इस गीत को डॉ. सुरेश डुडवे ने लोहंग्या बाई (ग्राम साकड़) से सुनकर लिखा है ।
मध्य प्रदेश राज्य आदिवासी बाहुल्य राज्य है। यहाँ पर भील, भिलाला, बारेला, गोंड आदि आदिवासी समाज के लोग रहते हैं। सभी आदिवासी समुदायों की अपनी विशेष संस्कृति (भाषा-बोली, खान-पान, नृत्य) है। इनके अधिकतर त्यौहार कृषि आधारित ही होते हैं। पश्चिम मध्यप्रदेश के आदिवासी होली का त्योहार मनाते हैं। होली के समय नृत्य एवं कई लोकगीत भी गाए जाते हैं । उनमें से एक गीत प्रस्तुत है –
हुवी दीवावी दूये बयोने
भरे सीयावे आवी दीवावी बाय
भर उनावे आवी हूवी बाय
डूडे कावो मां आवली वो हूवी बाय
डूडे कावो मां आवली वो …..
वाक्या ने कुच्या लावी वो हूवी बाय
पटल्या पूजारा ने घरे वो
हूवी ने दाहड़े राबेड़ी रांदी
पेटो मां गुड़घुच्यो कोरे वो
हूवी बाय ने रातेला डूवा
केसेवेड्या रोंगे लावे वो
जुगा बाय तारा धोतीया जेसे मेलो वो
झीनी उड़ी वो गुलाल
पीरेली भूजाय तारो घुमतो घुमतो मेलो वो
झीनी उड़ी वो गुलाल
रुज्या मावो मां रुजेड़ी चोरे
नाम्बी छोटी काने कोरे
बुच्यो कुतरो लाग्यो वो लागे
होयी हरीने ढासी गोयी ।।
भावार्थ:-
इस लोकगीत में कहा गया है कि होली और दीपावली दो बहनें हैं। दीपावली के आने के समय सर्दी का मौसम होता है। वहीं होली के आने का मौसम गर्मी का होता है। होली माता, गाँव के पटेल और पुजारा के घर आती है तथा होली के आने से गाँव में लोगों के घर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। होलीबाई की आँखों का रंग लाल है, जो पलाश के फूलों की तरह है।
फीचर्ड फोटो प्रतीकात्मक है।