फहीम अंसारी:
एक बुनकर बेटे ने पिता से पूछा-
पापा.. ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है?
पापा.. आज मेरे साथ पावर लूम* कारखाने में चलना वहीं पे बताऊँगा।
कारखाने में पहुंचे, तभी बेटे ने कहा-
पापा.. बताओ?
और पिता ने लूम चालू करके बताना शुरु किया-
जिस तरह ताना-बाना के साथ ढोहटा* का होना ज़रूरी है,
उसी तरह जीवन में लूम बिगड़ने पर मुकादम* का भी ज़रूरी है।
बुनकर बेटा- मैं समझा नहीं,
पिता ने फिर बेटे से कहा पतंग तो बहुत उड़ाते हो,
आज छत पे मेरे साथ उड़ाना फिर बताऊँगा।
खैर बेटे ने पतंग उड़ना शुरू किया,
उसे बाद पिता ने अपने हाथ मे चर्खी ले लिया।
बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था,
थोड़ी देर बाद बेटा बोला-
पापा ये धागे की वजह से पतंग अपनी आज़ादी से और ऊपर की और नहीं जा पा रही है,
क्या हम इसे तोड़ दें! ये और ऊपर चली जाएगी!
पिता ने धागा तोड़ दिया,
पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी,
और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई।
तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया-
बेटा! जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं, हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं। जैसे: घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता, गुरू और समाज, और हम उनसे आज़ाद होना चाहते हैं। वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। ‘इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे, परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो बिन धागे की पतंग का हुआ। अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना।
“धागे और पतंग के जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही ‘सफल जीवन’ कहते हैं।”
*पावर लूम: बिजली से चलने वाला करघा
*ढोहटा : करघे में इस्तेमाल होने वाला एक यंत्र
*मुकादम: करघे में खराबी आने पर उसे ठीक करने वाला कारीगर