सुरेश डुडवे:
अक्सर हमने लोगों से सुना है कि राजनीति बहुत गंदी है। इससे दूर ही रहना चाहिए। कई सारे लोग तो यह भी कह देते हैं कि कोई भी जीते, हमें क्या फ़र्क पड़ता है? लेकिन सिर्फ़ कह देने से आप अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं हट सकते। आपकी राजनीति से दूर जाने की सोच के बावजूद भी आपको किसी न किसी रूप से राजनीति प्रभावित करती है। अगर आपके द्वारा चुना गया प्रतिनिधि अच्छा हो तो निश्चित ही वह आपके व आपके बच्चों के लिए अच्छा कार्य कर सकता है। इसलिए चुनावों में अच्छे प्रतिनिधि को चुनना बहुत आवश्यक है। हमारा भारत देश, एक लोकतांत्रिक देश है, जिसमें जनता द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुना जाता है, जो देश को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए लोगों को राजनीति के संदर्भ में कम से कम अपने वोट की कीमत, अपना प्रतिनिधि कैसा हो? इसके बारे में जागरूक होना ज़रूरी है।
वोट की ताकत को समझना ज़रूरी है: सभी लोगों को वोट की ताकत को समझना होगा। आपके वोट की कीमत एक दारू की बोतल या एक दो हज़ार रूपये नहीं है। यदि कोई आपको इस प्रकार लालच देता है तो वह निश्चित ही कमाई के उद्देश्य से चुनाव में उतरा है। ऐसे लोगों से सावधान रहें और अन्य लोगों को भी जागरूक करें। आपके वोट से आपके भविष्य में कई चीज़ों में बदलाव आ सकता है। इसलिए बहुत ही सोच समझकर अपने प्रतिनिधि का चयन करें।
इस बार चुनाव में युवा: मध्य प्रदेश के पंचायत चुनाव में इस बार जयस, आदिवासी छात्र संगठन व अन्य सामाजिक संगठनों के युवा चुनाव में उतरे हैं। अब देखना है कि लोग किस प्रकार से उनका सहयोग करेंगे। इनमें से अधिकतर वही युवा हैं जो पिछले कुछ वर्षों से अपनी पढ़ाई के साथ-साथ समाज में व्याप्त शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का कार्य कर रहे हैं। कुछ साल पूर्व तक आदिवासी समाज का शिक्षित वर्ग, ग्रामीण आदिवासी समाज से दूर रहते आ रहा था। कुछ लोग तो अपनी पहचान तक छिपाने लगे थे, वे अपने आप को आदिवासी कहने में शर्म महसूस करते थे। लेकिन अब यही वर्ग अपनी पहचान के साथ, समाज के साथ जुड़कर काम करने की कोशिश करता हुआ नज़र आ रहा है।
तीसरा ऑप्शन बन सकता है: भारत के कई राज्यों जिसमें दिल्ली, झारखंड, ओडिशा, तमिल नाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, व उत्तर पूर्वी भारत के कई राज्यों में (कॉंग्रेस-बीजेपी को छोड़कर) तीसरा ऑप्शन बनकर अन्य पार्टी की सरकारें बनी हुई हैं। इस बार मध्यप्रदेश के चुनाव में सामाजिक संगठनों के युवा सरपंच, जनपद सदस्य, जनपद अध्यक्ष के लिए चुनावी मैदान में नज़र आ रहे हैं। इनमें से अधिकतर पढ़े-लिखे युवा हैं। अगर ये युवा आदिवासी सामाजिक संगठनों के सहयोग से चुनाव लड़ेंगे तो शायद जीत भी सकते हैं, बस इन्हें ध्यान रखना होगा कि चुनाव जीतकर किसी अन्य पार्टी का दामन न थामे। यह युवा स्वयं को तीसरा ऑप्शन बना सकते हैं। चुनाव जीतने के बाद ईमानदारी से लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने की कोशिश करे। बच्चों के अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की जाए। लोगों के लिए पानी, बिजली, अस्पताल की सही व्यवस्था की जाए। आदिवासी समाज के लिए रोज़गार की व्यवस्था करें ताकि उन्हें दूसरे राज्यों में मजबूरी से जाना न पड़े। इसी प्रकार लोगों की तमाम समस्याओं का ईमानदारी से निपटारा करने की कोशिश की जाए।
चुनाव के कारण आपसी भाईचारा न खराब करें: पिछले कुछ वर्षों से आदिवासी क्षेत्रों में चुनावों के कारण आदिवासी समाज में नफ़रत और आपसी रिश्तों में दरारें देखने को मिल रही हैं। गाँवों में देखने को मिल रहा है कि भाई-भाई में चुनाव के कारण झगड़े हो जाते हैं। एक भाई कांग्रेस में है तो दूसरा बीजेपी। इन्हें लगता हम एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं। ये टीवी पर बड़े-बड़े नेताओं द्वारा दिए जाने वाले भाषणों को अपने व्यावहारिक जीवन में उतारने की चेष्टा करते हैं। उन्हें ये भी नहीं पता कि कांग्रेस-बीजेपी के नेता भले ही मंच पर एक दूसरे के खिलाफ अनाप-शनाप बोल देंगे, लेकिन बाद में साथ में बैठकर खाना भी खायेंगे। ये बात लोगों को नहीं पता रहती, इसलिए आदिवासी भाइयों से अपील है कि आप किसी भी पार्टी को पसंद करते हों, लेकिन अपने आदिवासी समाज के भाईचारे के गुण को मत भूलो। गाँव में सुख-दुःख में एक दूसरे के साथ रहें और एक-दूसरे की मदद करें। गाँव में एक दूसरे के प्रति नफ़रत का भाव न रखें बल्कि सभी एक साथ मिलकर अपने गाँव समाज को आगे बढ़ाने की कोशिश करें।
फीचर्ड फोटो आभार: कलम अवाया