नवीन शर्मा और राजू राम:

पिछले कई सालों से गर्भसमापन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। हाल ही में अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड मामले में दिये गये निर्णय को पलटकर एक बार फिर से इस मुद्दे पर वाद-विवाद छेड़ दिया है।

सन 1973 में रो बनाम वेड के फैसले में अमेरिका की सभी औरतों को गर्भसमापन का अधिकार मिला था। अमेरिका में पहली बार गर्भसमापन को संवैधानिक वैधता मिली थी। लेकिन पिछले माह में अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने पचास साल से पुराने रो बनाम वेड निर्णय को पलट दिया हैं। रो बनाम वेड एक ऐतिहासिक फैसला था लेकिन कई धार्मिक संस्थाएं शुरू से ही इस फैसले का विरोध करती आ रही हैं। क्योंकि उनका मानना है, कि भ्रूण को भी जीवन जीने का अधिकार है और उसको समाप्त कर देना उनके धर्म के खिलाफ़ है। आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि विश्व भर के 24 देशों में गर्भसमापन पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

गर्भसमापन से क्या मतलब है?

गर्भसमापन एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसमें पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा दवा और सर्जरी के माध्यम से गर्भधारण को रोका जाता हैं।

भारत का कानून इसके बारे में क्या कहता है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 312 गर्भसमापन कारित करने के बारे में उल्लेख करती है। इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री की स्वेच्छा से उसका गर्भसमापन कारित करता है और वह सद्भावना पूर्वक नहीं किया गया है, तो इसे दंडनीय अपराध माना गया है। इस धारा के अंतर्गत अपराध में निम्न दो तत्व समाहित किए गए हैं। पहला, गर्भवती स्त्री का स्वेच्छा से गर्भ समाप्त करना। दूसरा, ऐसा गर्भ समापन सद्भावना पूर्वक उस स्त्री का जीवन बचाने के लिए किया हो। संक्षेप में, इस धारा के तहत भारत में महिला का जीवन बचाने के लिए गर्भसमाप्त करने की अनुमति है।

भारत में पहली बार गर्भसमापन पर अलग से कानून 1971 में पास किया था। जो कि गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971 (The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) के नाम से जाना जाता है और यह कानून शांतिलाल शाह समिति की अनुशंसा पर बनाया गया था।

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य क्या था?

इस अधिनियम को लाने का मकसद गैरकानूनी एवं असुरक्षित गर्भसमापन को रोकना था, क्योंकि देश के कई क्षेत्रों में गर्भसमापन अयोग्य डॉक्टरों या नर्सों से करवाया जाता था जिससे महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता था। इसलिए यह अधिनियम पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायियों/अस्पतालों द्वारा गर्भसमापन के उद्देश्य से लाया गया था। अब क़ानूनी तौर पर अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाया जा सकता है। यह कानून कुछ विशेष परिस्थितियों में इसकी इजाज़त देता है।

किन परिस्थितियों में गर्भसमापन किया जा सकता है?

इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित परिस्थितियों में गर्भसमापन किया जा सकता है:

  1. अगर गर्भधारण से महिला की जान को जोख़िम हो या वह उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हो,
  2. इस बात की बड़ी संभावना हो कि वह बच्चा बड़ा होकर शारीरिक व मानसिक रूप से विकृत या असामान्य हो,
  3. जब महिला के साथ बलात्कार के कारण वह गर्भवती हो जाए,
  4. जब महिला गर्भनिरोधक विधियों के विफ़ल होने से गर्भवती हो जाए।

वक़्त के साथ इस अधिनियम में कई ज़रूरी बदलाव किए गए। लेकिन सबसे ज़रूरी बदलाव वर्ष 2021 में किया गया। इस अधिनियम को गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) अधिनियम 2021 (The Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Act, 2021) के नाम से जानते हैं।

भारत में एक गर्भवती महिला 20 सप्ताह तक के गर्भधारण को समाप्त करवा सकती है। 1971 के अधिनियम के तहत एक 12 से 20 हफ्ते के गर्भधारण को समाप्त करवाने के लिए 2 डॉक्टरों  की इजाज़त की ज़रूरत होती थी। नए संशोधन के बाद अब 12 से 20 हफ्ते की गर्भधारण को समाप्त करवाने के लिए सिर्फ 1 डॉक्टर की इजाज़त की ज़रूरत है।

2021 में हुए संशोधन के बाद कुछ विशेष मामलों में एक महिला 20-24 हफ्तों तक की गर्भधारण को समाप्त करवा सकती है। जैसे कि अगर महिला एक बलात्कार की पीड़िता है, नाबालिग है या फिर शारीरिक रूप से विकलांग है, तो गर्भधारण को समाप्त करवा सकती अगर कोई महिला 24 हफ्ते से अधिक की गर्भधारण को समाप्त करवाना चाहती है तो इसके लिए मेडिकल बोर्ड की इजाज़त लेनी होगी।

इस कानून की ख़ास बात यह है कि कोई भी अस्पताल या डॉक्टर गर्भसमापन करवाने वाली महिला का नाम या उससे जुड़ी कोई भी जानकारी को पब्लिक नहीं कर सकता है। अगर वह ऐसा करता है तो इसके लिए सजा का प्रावधान है।

गर्भ समापन के बारे में सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

सूचिता बनाम चंडीगढ़ प्रशासन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रजनन का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है। और महिलाओं को अपने शरीर पर पूरा हक़ है, लेकिन गर्भसमापन का पूर्ण अधिकार नहीं है। इस पर न्यायोचित प्रतिबंध लगाये जा सकते है। और केवल कानून के दायरे में ही गर्भ का समापन किया जा सकता हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बोला कि भविष्य में पैदा होने वाले बच्चे के जीवन की सुरक्षा करना राज्य की ज़िम्मेदारी है जो कि एक न्यायोचित प्रतिबंध है। इसलिए महिलाओं को गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971 कानून के दायरे में ही गर्भसमापन की अनुमति दी जा सकती।

कानून में कमियां:

  1. गर्भसमापन से सम्बन्धित कानून, गर्भसमापन या गर्भपात को महिलाओं के अधिकार के रूप में नहीं देखता।
  2. इस अधिनियम में सिर्फ गर्भवती महिला शब्द का उपयोग किया हुआ है, इस तरीके से ट्रांस-नॉन बाइनरी समुदाय के लोगों को अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया है।
  3. इस अधिनियम के तहत गर्भसमापन के लिए महिला की इजाज़त से ज़्यादा डॉक्टरों की इजाज़त को महत्व दिया गया है।
  4. इस अधिनियम में 24 हफ्तों के बाद के गर्भसमापन के लिए एक मेडिकल बोर्ड की इजाज़त को ज़रूरी बनाया गया है। लेकिन इस बोर्ड तक महिला का पहुंचना, बोर्ड के बनने की प्रक्रिया, फिर उसकी कार्यवाही और उसके बाद फैसला। यह अपने आप में एक जटिल और थका देने वाली प्रक्रिया है, जहाँ सभी महिलाएं हो सकता है नहीं पहुँच पायें। इस तरह से बहुत सारी महिलाओं को इस कानून के दायरे बाहर कर दिया गया है।

फीचर्ड फोटो आभार: medium.com

Author

  • राजू राम / Raju Ram

    राजू ,राजस्थान के जोधपुर ज़िले से हैं और व्हाई.पी.पी.एल.ई. (YPPLE) के तौर पर सामाजिक न्याय केंद्र के साथ जुड़े हैं। वर्तमान में राजू मध्य प्रदेश में जेनिथ सोसायटी फॉर सोशियो लीगल एम्पावरमेंट संगठन के साथ कार्य कर रहे हैं। वह बास्केटबॉल खेलना एवं किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

    Ram Raju

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