उत्तर प्रदेश के फ़ैज़ाबाद शहर की विरासत

अफाक़ उल्लाह:

चौक एज में घंटाघर से गुलाबबाड़ी की तरफ़ जाते हुए बायें हाथ पर एक 1920 के करीब शुरू हुई छोटी सी दुकान है। जिसका नाम “रयाल इम्पोरियम वर्क्स” है। इस म्यूजिकल शॉप को मो. इरशाद खान, जिनकी उम्र लगभग 80 साल है, संचालित करते हैं। इनसे पहली मुलाकात एक हफ़्ते पहले हुई। इनकी दुकान से कुछ म्यूज़िकल सामान खरीदने गया था। घर आकर इनके बारे में सोचता रहा। एक बार मिलने के बाद दुबारा मिलने का मन हो रहा था। 

अगले दिन पहुँच गया, वहीं, इनकी दुकान पर। सलाम के साथ बात आगे बढ़ी तो बोले चाय लोगे? मैंने कहा अभी नहीं, फिर मैंने उनसे कहा कुछ अपनी दुकान और काम के बारे में बताइए। मो. इरशाद ख़ाँ साहब जो भी बोलते हैं, मुस्कुराते हुए बोलते हैं। बात शुरू हुई तो उन्होंने कहा, “हमारे दादा हाज़ी हुसैन ख़ाँ, अंग्रेजों की पलटन में थे। आज़ादी के साथ ही रिटायर हो गए, पेंशन मिलती रही। हमारे वालिद साहब की शादी फ़ैज़ाबाद में हो गई, तो वह यहीं फ़ैज़ाबाद आ गए। हमारे वालिद अब्दुल मन्नान ख़ाँ की लाटूश रोड लखनऊ पर एक फैक्ट्री थी जो म्यूज़िकल समान बनाते थे। फैक्ट्री बंद हो गई, वालिद साहब भी फ़ैज़ाबाद आ गए। सन 1920 में अपनी दुकान यहीं चौक में शुरू की। उनके बहुत से कलाकार दोस्त थे, जिसमें शकील बदायुनी और नौशाद साहब जैसे संगीतकार यही बैठकर संगीत बनाते थे। मजरूह सुल्तानपुरी से भी खूब जमती थी। हमने बड़े-बड़े कलाकारों का बाजा बनाया हैं। अयोध्या के मंदिरों से चिठ्ठियाँ आती थी। बाजा बना दीजिए, बाजा मंदिर में बजाने के बाद पैसा आता था।”  तभी उनके छोटे बेटे रशद ख़ाँ ने एक मंदिर की लगभग 70 साल पुरानी चिठ्ठी दिखाई।

संत गोपाल दास जी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह हारमोनियम, तबला बहुत बढ़िया बजाते थे। मन्नू लाल जी हारमोनियम बजाते थे। बीच के वक़्त में क्लासिकल संगीत की तरफ थोड़ी कमी आई थी। लेकिन अभी फिर से नौजवान संगीत सीख रहा है, रूचि ले रहा है। 

उन्होने आगे कहा, “मैं जब 5 साल का था, तब से अब्बा के साथ वाद्य यंत्र बनाने का काम करता चला आ रहा हूँ। यहीं टाटशाह के मदरसे में पढ़ाई करते थे। जब वक़्त मिलता था तो दुकान पर आ जाता था। देखते-देखते मुझे हारमोनियम, ढोलक, गिटार, नाल, मृदंगम, आदि वाद यंत्र बनाना आ गया। यह काम हमको बहुत अच्छे से आता है।”

आगे मैंने मो. इरशाद ख़ाँ साहब से बात करते हुए पूछा कि फ़ैज़ाबाद में आपको कैसा लगता है? उन्होंने कहा, “मैं तो छोटा था, जब बंटवारा हो रहा था। पठान टोलिया से 75 फ़ीसदी लोग पाकिस्तान चले गए। पर हमारे अब्बा साहब यहाँ से गए नहीं, बोले यहाँ हमारे पुरखे हैं। यहाँ सब हमको जानते हैं, हम भी सबको जानते हैं।” 

मो. इरशाद ख़ाँ ने फिर कहा, “यह अपना शहर बढ़िया है। छोटा शहर है, लोग एक-दूसरे को करीब से जानते हैं। फैसला आने के बाद ऐसा लगता है कि अब सब बढ़िया होगा। आगे देखते हैं, कितना बढ़िया होगा।”

मो. इरशाद ख़ाँ के बाद उनके दो बेटे भी इस काम में लगे हुए हैं। इनके तीन बेटे हैं, बड़े बेटे नौशाद ख़ाँ के साथ छोटे बेटे रशद ख़ाँ काम करते हैं। इनको सभी वाद्य यंत्र बनाना आता है। यह तीसरी पीढ़ी है जो संगीत और वाद्य यंत्रों के काम में लगी हुई है। नौशाद ख़ाँ ने बात करते हुए कहा कि कलाकार बढ़िया इंसान होते हैं। अपनी धुन के पक्के होते हैं। चाहे वाद्य यंत्रों को बजाना हो या गाने गाना हो। जो कलाकार जितना मगन होकर अपने काम में लगता है, तो सुनने वालों को भी भरपूर मज़ा आता हैं। साज-ओ-संगीत में अपने सब दुख-दर्द भूल जाता है।

यह परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से संगीत और वाद्य यंत्र बनाने के काम में लगे हुए। सैकड़ों सालों से इसी काम को करते चले आ रहे हैं। मो. इरशाद ख़ाँ जिनकी उम्र आज लगभग 80 साल हैं, वे अपने काम से बेहद खुश हैं। हर बात पर मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं। बीच-बीच में चाय पीने के बारे में पूछते हैं। यह और इनके जैसे लोग शहर में सच्ची विरासत की तरह से हैं। इनके पास बैठना, पुरानी बातें करना, कलाकारों के बारे में जानना, बहुत कुछ कहने को है इनके पास, जिसको सहेजने-सजोने की ज़रूरत है। भागम-भाग भरी दुनियाँ में ठहर के शहर के सांस्कृतिक इतिहास को यहाँ से जोड़कर समझा जा सकता है। 

आखिर में नौशाद ख़ाँ भाई ने कहा कि यहाँ एक संगीत विद्यालय लखनऊ की तरह से हो जाये, तो यहाँ के नए-नए कलाकारों को सीखने और अपनी प्रतिभा को निख़ारने का बढ़िया स्थान बन जाए।

हैशटैग –

 #हेरिटेज_ऑफ_फ़ैज़ाबाद

#अब्दुल_मन्ना_ख़ाँ #रयाल_इम्पोरियम_वर्क्स

Author

  • अफ़ाक / Afaaq

    अफ़ाक, फैज़ाबाद उत्तर प्रदेश से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं। वह अवध पीपुल्स फोरम के साथ जुड़कर युवाओं के साथ उनके हक़-अधिकारों, आकांक्षाओ, और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर काम करते हैं।

One comment

  1. फैज़ाबाद – अयोध्या की एक जीती जागती विरासत अपने साझा की है, मैं खुद भी इस दुकान पर जाता रहा हु। काफी कलाकारों को साधन इसी दुकान से मिले है। यहां पर काम करने वाले सभी लोग खुद भी हुनरमंद है। काफी अच्छा लगा लेख पढ़के अफाक़ भाई को बधाई और आशा है और लिखते रहेंगे।

Leave a Reply