ें बहुत पुराने अतीत में हैं : 

जब छह लोगों का हमारा परिवार 

एक तंग कमरे में रहता था 

और (ईश्‍वर) के पास बहुत बड़ा मकान था  

जिसमें वह अकेले ही रहता था

——

  1. सरहदें

जैसे कफ़न ढंक देता है लाश को 

बर्फ़ भी बहुत सारी चीज़ों को ढंक लेती है. 

ढंक लेती है इमारतों के कंकाल को 

पेड़ों को, क़ब्रों को सफ़ेद बना देती है

और सिर्फ़ बर्फ़ ही है जो 

सरहदों को भी सफ़ेद कर सकती है.

——

  1. घर

मैं पूरी दुनिया के लिए कह सकता हूं यह शब्‍द 

दुनिया के हर देश के लिए कह सकता हूं 

मैं आसमान को भी कह सकता हूं 

इस ब्रह्मांड की हरेक चीज़ को भी. 

लेकिन तेहरान के इस बिना खिड़की वाले किराए के कमरे को 

नहीं कह सकता, 

मैं इसे घर नहीं कह सकता.

——

  1. सरकार

कुछ अरसा हुआ 

पुलिस मुझे तलाश रही है 

मैंने किसी की हत्‍या नहीं की 

मैंने सरकार के खि़लाफ़ कोई लेख भी नहीं लिखा

सिर्फ़ तुम जानती हो, मेरी प्रियतमा 

कि जनता के लिए कितना त्रासद होगा 

अगर सरकार महज़ इस कारण मुझसे डरने लगे 

कि मैं एक मज़दूर हूं 

अगर मैं क्रांतिकारी या बाग़ी होता

तब क्‍या करते वे?

फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया 

कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है 

जो स्‍कूल की सारी किताबों के पहले पन्‍ने पर 

अपनी तस्‍वीर छपी देखना चाहता था.

——

  1. इकलौता डर

जब मैं मरूंगा 

अपने साथ अपनी सारी प्रिय किताबों को ले जाऊंगा 

अपनी क़ब्र को भर दूंगा 

उन लोगों की तस्‍वीरों से जिनसे मैंने प्‍यार किया. 

मेर नये घर में कोई जगह नहीं होगी 

भविष्‍य के प्रति डर के लिए.

मैं लेटा रहूंगा. मैं सिगरेट सुलगाऊंगा 

और रोऊंगा उन तमाम औरतों को याद कर 

जिन्‍हें मैं गले लगाना चाहता था.

इन सारी प्रसन्‍नताओं के बीच भी 

एक डर बचा रहता है : 

कि एक रोज़, भोरे-भोर, 

कोई कंधा झिंझोड़कर जगाएगा मुझे और बोलेगा –

‘अबे उठ जा साबिर, काम पे चलना है.’

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