मांदर की थाप के बीच नेतरहाट (झारखंड) में विजय एवं आभार दिवस

विकास कुमार:  

नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को पुनः अधिसूचित किए जाने के प्रस्ताव पर झारखंड सरकार द्वारा रोक लगा दिए जाने के बाद, इस वर्ष 22 -23 मार्च को टूटूवापानी मोड़, नेतरहाट (झारखंड) में केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति गुमला लातेहार द्वारा विजय एवं आभार दिवस मनाया गया। हज़ारों की संख्या में ग्रामीण, विजय दिवस में जुटे थे। कार्यक्रम में बड़ी तादाद में युवाओं और महिलाओं की भी भागीदारी रही। 

ज्ञात हो कि बीते 29 वर्षों से लातेहार और गुमला जिलों के 157 मौजों (पंचायतों) के मातहत 245 गाँव की 1471 वर्ग किलोमीटर भूमि की ज़मीन को सेना की फायरिंग प्रैक्टिस के लिए नोटिफाई किए जाने के खिलाफ विरोध चल रहा था। लोग एक इंच ज़मीन भी देने को तैयार नहीं थे और अपने जल जंगल ज़मीन पर अपने संविधानिक अधिकार की बात करते रहे। एकीकृत बिहार के वक्त बिहार सरकार ने 1999 को नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के संबंध में अधिसूचना जारी कर अवधि का विस्तार करते हुए इसकी अवधि 11 मई 2002 से 11 मई 2022 तक बढ़ा दी थी। पिछले 17 अगस्त, 2022 को राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रेस रिलीज जारी कर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अवधि विस्तार पर रोक लगाने की घोषणा की। इससे आंदोलन की बड़ी जीत हुई। 

23 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना के काफिले को स्थानीय लोगों ने सत्याग्रह और जन आंदोलन के बल पर वापस जाने को मजबूर कर दिया गया था। इसी की याद में और आंदोलन को जारी रखने के लिए हर साल संकल्प दिवस का आयोजन किया जाता है। लेकिन इस साल विरोध की बजाय सरकार को धन्यवाद और आभार प्रकट करने के लिए लोग जुटे थे और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना विस्तार रोकने के बाद लोग अब उम्मीद कर रहे हैं कि केंद्र सरकार भी इस परियोजना को पूरी तरह से रद्द करेगी। 

22 मार्च को कार्यक्रम की शुरुआत में नेतरहाट आंदोलन में अपना योगदान देने वाले मृतकों को याद करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। इसके बाद केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने स्वागत भाषण दिया एवं वार्षिक रिपोर्ट को भी पढ़कर सुनाया। 

मधु टोप्पो ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आंदोलन में महिलाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यहाँ की महिलाओं ने जिस तरह से संगठित होकर आंदोलन किया, वह जीत की मुख्य वजहों में से एक था। कोरदुला कुजूर द्वारा नेतरहाट आंदोलन में युवाओं का योगदान के साथ ग्राम सभा के महत्व पर विस्तृत चर्चा आयोजित की गई। कार्यक्रम में उन कुछ कानूनों के बारे में भी चर्चा की गई जो आदिवासियों के हक अधिकार के लिए बने हैं। रोज़ खाखा द्वारा अपने वनों को बचाने के लिए वनाधिकार कानून 2006 की उपयोगिता के बारे बताया गया। फादर महेंद्र ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी एट्रोसिटि एक्ट) के बारे में विस्तार से चर्चा की और कानूनी प्रक्रिया के बारे में भी समझाया।

इस मौके पर झारखंड की मिट्टी से उपजी जन कवयित्री जसिंता केरकेट्टा द्वारा हाल ही में उनके द्वारा रचित कविताओं का पाठ किया गया। इसके अलावा प्रभाकर तिर्की, टीएसी के पूर्व सदस्य रतन तिर्की, पीटर बेंग, शशिता कुजूर ने भी अपने विचार लोगों के साथ साझा किया।

विजय दिवस में कई आदिवासी सांस्कृतिक गीत, नृत्य पेश किए गए। देर शाम तक लोग मांदर-ढोल की थाप पर थिरकते रहे। रात को विख्यात फिल्मकार श्रीप्रकाश की दो फिल्में : नेतरहाट आंदोलन के शुरुआती संघर्ष पर केंद्रित फिल्म “किसकी रक्षा?” और झारखंड के दो प्रमुख जन आंदोलन नेतरहाट आंदोलन और कोयल कारो आंदोलन के 15 साल गुज़रने के बाद इसकी समीक्षा करती फिल्म “हूल सेंगल अगुवा” का प्रदर्शन हुआ। विजय दिवस में जुटे लोगो ने हर साल की तरह रात जंगल में बिताई, और अपना खाना खुद पकाया।

ऐतिहासिक नेतरहाट आंदोलन ने तमाम चुनौतियों के बावजूद लंबा संघर्ष करते हुए जीत हासिल की है। आशा है कि जल-जंगल-ज़मीन को बचाने के लिए संघर्षरत देश और दुनिया भर के आंदोलनों को यह प्रेरणा और दिशा देता रहेगा।

Author

  • विकास कुमार / Vikash Kumar

    विकास युवा विचारक, स्वतंत्र पत्रकार एवं प्रगतिशील सिनेमा आंदोलन से जुड़े हैं, झारखंड के निवासी,हैं और फिलहाल विशाखापटनम में रहते है।

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