सुनील पासवान:
नरेश धड़कार एक गरीब घर से थे, जिनकी उम्र लगभग 35 साल की थी। इनका घर बिहार के अररिया ज़िले के नरपतगंज थाने के पास में हैं। वो एक कारीगर थे, जो रोज़ बांस की टोकरी और गर्मी के समय इस्तेमाल किया जाने वाला हाथ पंखा बनाकर बेचते थे और इसी से अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे।
14 जून 2022 की शाम को जब वो अपने घर से लोटा लेकर बाहर की तरफ जा रहे थे तो नरेश को पुलिस ने रोका और शराब पीने के मामले में उन्हें थाने ले जाया गया और हवालात में बंद कर दिया गया। देर शाम उनकी पत्नी सोलटी देवी थाना पर जब उनकी खबर लेने पहुंची तो देखा कि उन्हें बंद करके रखा गया है। सोलटी देवी का कहना है कि जब उनके पति को पुलिस पकड़ के ले गयी तब उनके पति एकदम स्वस्थ थे और उन्हें कोई बीमारी भी नहीं थी।
दूसरे दिन नरेश को कोर्ट ले जाया गया और कोर्ट से बिना मेडिकल कराए उन्हें जेल भेजा दिया गया। पांच दिन बाद सोलटी देवी के घर पर एक अंजान व्यक्ति आता है और बोलता है कि आपका पति बहुत बीमार हैं, आपको अभी सदर अस्पताल अररिया पहुंचना है। जब सोलटी देवी अररिया के सदर अस्पताल पहुँची तो देखा कि वहाँ उनके पति की मृत्यु हो गई है और अस्पताल में नरेश की लाश पड़ी हुई है। सोलटी देवी के मन में बहुत सारे सवाल थे जो अकेला होने के कारण वह तब नहीं पूछ पाई।
एक महिला जिसे सालों से सवाल पूछने से दूर रखा गया हो, शायद उसके मन से तब सवाल बाहर ना निकले हों लेकिन इस घटना से हमारे मन में भी सवाल तो उठते हैं। सोलटी देवी पोस्टमार्टम के बाद अपने पति की लाश को घर ले गई। हिन्दू धर्म के अनुसार नरेश का अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान जब लाश को नहलाया जा रहा था तो देखा कि नरेश के शरीर पर बहुत जगहों पर चोट के निशान थे। इसके बाद जन जागरण शक्ति संगठन के साथियों ने इस घटना को लेकर ज़िला स्तर पर आवेदन दिया।
एक आवेदन जेल अधिकारी को भी दिया, और नरेश की मौत के कारण की जानकारी मांगी गई। जेल के अधिकारी से सूचना मिली कि नरेश धड़कार को इलाज के लिए जब सदर अस्पताल ले जाया गया तो वह ज़िंदा थे। वहीं सदर अस्पताल प्रशासन ने बताया कि जेल से नरेश की लाश को लाया गया था। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि एक व्यक्ति जिसकी मौत हो जाती है और उसके शरीर पर चोट के निशान मिलते हैं, उसकी मौत का ज़िम्मेदार कौन है? पुलिस या जेल अधिकारी?

फीचर्ड फोटो आभार: पब्लिक डोमेन