मैं आदिवासी महिला हूँ

मैं आदिवासी महिला हूँ,
मेरी हज़ारों प्रवृतियाँ हैं, 
मेरी सैकड़ों प्रकृतियाँ हैं,
और मेरे हज़ारों रूप हैं,
मैं कभी सिनगी दई के रूप में,
समाज में विपत्ति आने पर,
खुद दुश्मन से लड़ने
और उन्हें बार-बार हराने को
को हो जाती हूँ तैयार,
क्योंकि मेरे संस्कारों ने मुझे,
पीठ दिखाना नहीं बल्कि
संकट का बहादुरी से,
सामना करना सिखाया है।

मैं कभी वो महिला हूँ,
जो अपने श्रृंगार रूपी
हंसिया, दरांती, और कुल्हाड़ी लेकर,
हर रोज़ बेख़ौफ़
निडर, मजबूत होकर जाती है जंगल,
क्योंकि मेरे पूर्वजों ने मुझे मेरी
आत्मरक्षा और जंगल से प्यार करना
दोनों सिखाया है।

कभी मैं वो महिला हूँ
जो मदईत परम्परा के अन्तर्गत,
बरसात के दिनों में,
उन कीचड़ से सने खेतों में घंटो,
सबके साथ गाने गाकर,
सबको सामाजिक मूल्य सिखाती
और खुद भी सबसे सीखती है।

कभी मैं वो महिला हूँ
जिसके जन्म पर,
खुशियां मनायी जाती है
और उसे अपनी इच्छा अनुसार
प्रेम और हमसफर चुनने का
मौका दिया जाता है,
और ऐसे मैं समाज से
समानता और स्वतंत्रता का
मूल्य सीखती हूँ ।

कभी मैं वो महिला हूँ,
जो पटिया में खजूर के,
एक-एक पत्तों को गूँथते,
घर में सबको साथ लेकर चलना सीख,
उसे ज़िन्दगी भर जीती है।

कभी मैं वो नवयुवती हूँ
जो धुमकुड़िया में,
अपने संगियों के संग,
भावी जीवन के महत्वपूर्ण गुर सीखती है,
और ज़िन्दगी भर उस सीख को जीकर
अगली पीढ़ी को उसे सौंपती है।

मैं कभी वो महिला हूँ
जो हर परब में पूरे रात
अखड़ा में नाचकर 
सामूहिकता सीखती है,
और ज़िन्दगी भर उसका 
अनुसरण करती है।

कभी मैं वो महिला हूँ 
जो बेतरा प्रथा को,
इस समझ से निभाती है कि,
उसके बच्चों पर आने वाली 
हर विपत्ति को,
सबसे पहले उससे टकराना होगा।

मैं कभी जंगल अम्मा भी हूँ,
जो जंगल को अपने बच्चों सा
प्यार करती है।

मैं कभी फूल झानो
और झलकारी बाई भी हूँ,
जो अपनी मातृभूमि के लिए,
प्राणों की आहुति 
देने को भी तैयार है।

मैं कभी महान वीरांगना
दुर्गावती भी हूँ,
जो अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए,
बड़े से बड़े साम्राज्य से,
टकराने को भी तैयार थी।

मैं कभी रोज केरकेटा भी हूँ
जो अपने ही समाज
के मूल्यों, प्रथा,परंपराओं को,
प्रश्न करने को भी तैयार है।

मैं वो सुमति उराँव भी हूँ
जो अपने समाजिक मूल्यों को
बचाने के खातिर,
करोड़ो ठुकराने को भी तैयार है।

कभी मैं सोनी सोरी भी हूँ,
जो अपने यौनांगों में,
पत्थर भर दिए जाने के बावजूद,
सच्चाई से डिगने को तैयार नहीं है।

और अंत में
मैं वो महिला हूँ
जो समाज में वैयतिक्ता,
के साथ अपने सामाजिक मूल्यों में
सामंजस्य बिठाकर चलने को
हमेशा तैयार है।

Author

  • अरबिंद भगत / Arbind Bhagat

    अरबिंद, झारखण्ड राज्य से हैं। वर्तमान में अरबिंद लखनऊ के बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग से पीएचडी कर रहे हैं।

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