अरबिंद भगत:
हमने भी मांगा था नया साल उनसे,
पर उन्होंने दी गोलियों की सौगात ।
हमने ने भी दुआ की थी खुशहाल नए साल की,
पर हमें मिला उनसे मौत का तोहफ़ा ।
हम भी चाहते थे ,
हमारे जल, जंगल, जमीन पर हमारा नाम,
पर उन्होंने हमें दिया लहूलुहान शरीर का दान ।
हमने भी बड़ी उम्मीदों से थामा था,
अपने नए देश का साथ,
पर आज़ादी के 1 साल बाद ही,
उन्होंने हमसे दगा किया ।
हमने भी सोचा हम हैं ,
मालिक खुद अपने देश में,
अच्छा है,उन्होंने हमारा ये हमारा भरम भी तोड़ दिया ।
हम भी देख रहे थे सुनहरे सपने,
अपने नयी उम्मीद से भरी भविष्य की,
पर उन्होंने हमारी उम्मीदों को लाल कर दिया ।
हमने भी चाहा था नववर्ष मनाना,
अपने जंगल,पहाड़ों,पेड़ो के साथ,
पर उन्होंने हमारे संगियों को हमसे छीन लिया ।

अपने संगियों के साथ,
आज के दिन हम याद करते हैं,
हमारे पुरखों को,
जिन्होनें हमारे लिए अपनी जान दी,
और याद करते हैं उनके सीख को,
की – जो पाना है कुछ तो अब,
अब लड़ना पड़ेगा,
सबसे भिड़ना पड़ेगा,
तभी बच पायेगा तुम्हारा अस्तित्व ।