विष्णु कुमारी:
मेरा नाम विष्णु है, मैं राजस्थान के झालावाड़ ज़िले के झिरी नामक गाँव की रहने वाली हूँ। मैं एक गरीब परिवार से आती हूँ, मेरे माता-पिता छोटे किसान हैं जो खेती करके में हमारा पेट भरते हैं और खेती के साथ-साथ मेरी माँ मज़दूरी भी करती है। फिर भी उन्होंने मुझे पढ़ाया है, मेरी दो बहने और एक भाई है। बचपन में मैं सरकारी विद्यालय में पढ़ती थी तो वहाँ हमारे साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता था, अध्यापकों द्वारा भी और बच्चों द्वारा भी, फिर मैं एक प्राइवेट विद्यालय में पढ़ने जाने लगी।
उस समय मेरे गाँव की सभी महिलाएं अनपढ़ थी, दुकान-बाज़ारों में उनके साथ हर प्रकार की बेईमानी की जाती थी। अशिक्षित होने के कारण उन महिलाओं का शोषण किया जाता था। एक तरह से देखें तो उनको किसी भी स्तर पर समानता का अधिकार प्राप्त नहीं था। हमारे गाँव के किसानों के साथ भी कई तरीकों से बेईमानी की जाती है। लोगों के अशिक्षित होने के कारण अक्सर उनका शोषण किया जाता है। अपने आस-पास यह सब होता देख मैंने सोचा कि मैं 12वीं कक्षा पास कर अपने झिरी गाँव के बच्चों को पढ़ाने का कार्य करूंगी। यह सोचकर फिर मैं मंथन विद्यालय में पढ़ाने लगी।
मेरा प्रयास होता कि सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, उनमें से किसी के साथ भी किसी भी प्रकार का भेदभाव ना हो। इन सब बातों को ध्यान में रखकर मैं बड़े बच्चों को संविधान के बारे में भी पढ़ाने लगी। साथ ही गाँव की महिलाओं को शिक्षित करने के काम पर भी मैंने ध्यान दिया ताकि उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी मिले। गाँव में समानता का अधिकार पर भी मैंने कार्य किया।
मैं बच्चों को बहुत ही प्यार से पढ़ाती हूँ, बच्चों के साथ किसी भी तरह की मारपीट नहीं करती। अब गाँव की महिलाएँ बाज़ारों में जाकर अपनी फसलों को सही दामों पर बेच पाती हैं, दुकानों पर उनके साथ अब पहले जैसी बेईमानी भी नहीं होती। अब वे साथ मिलकर मीटिंग करने लगी हैं और उनके बच्चे भी शिक्षित होने लगे हैं।