अरविंद अंजुम:
“आपने अगर कोई भी निश्चय न किया हो तो इतना निश्चय करें कि सच्चा तो रहना ही है। सच्चे न रहे तो जितनी चमक-दमक बनाई होगी, वह ऊपरी रहेगी, ऊपर-ऊपर मुलम्मा और भीतर कुधातु। कोई भी वस्तु सत्य के बिना शोभित नहीं हो सकती। इसलिए सबको यह निश्चय कर लेना है कि हम जैसे होंगे, वैसा ही अपने को प्रकट करेंगे। अपने को जैसा का तैसा प्रकट करने में जो आनंद है, वह शृंगार करने में, रूप दिखाने में नहीं है। तिरछी टोपी अथवा अमूक रीति से साड़ी पहनने अथवा केस संवारने में असत्य है। जो मनुष्य तरह-तरह के वेश करता है और जैसा नहीं है, वैसा दिखाने की इच्छा करता है, वह व्यक्ति मिथ्या का पाठ पढ़ना शुरू कर देता है। हम महल तो सच की नीव पर ही उठा सकेंगे।”
–महात्मा गांधी, गीताजी : गांधी जी का गीता शिक्षण, पृष्ठ 317
अरविंद अंजुम की टिप्पणी:
अक्सर देखा गया है कि रूप बदलने का काम या दिखावा करना नेताओं का खास शौक है। वे जिस इलाके में जाते हैं, जिनके बीच जाते हैं, उनसे तादात्म्य बनाने की गरज से, उनके जैसा पोशाक, पगड़ी धारण करते हैं। वे सोचते हैं कि उनके इस प्रकार के वेशभूषा से वहां के लोग उन्हें अपना समझेंगे। पर हमेशा ऐसा नहीं होता है और कुछ दिनों के बाद यह बर्ताव नकली प्रतीत होने लगता है। एक समय के बाद यह आकर्षण, विकर्षण में बदल जाता है।
इसलिए इंसान को उसी रूप में रहना चाहिए, जो वह है। मौलिकता का भी अपना प्रभाव होता है। आप जैसे हैं, अगर लॉबी उसी रूप में स्वीकार करते हैं, तो वह आपके व्यक्तित्व की उस विशेषता को स्वीकार करते होते हैं। जबकि नकली या बनावटी अदाओं का कुछ दिनों तक प्रभाव रहता है। लेकिन धीरे-धीरे यह असर फीका हो जाता है, अंततः आपका नकाब, लबादा उतर जाता है।
फीचर्ड फोटो आभार: द गार्डियन
शिक्षाप्रद लेख, वाकई में इस लेख द्वारा दी गई शिक्षा को व्यावहारिक जीवन में उतारने की जरूरत है।