वन अधिकार के लिए सतत संघर्षरत है बोलांगीर ओडिशा का ज़िंदाबाद संगठन

गोलप नियाल: 

ज़िंदाबाद संगठन, ओडिशा राज्य के बोलांगीर जिले के 7 ब्लॉकों में कार्यरत स्थानीय लोगों का संगठन है, जो पिछले 22 वर्षों से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ी जाति के श्रमिकों और असंगठित श्रमिकों के अधिकारों के लिए अथक प्रयास कर रहा है। जनता की समस्या, जनता के समाधान, जनता के संसाधन, जनता के फैसले, जनता के नियंत्रण, जनता के नेतृत्व के आधार पर जिंदाबाद संगठन काम कर रहा है। संगठन अपनी स्थापना के समय से ही असंगठित श्रमिकों के जल, जंगल और भूमि अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा के लिए काम कर रहा है।

आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006, विनियम 2008 और संशोधित अधिनियम 2012, के बाद भी आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा कब्जा की गई भूमि को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है। इसके बावजूद संगठन, वन संरक्षण और वनाश्रित समुदायों के विकास के काम में मजबूत इरादों के साथ लगातार कार्यरत है। वन अधिकार कानून के अंतर्निहित उद्देश्य को पूरा करना संगठन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। साथ ही ज़िंदाबाद संगठन कैंपेन फॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी (सीएसडी) से भी जुड़ा हुआ है। 

वन अधिकार मान्यता अधिनियम के लागू होने के 16 वर्ष बीत जाने के बाद भी कई आदिवासी एवं अन्य पारंपरिक वनवासी आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं। जनजातीय कल्याण विभाग, वन विभाग, राजस्व विभाग, जिला स्तरीय समिति (डीएलसी) तथा कानून को लागू करने के लिए अधिकार प्राप्त उप जिला स्तरीय समिति (एसडीएलसी) के अधिकारियों द्वारा कानून की गलत विवेचना और कार्यान्वयन के कारण यह कानून ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है। वन अधिकार अधिनियम का खंड 2 (ए), वन संसाधनों को परिभाषित करता है और गाँव की पारंपरिक सीमाओं के भीतर सभी प्रकार की वन भूमि पर ग्राम सभा के अधिकारों की बात करता है। जबकि अधिनियम का खंड 3, लंबी अवधि के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों को परिभाषित करता है। वन अधिकार अधिनियम की धारा 5, ग्राम सभा को वनों के संरक्षक के रूप में अधिकार देती है और इसमें ग्राम सभा को पेड़ लगाने और वन प्रबंधन जैसे अधिकार प्रदान किए गए हैं। लेकिन राज्य सरकार वन अधिकारों के नाम पर कानून का उल्लंघन कर रही है और केवल वन अधिकार के निजी पट्टे और सामुदायिक जंगलों के नाम पर केवल 40 या 50 डिसमिल भूमि ही दे रही है। 

अनुसूचित जनजाति के लोग और अन्य पारंपरिक वनवासी जो सदियों से जंगलों में रह रहे हैं और जिनके अधिकारों को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है, इस अधिनियम का एक उद्देश्य उनके लिए साक्ष्य संग्रह के लिए आवश्यक ढांचा प्रदान करना भी है। औपनिवेशिक युग के दौरान और स्वतंत्रता के बाद भी भारत में वनों के समेकन के दौरान, पैतृक भूमि और उनके जंगलों पर उनके अधिकारों को पर्याप्त रूप से मान्यता नहीं दी गई थी। इसके बावजूद जंगलों पर निर्भर अनुसूचित जनजातियों ने वन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। 

स्पष्ट है कि आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासियों के साथ ऐतिहासिक अन्याय किया गया है। वन अधिकार कानून ने आदिवासियों और वनवासियों के साथ हुए इस अन्याय को पहले ही स्वीकार किया है, लेकिन कानून को लागू करने के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार और सरकारी विभाग उसी अन्याय के इतिहास दोहरा रहे हैं। अब भी कई आदिवासियों और वनवासियों को उनका अधिकार नहीं मिल पा रहा है। बोलांगीर में वन अधिकार अधिनियम के समुचित कार्यान्वयन के लिए 17 जनवरी 2023 को बलांगीर के जिला कलेक्टर कार्यालय के सामने दुर्यधानो मांझी और लोचन बरिहा के नेतृत्व में जिंदाबाद संगठन ने विरोध प्रदर्शन किया और इस अवसर पर संगठन के केन्द्रीय अध्यक्ष लोचन बरिहा के नेतृत्व में एक जनसभा आयोजित की गई। जिंदाबाद संगठन के संस्थापक त्रिलोचन पूंजी  ने इस जनसभा का संचालन किया, जिसमें किसान नेता बालकृष्ण सांढ़, युवा आदिवासी नेता तंत्र धरुआ और लोचन बरिहा ने प्रमुख अभिभाषण रखे।

माननीय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, ओडिशा सरकार से बलांगीर जिला कलेक्टर के माध्यम से राजस्व गाँव की स्थिति, सामूहिक वन संसाधन अधिकार प्रदान करने, व्यक्तिगत वन भूमि अधिकारों में दोषों का सुधार, अस्वीकृत दावों पर पुनर्विचार आदि सहित 13 मांगें जारी की गई। अतिरिक्त जिला कलेक्टर लक्ष्मण मांझी ने जिला कलेक्टर की ओर से मांग प्राप्त की और इसे ठीक से लागू करने का वादा किया। गोलाप नियाल, अन्नपूर्णा महालिंग, देबराज बुडेक, युवराज बुडेक, अखरमोहन मांझी, गंगाधर मांझी, केशव मांझी जुलूस और विरोध के मुख्य संवाहक थे। बैठक में खपराखोल, बेलपाड़ा, तुरईकेला, बांगोमुंडा, मुरीबहाल प्रखंड के करीब 500 आदिवासी व वनवासी शामिल हुए।

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  • गोलाप नियाल / Golap Niyal

    गोलाप ओडिशा के बालनगीर ज़िले से हैं और ज़िंदाबाद संगठन के साथ जल-जंगल-ज़मीन और श्रमिक अधिकारों के मुद्दों पर काम कर रहे हैं। गोलाप सामाजिक परिवर्तन शाला से भी जुड़े हुए हैं।

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