स्त्री सम्मान एवं सशक्तिकरण – कविता

हेमा जोशी | कंचन जोशी | दिव्या जोशी:

पूजते हो जिसे धन का रूप मानकर 

वो लक्ष्मी देवी नारी है।

पूजते हो जिसे ज्ञान पाने के लिए

वो ब्राह्मणी नारी है ।

मानते हो जिसे शक्ति का स्त्रोत

वो पराशक्ति नारी है।

शुद्धता के लिए लगाते हो जिसमें गोते

वो पावन गंगा देवी नारी है।

पुरुषार्थ जिसके बिना है अधूरा 

वो प्रकृति नारी है।

जिसने नारीत्व का एक नया रूप दिखाया 

वो लक्ष्मीबाई नारी है।

जब धन का विद्या का व शक्ति का 

स्त्रोत ही नारी है,

फिर क्यों होलिका आग में जलाई जाती है,

क्यों भरी सभा में द्रौपदी अपनामित करी जाती है,

सीता की पवित्रता आजमाई जाती है,

आखिर क्यों समाज में नारी को आवश्यक का दर्जा देकर भी 

उसी समाज में महिला दबाई जाती हैं??

दबाई जाती है।।

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