एड. आराधना भार्गव:

अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात से जुड़े पचास साल पुराने फैसले को पलट दिया। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के बाद अब वहाँ के कट्टरपंथी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। दुनिया में गर्भपात की संवैधानिक वैधता धार्मिक समूह के लिए एक बड़ा मुद्दा रही है, क्योंकि उनका मानना है कि भ्रूण हर स्थिति में जीवन जीने का अधिकारी है। अमेरिका के फीनिक्स शहर में एक पादरी जेफ डर्बिन ने मोबाइल पर अपने शिष्यों से सीधी चर्चा शुरू की और कहा कि हमारा काम अब शुरू हुआ है। उन्होंने कहा कि महिलाऐं गर्भ में अपने बच्चे की हत्या कर रही है, हमें अबाॅर्शन विरोधी अभियान चलाना होगा। डर्बिन जैसे पितृसत्तात्मक समाज को आगे बढ़ाने वाले धार्मिक कट्टरपंथी जो सिर्फ अमेरिका में ही नही पूरी दुनिया में फैले हैं, गर्भपात को हत्या मानकर उसे आपराधिक बनाने के पक्ष में हैं। 

अगर हम सब चुप रहे तो ऐसे मामलों में कुछ राष्ट्र महिलाओं को मौत की सजा का प्रावधान कर सकते हैं। धार्मिक कट्टरपंथी कई लोगों का विश्वास है कि गर्भधारण के साथ जीवन शुरू हो जाता है, इसलिए गर्भपात हत्या है। वे चाहते है कि भ्रूण को अमेरिकी संविधान के तहत सुरक्षा का समान अधिकार मिले। यह मांग लम्बे समय से चल रही है पर यह हाशिये पर थी, उसका अधिक प्रभाव नही था। अमेरिका में ऑनलाईन अभियान और कुछ राज्य विधानसभाओं की चर्चा ने इस पर नए सिरे से प्रयास किये हैं। डर्बिन के ग्रुप- अबाॅर्शन फौरन खत्म करों ने आईडाहो, पेनसिल्वेनिया जैसे राज्यों और समान विचारधारा वाले 21 अन्य समूहों के साथ अबाॅर्शन पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप किया था। अबाॅर्शन विरोधियों को अमेरिका के सबसे बड़े प्रोटेस्टेंट चर्च- सदर्न बेपटिस्ट कन्वेंशन के रूढ़िवादी गुट का समर्थन मिला है। उनका कहना है कि गर्भपात कराने वाली सभी महिलायें दोषी हैं। लुइज़ियाना राज्य में एक विधेयक आगे बढ़ाया था, जिसमें अबाॅर्शन को हत्या मानने और गर्भ खत्म कराने वाली महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने का प्रावधान था, लेकिन हर्ष की बात है कि वहाँ की विधानसभा में यह विधेयक पास नहीं हो सका। 

अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने 1973 के ऐतिहासिक ‘रो बनाम वेड’ फैसले को पलटने और गर्भपात के महिलाओं के संवैधानिक अधिकार को छीनने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अपमानजनक बताया है। सुश्री कमला हैरिस ने कहा कि यह एक गम्भीर मामला है इसके लिए हम सभी को आवाज़ उठानी होगी। इसके लिए प्रजनन अधिकार की वकालत करने के लिए पहचानी जाने वाली कमला, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पहली बार सार्वजनिक तौर पर बड़ी तादात में जन समूह को सम्बोधित करते हुए गर्भपात अधिकार के लिए आवाज़ उठा रही है। 

गर्भपात पर रोक से महिलाओं की जान का खतरा बढ़ेगा। दुनिया भर में कम से कम 8 प्रतिशत मातृ मृत्युदर असुरक्षित गर्भपात से होती है। एक अध्ययन का अनुमान है कि यूएस में गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने से कुल मिलाकर गर्भवस्था से संबंधित मौतों की संख्या में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है और अश्वेत महिलाओं के संदर्भ में यह बढ़ोतरी 33 प्रतिशत तक हो सकती है। दुनिया को इस खतरे की गम्भीरता को समझना होगा। गर्भपात का कानून माँ के गर्भ में पल रहे अजन्मे बच्चे को तो अधिकार देता है, किन्तु जो महिला सशरीर जीवित है, उसके जीने के अधिकार पर कोई चिन्ता नही करता, जबकि उस महिला का जीवन अधिक महत्वपूर्ण है। 

अनेक शोधों में यह बात सामने आई है कि अवांछित बच्चों की शैक्षणिक उपलब्धि सामान्य से बहुत कम रही है। उन बच्चों के जीवन में सामान्य बच्चों की अपेक्षा संघर्ष अधिक था और वे बच्चे 35 वर्ष की आयु तक सामान्य बच्चों की तुलना में मानसिक रोग से ग्रस्त पाये गये। पितृसत्तात्मक समाज को यह समझना होगा कि गर्भपात का फैसला माताऐं उस अन्तिम विकल्प के रूप में करती हैं जब उनके समक्ष कोई और विकल्प नही बचता। जब महिलाओं को लगता है कि वे अपने पेट में पल रहे बच्चे को सुनहरा एवं सुरक्षित भविष्य नही दे पायेंगी। एक अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि 954 महिलाओं से साक्षात्कार लिया गया जिन्होंने गर्भपात करवाना चाहा था।  उनमें से 40 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भपात का कारण आर्थिक विषमताऐं बताई। विचारणीय प्रश्न यह है कि किसी स्त्री को कैसे उसी के शरीर की स्वायत्तता से धर्म के अधार पर वंचित किया जा सकता है? 2021 में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या कोष कि रिपोर्ट ‘माय बाॅडी इज़ माय ओन’ उल्लेख करती है कि शारीरिक स्वतंत्रता की कमी से महिलाओं की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हुआ है, और साथ ही आर्थिक उत्पादकता में कमी आई है। गर्भपात का कानून लैंगिक भेदभाव तथा पितृसत्तात्मक प्रणाली को तो दर्शाता ही है, साथ ही लैंगिक असमानता और अक्षमता को भी जन्म देता है। अमेरिका में गर्भपात की संवैधानिक वैधता की समाप्ति महिलाओं के जीवन पर घातक हमला साबित होगी। 

भारत में स्त्रियों के लिए भर्गपात का अधिकार मायने रखता है। भारत के संविधान में महिलाओं को यह अधिकार भी दिया है कि महिलाओं का शरीर उनका अपना है उस पर महिलाओं का अधिकार है। उन्हें यह स्वतंत्रता है कि वे गर्भ में बच्चे को पाले या ना पाले। अगर हमारे देश में भी अमेरिका की तरह ही गर्भपात कराना एक अपराध हो जाए तो महिलाओं का जीवन दुभर हो जायेगा। आज ही के अखबार में खबर छपी है कि 13 साल की एक बच्ची 7 माह की गर्भवती है और उसके साथ उसके पिता ने बलात्कार किया है। बलात्कार की घटना स्त्री की आत्मा को मार डालती है। बलात्कार की पीड़ा तो यह नाबालिक झेल ही रही है, ऊपर से बलत्कारी का गर्भ उसके पेट में पल रहा है। 

13 साल की वह बच्ची शरीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजर रही है, अगर उसे अबाॅर्शन की अनुमति नहीं मिले तो एक बच्चे को जन्म देने के बाद जितनी बार वह उस बच्चे को देखेगी, उतनी बार बलात्कार की घटना उसके दिमाग में घूमने लगेगी। उस बच्ची की दूसरी चिंता यह होगी कि बच्चे को जन्म देने के बाद किस तरीके से वह उस बच्चे को वह शिक्षा, स्वास्थ्य, एवं सम्मानपूर्वक जीवन दे पायेगी, क्योंकि वह बच्ची नाबालिक है, उसके खुद के आर्थिक स्त्रोत नही है। वह अपना भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो किस तरीके से वह अपने बच्चे का पालन पोषण करेगी? ऐसी बेटियों के साथ समाज भी अपराधी की तरह व्यवहार करता है। देश और दुनिया में यह देखने को मिल रहा है कि घरेलू हिंसा के इस तरीके के मामले परिवार एवं समाज द्वारा दबा दिये जाते हैं। अपराध करने वाले पुरूष पर समाज उंगली नहीं उठाता, ऐसे पुरूष समाज में सीना तानकर चलते हैं और निर्दोष महिला को समाज दोषी ठहराता है। 

गर्भपात का कानून इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि महिला की शारीरिक हालत कमज़ोर होने तथा चिकित्सा अधिकारी के परामर्श के पश्चात्, गर्भधारण करना महिला के हित में नहीं है तो सशरीर महिला को भ्रूण में पल रहे बच्चे की तुलना में बचाया जाना आवश्यक है। बलात्कार के पश्चात् पैदा होने वाली संतान से बलात्कारी तो पूरे तरीके से मुँह मोड़ लेता है, निर्दोष महिला पूरी जिन्दगी अपराध बोध के साथ जीवन बिताती है। बच्चे को जन्म देना स्त्री के आर्थिक व सामाजिक जीवन से जुड़ा प्रश्न है। आज बड़ी संख्या में महिलायें सार्वजनिक जीवन में आ रही हैं, ऐसी स्थिति में बच्चे को जन्म देना या ना देना, यह उसकी स्वतंत्रता है और भारत का संविधान उन्हें यह अधिकार देता है। अमेरिका की अदालत यह सुन लो कि महिलाऐं बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं हैं। आईये हम सब मिलकर अमेरिका की अदालत का खुलकर विरोध करें, ताकि सशरीर महिला चैन एवं सम्मान की सांस ले सकें।

Author

  • आराधना भार्गव / Aradhana Bhargav

    श्रुति से जुड़ी मध्य प्रदेश के संगठन किसान संघर्ष समिति को बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली आराधना भार्गव, संगठन की अंशकालिक कार्यकर्ता हैं। पेशे से वकील हैं, अध्ययन-प्रशिक्षण जैसी वैचारिक गतिविधियों में विशेष सक्रियता के साथ-साथ स्थानीय और राष्ट्रिए स्तर के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सवालों पर विशेष रुचि रखती हैं और समय-समय पर लेखन का काम भी करती हैं।

Leave a Reply

Designed with WordPress

Discover more from युवानिया ~ YUVANIYA

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading