सुनील पासवान:
‘हमें ये शौक है, देखें सितम की इंतेहा क्या है।’ मेरे पापा श्री दीपानारायण पासवान, उफ़रेल चौक, वार्ड नं 9, अमगाछी पंचयात, सिकटी प्रखंड के निवासी हैं। पापा, जन जागरण शक्ति संगठन के साथ करीब 12 साल से काम कर रहे हैं, जो कि मज़दूर-किसान के हक़-अधिकार को लेकर काम कर रहा है। मेरे पापा ने जब मनरेगा में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए मुहिम चलाई, तब गाँव की करीब 10 महिलाएँ और मेरी माँ भी पापा के साथ थी। जब उन्होंने इस मुहिम को चालू किया, तो बिचौलिया, गाँव के जमींदार और कुछ सरकारी अफसरों ने उन्हें इसे बंद करने को कहा, लेकिन मेरे पापा ने मुहिम को नहीं रोका। अंततः उनकी इस मुहिम में जीत हासिल हुई। इससे गाँव के जमींदार और बिचौलिया उनसे बहुत नाराज़ हो गए और उनके खिलाफ षड्यंत्र बनाना शुरू कर दिया।
कुछ साल पहले पापा ने करीब 4 बीघा सरकारी ज़मीन को गाँव के एक ज़मींदार के कब्ज़े से छुड़वाया था। गाँव के कुछ 25 से 30 भूमिहीन परिवार जो मेहनत-मज़दूरी कर अपना घर चलाते हैं, उन्हें इस ज़मीन पर बसाया गया। पापा के साथ गाँव के करीब 100 महिला-पुरुष इस तरह साथ में रहते हैं, इसलिए ही इस संघर्ष को जीत पाए। गाँव के ये लोग पापा को अपना नेता मानते हैं, और वो कभी किसी के साथ शोषण होने नहीं देते हैं।
मेरे घर जाने के लिए एक गली है, जिसमें रास्ता के लिए एक CO को आवेदन दिया था। उस गली में करीब 10 घर हैं, जिन सभी को रास्ते की ज़रुरत है। उसी गली में अंबरेन्द्र पासवान का भी घर है, जो सबसे पहले पड़ता है। वह हमेशा बारिश के सयम रास्ते को बांस से घेर कर बंद कर देता था। वैसे ही बारिश के कारण गली में कीचड़ होने के कारण सभी को आने-जाने में दिकत होती है, ऊपर से बांस के घेरे के कारण दिक्कत और बढ़ जाती थी। जब अंबरेन्द्र पासवान को इस रास्ते में बांस लगाने से मना किया तो वह नहीं माना। तब पापा ने गाँव के कुछ लोगों से भी बात की और उसे समझाने का प्रयास किए लेकिन वो फिर भी नहीं माना। अंत में गली में रहने वाले लोगों ने बांस के उस घेरे को खुद ही हटा दिया, जिसमें मेरे पापा भी शामिल थे।
कुछ दिन के बाद, गली में घुसते समय पड़ने वाले आम के पेड़ से जब मेरे बड़े पापा का लड़का आम तोड़ रहा था, तो अंबरेन्द्र पासवान ने उसे आम तोड़ने से मना किया। जब मेरा भाई नहीं रुका तब वह मेरी बड़ी मम्मी को गाली देने लगा। इससे दोनों में झगड़ा हुआ, जिसमें अंबरेन्द्र पासवान की पूरी फैमली ने मेरे भाई के साथ मार-पीट की। उस समय वहाँ सिर्फ मेरी बड़ी मम्मी और मेरे बड़े पापा का लड़का ही मौजूद थे। लेकिन इसके बाद उसने चुपके से केस भी कर दिया। इस लड़ाई के दौरान मेरे पापा वहाँ मौजूद भी नहीं थे, लेकिन उन्हें और गली के कुछ अन्य पुरुषों को भी इस केस में फंसा दिया गया। इस केस में यह आरोप लगाया गया कि अंबरेन्द्र पासवान की बहन सपना के साथ अभद्रता की गई, उसे नग्न किया गया और अंबरेन्द्र पासवान के ऊपर धारदार हथियार से वार किया गया। इसके बाद 31 जनवरी 2023 को मेरे पापा को पुलिस ने जेल में बंद कर दिया।
जब मुझे इस बात का पता चला तो मैं सिकटी थाने के अध्यक्ष महोदय से मिलने पहुँचा। मैंने उनको बताया कि यह फर्जी केस है और इसकी निष्पक्ष जाँच होनी चाहिये। बात करते समय थाना अध्यक्ष बोले “इस केस के लिए हम पर राजनीतिक दबाब था, इसलिए हमने इस केस को दर्ज किया है।” अंबरेन्द्र पासवान भाजपा से जुड़ा हुआ है और उनका काम करता है। वह स्थानीय विधायक के संपर्क में भी है, मुझे शक है कि इस फर्जी केस करवाने में गाँव के जमींदार, बिचोलियों, और भाजपा विधायक का हाथ है। यह सिकटी ब्लॉक के प्रशासन और पुलिस का षड्यंत्र है लेकिन मेरे पापा इस फर्जी केस से नहीं डरने वाले हैं। जिस रास्ते को खुलवाने के कारण मेरे पापा पर झूठा आरोप लगाया गया और उन्हें जेल में दाल दिया गया, उसी रास्ते को मेरी मम्मी और गाँव के लोग मिलकर आज बना रहे हैं। मेरे मम्मी-पापा का संघर्ष को देख कर मुझे हिम्मत मिलती है।
अपडेट:
दीपनारायण जी, 4 मार्च 2023 की शाम 7:20 को आखिरकार 1 माह 4 दिन बिता कर जेल से बेल पर बाहर निकले। बाहर निकलते ही संगठन के केंद्र में बैठ, जेल में बीते अनुभव और साथ में बाकी कैदियों के अनुभव साझा किए। उनके लौटने की खुशी में और यहाँ की दमनकारी सामंती ताकतों को चुनौती देने के लिए दो ब्लॉक से उनके घर तक रैली निकाली गई।
जिस समय वो जेल में थे, इस दौरान भी उनके पत्नी राधा, उनके बच्चों और अन्य साथियों ने क्षेत्र में संगठन का काम, और मीटिंग आदि को जारी रखा। जिस सरकारी रोड पर अवैध रूप से कब्ज़ा किया जा रहा था, उस रोड को बनाने के लिए मनरेगा का काम खोला गया। वही मज़दूर जिन पर ज़मीन के चलते फ़र्ज़ी केस हुआ था, वो उसी ज़मीन पर खटकर मज़दूरी प्राप्त कर रहे हैं। इस पूरी घटना से और राधा दीदी- दीपनारायण जी के संघर्षों से हम सभी को जोश, हिम्मत एवं प्रेरणा मिली है। आप सभी को भी मुबारकबाद। लड़े हैं जीते हैं।
— संगठन की ओर से