बहस
समीक्षा:
महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले की समीक्षा, कष्टकारी जन आन्दोलन के साथ जुड़कर स्थानीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला गलत है, और ऐसा हम अपने देश में नहीं होने देंगे। बच्चे को जन्म देना है या नहीं, ये महिला का अपना निर्णय है। हर महिला अपने बच्चे के आने से खुश होती है, लेकिन यदि किसी कारण से गर्भपात करवाने की ज़रूरत है तो यह अधिकार महिला के पास होना चाहिए।
बच्चे को जन्म देना है या नहीं, महिला को प्राप्त यह अधिकार अगर किसी कानून के कारण छिना गया तो महिलाएं लाचार ही बनेंगी। शादी से पहले किसी कारण से वो अगर माँ बनी तो जिंदगी भर बच्चे की ज़िम्मेदारी उसे ही उठानी पड़ेगी। आज भी समाज में ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जिनमें शादी से पहले बच्चे को जन्म देने वाली महिला को समाज सम्मान नहीं देता है। बलात्कार पीड़ित महीलाओ के लिये ऐसा कोई कानून अभिशाप ही होगा, यह उन्हे आत्महत्या करने के लिये मजबूर करने वाला कानून होगा।
ऐसा कानून जो महीलाओं का मान भंग करता हो, हम उसका विरोध करते हैं।
सीमा कुमारी:
उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले की सीमा, दिशा संस्था के साथ जुड़कर स्थानीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।
लम्बे समय से समाज में गर्भपात को गलत धारणा के तौर पर देखा जाता रहा है। धार्मिक नजरिये से गर्भपात को एक पापकर्म के रूप में देखा जाता है। जब वैज्ञानिक तकनीक और आधुनिक दवाओं का विकास नहीं हुआ था तो उस समय भी गर्भपात किया जाता था। बहुत सी ऐसी घटनाएं होती थी, जब लड़कियाँ बिनब्याही माँ बन जाती थी, तो समाज के डर और लोकलाज के कारण दूर के रिश्तेदारों के यहाँ बच्चों को पैदा कर जंगल-झाड़ियों में छोड़ दिया जाता था, जिसे जंगली जानवर अपना शिकार बना लेते थे, उनमें से यदि कोई बच गया तो, बाद में कोई उन मासूमों को पाल लेता था। आज भी ऐसी घटनाएं कहीं न कहीं खबरों के माध्यम से देखने-सुनने को मिल ही जाती हैं।
आधुनिक समाज में भी गर्भपात को गलत माना जाता है, लेकिन मेरा मानना है कि गर्भपात कभी-कभी हमारे लिए अच्छा भी साबित होता है। अनचाहे गर्भ से छूटकरा पाने के लिए भी गर्भपात कराना ज़रूरी हो जाता है। कभी-कभी नौकरी और व्यवसाय में प्रेगनेंसी बाधक न बने इसलिए भी कामकाजी महिलाएं एबॉर्शन करवा लेती हैं, जो काम के लिहाज़ से उचित भी है।
लेकिन लम्बे समय से तकनीक और गर्भपात की दवाओं के विकास के बाद समाज उसका दुरूपयोग भी बहुत तेज़ी से करने लगा है। भारत जैसे देश में जहाँ की संस्कृति पुरुष प्रधान है, वहाँ गर्भपात की तकनीक के विकास के बाद महिला-पुरुष लिंगानुपात में बहुत अधिक गिरावट आई है, जो समाज के लिए बहुत अधिक विनाशकारी बनता जा रहा है। हमारे देश में भ्रूण के लिंग की जांच करवाने को कानूनी अपराध घोषित किया गया है, ऐसा करने वालों को अर्थदंड के साथ ही जेल की सजा का प्रावधान भी किया गया है, इसके बावजूद भी देश में लिंग की जांच धड़ल्ले से की जा रही है। बहुत से लोगों को जैसे ही पता चलता है कि गर्भ में पलने वाली लड़की है, वह उसका गर्भपात करा देते हैं। मेरी नज़र में यह अमानवीय और गैरकानूनी कृत्य है, जो समाज को विकृति और विनाश की तरफ लेकर जाता है।
श्रेया:
हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ क्षेत्र की श्रेया, किसान सभा संगठन के साथ जुड़कर स्थानीय समुदायों के हक़-अधिकारों के लिए काम करती हैं।
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात कराने वाली महिलाओं को सज़ा का प्रावधान वाले कानून का मैं विरोध करती हूँ, क्यूंकी इससे महिलाओं का अधिकार छिन रहा है। कोई भी महिला अपने बच्चे की अच्छे से देख-रेख करना चाहती है, लेकिन उसका समय वह खुद तय करना चाहेगी। कोई भी महिला नहीं चाहेंगी कि उसे अपने खुद के बच्चे के जन्म के कारण कोई भी परेशानी हो।
हर माँ अपने बच्चे का पालन पोषण अच्छे से करना चाहती है और एक बच्चे का पालन पोषण करने के लिए उसके पास उपयुक्त साधन होने चाहिए। लेकिन कभी-कभी वो इतनी सक्षम नहीं होती कि वह यह सब कर पाये तो उस समय उसके लिए अबोर्शन करवाना ज़रूरी हो जाता है।
विकाश:
झारखण्ड के साथी विकाश, युवा विचारक, स्वतंत्र पत्रकार एवं प्रगतिशील सिनेमा आंदोलन से जुड़े हैं।
मैं अबॉर्शन के अधिकार के पक्ष में हूँ। अमेरिका में एबॉर्शन को संवैधानिक अधिकार के दायरे से हटाने का सुप्रीम कॉर्ट का फैसला निश्चित ही 2022 में एक बहुत ही दकियानूसी कदम है जो पूरी तरह से महिला अधिकारों का हनन करता है। अब वहाँ राज्यों को अपने हिसाब से कानून बनाने का अधिकार मिलेगा। अमेरिका में अनेक राज्य ऐसे हैं जो रिपब्लिकन पार्टी (वहाँ का दक्षिणपंथी राजनीतिक दल) के नियंत्रण में हैं, इन राज्यों में शोषित समुदाय जैसे कि ब्लैक, लाटिनो और अन्य गरीब लोगों पर इसका सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव होगा जिन्हें अब एबॉर्शन कराने के लिए लंबी दूरी तय करके और ज़्यादा पैसे खर्च करके अन्य राज्यों में जाना पड़ेगा। इससे गरीब एकल महिलाओं पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा, सही इलाज के अभाव में उनकी मृत्यु भी हो सकती हैं। महिला को अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का अधिकार, उसका अपना होना चाहिए। नैतिक और धार्मिक पूर्वाग्रह से प्रेरित कट्टरपंती एबॉर्शन का विरोध करके महिलाओं का यह अधिकार छीनने का कोशिश कर रहे हैं।
कोर्दुला:
झारखंड के रांची ज़िले से कोर्दुला, महिलाओं और बच्चों के सवालों पर लंबे समय से काम करते आ रही है और झारखंडी आदिवासी वुमेन्स एसोशियन शुरुआत करने में प्रमुख भूमिका निभाई हैं।
विशेष परिस्थितियों में महिलाओं को गर्भपात करने का अधिकार होना चाहिए, ये परिस्थितियां कई तरह की हो सकती हैं। यदि गर्भपात के खिलाफ कानून बन जाता है तो यह महिलाओं के लिए अच्छा नहीं होगा।
दिनेश कुमार कुड़पे:
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले के दिनेश, किसान संघर्ष समिति के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा, गर्भपात कराने वाली माहिलाओं को सजा का प्रावधान वाले कानून का मैं विरोध करता हूँ। क्यूंकि इससे महिलाओं का अधिकार छिन रहा है, कोई भी माँ अपने बच्चे को मारना नहीं चाहती, लेकिन कुछ परिस्थति ऐसी होती हैं जहाँ अबोर्शन कराना पड़ता है। कुछ मामलों में महिलाएं आर्थिक रुप से सशक्त नहीं होती, कुछ महिलाएं उस वक्त पर माँ नहीं बनना चाहती, कुछ नाबालिग होती हैं, तो कुछ बलात्कार का शिकार होती है। ऐसे में महिला का माँ बनने या ना बनने का उसका अधिकार छिन जाने पर महिला आर्थिक, मानिसक एवं शारिरिक रुप से कमज़ोर हो जाती है। लेकिन अबोर्शन के कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते हैं, जिन्हे हमें समझना होगा। अबोर्शन कराने के बाद कुछ महिलाएँ दुबारा माँ नहीं बन पाती, कुछ शारीरिक, रूप से कमज़ोर हो जाती हैं, ऐसे में अबोर्शन से पहले डाॅक्टर की सलाह लेना बहुत ज़रूरी है।
शुभम:
उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद ज़िले के शुभम, अवध पीपुल्स फोरम के साथ जुड़कर युवाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं।
हर महिला माँ नहीं बनना चाहती, मेरी कई दोस्त हैं जिनकी शादी घर वालों ने कराई है। उनके पति का व्यवहार हिंसक है, और वह महिला नहीं चाहती कि ऐसे आदमी के साथ बच्चा करे। वो अपने पिता का अपमान नहीं कर सकती इसलिए रिश्ता बनाए हुए है। जब साहस कर लेगी तो पति से तलाक लेकर आगे पढ़ना चाहेगी। उसका ये भी मत है कि उसको नसबंदी करानी है, उसे बच्चे नहीं चाहिए।
एक बड़ा वर्ग अपनी पहचान को अपनाते हुए अपनी शारीरिक ज़रूरत और सेक्सुएलिटी को अपने परिवार के सामने रख रहा है। एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के लोगों के साथ हुए कई सर्वे से ये बात सामने आई है कि वो बच्चा पैदा नहीं करना चाहते, बल्कि माँ और माँ या पिता और पिता बनने के लिए बच्चों को गोद लेना ज़्यादा पसंद करते हैं। ऐसे में हमें भी मानव व्यवहार और उसकी ज़रूरत को समझते हुए सभी पक्षों की मांग को समझना होगा।
मेरे अनुसार गर्भपात कराने का अधिकार मिलना चाहिए। कुछ कारण जो मैं ज़रूरी समझता हूँ –
1. महिला का पूरा जीवन इस फैसले से प्रभावित होता है।
2. आबादी लगातार बढ़ रही है इसको कम करने में भी ये एक बड़ा कदम है, क्यूंकि हर सेकंड भारत में ही 25 अनचाहे बच्चे पैदा होते है।
3. जिन महिलाओं पर पुरुष सीधे अधिकार नहीं कर पाते, उनके साथ ज़बरदस्ती करके, गर्भधारण करवाके अपना अधिकार जताते है।
4. महिला शारीरिक संबंध बनाने के बाद अगर अनचाहा बच्चा गिरा नहीं सकती तो उसे जबरन रिश्ता रखना पड़ता है।
आरज़ू:
उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद ज़िले की आरज़ू, अवध पीपुल्स फोरम के साथ जुड़कर युवाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करती हैं।
मैं भी अबोर्शन के पक्ष में हूँ। कारण-
- पूंजीपति लोग तो पैसे या अपने सामाजिक प्रभाव का इस्तेमाल कर किसी भी तरह एक या दो बच्चों के बाद गर्भपात करा देते हैं, लेकिन गरीब तबके के लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं।
- गरीब वर्ग के लोगों को अबोर्शन के नाम पर डराया जाता है कि यह कानूनी अपराध है, जबकि पहले ही ज़्यादा बच्चे होने के कारण वह शिक्षा और संपत्ति से वंचित हैं।
- यदि कोई नाबालिग लड़की गर्भवती हो जाती है तो सजा के डर से उसे मजबूरन माँ बनना पड़ता है।
मंजू:
छत्तीसगढ़ के महासमुंद ज़िले की मंजु, स्थानीय संगठन दलित आदिवासी मंच के साथ जुड़कर काम कर रही हैं।
माँ से उसके बच्चे को दूर करना, माँ के लिए मौत के समान है। हर लड़की चाहती है कि वो माँ बने। हमे तो उस इंसान को मिटाना है जो किसी नाबालिग के साथ अत्याचार करता है, उसके लिए कड़ी से कड़ी सज़ा होनी चाहिए। माँ के कोख में मौजूद बच्चे को गिरा देने पर संभव है कि वह दुबारा माँ ही ना बन सके।
शम्भू भील:
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले के शम्भू , स्थानीय संगठन खेतिहार खान मज़दूर संगठन के साथ जुड़ कर काम कर रहे हैं।
हर महिला जल्दी माँ नही बनना चाहती है। अगर महिला कम उम्र में प्रेगनेंट हो गयी तो उसे कम उम्र में ही घर परिवार, समाज की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहाँ राजस्थान मे आदिवासी महिलाओं की कम उम्र में शादी हो जाती है, और कई मामलों में वह कम उम्र में विधवा भी हो जाती हैं।
हम गर्भपात कराने के पक्ष में हैं, ज़िंदा जलने से तो अच्छा भ्रूण विकासित होने से पहले ही उसे हटा देना है। कई औरतें ऐसी होती हैं जिनको बच्चा नहीं चाहिए, अनचाहा बच्चा होने पर कई मामलों में वह जिन्दा बच्चों को इधर-उधर देती हैं, क्यूंकि कानून गर्भपात की इजाज़त नहीं देता। धनी लोग जब गर्भपात कराते हैं तो पाप नहीं लगता और कमज़ोर वर्ग के लोग ऐसा करते हैं तो ये कानूनन अपराध है!