शांता आर्य:

जैसे ही खेतों में काम कम हो जाता है सुरमी बाई सोचने लगती है कि अब क्या काम करूँ? सेंधवा में कपास की जिनिंग (कपास के बीज और रेशे को अलग करने की प्रक्रिया) होती है, जहां काम मिल जाता है। सुरमी बाई, सेंधवा की जिनिंग फैक्ट्री में रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक मज़दूरी करती हैं। कपास का सीज़न शुरू होने के पहले ही जिनिंग फैक्ट्री में कपास की सफाई का काम चल रहा है। वहाँ आठ बजे पहुँचने के लिए वो घर से सात बजे निकल जाती है। बारह घंटे के उसे 170 रूपये मिलते हैं, जिसमें से 20 रूपये आने-जाने के किराये में लग जाते हैं। इस प्रकार उसके पास एक दिन की मज़दूरी के 150 रूपये बच पाते हैं। रोज़-रोज़ 12 घंटे मेहनत का काम करने से सुरमी बाई का शरीर बहुत कमज़ोर हो गया है, क्योंकि न तो वह सही से खाना खा पाती है और न सही से आराम ही कर पाती है। खाने के नाम पर कभी मिर्च-रोटी, तो कभी अंडा बनाकर साथ ले जाती है। 

बाज़ार जाने के बावजूद ये सब्जी खरीदकर नहीं लाती है। इतनी मज़दूरी करने के बाद भी सुरमीबाई अपने पुराने कपड़े पहनकर ही घूमती है। वह कभी नहीं सोचती कि अपने लिए नए कपड़े खरीद लूँ। कभी कपड़े खरीदने जाना है तो वह अपने पति को लेकर जाती है। सुरमी बाई को पैसे का हिसाब-किताब भी नहीं आता है। खेत में पकने वाली फसल को पति बेच देता है और उन पैसों को खर्च कर देता है। उसके कारण घर में कभी-कभी खाने का अनाज तक नहीं मिल पाता। सुरमीबाई किसी तरह  मेहनत-मजदूरी कर के घर-बार चला रही है।  

जब जिनिंग में मजदूरी नहीं चलती तब वो कुछ और काम करती है। एक साल सुरमी बाई,  सुबह 5 बजे जग कर पेड़-पौधों की पत्तियां इकट्ठी करके बकरी-गाय पालने वालों को बेचकर पैसे कमाती थी। इस साल उसने दूसरे लोगों के खेतों पर मज़दूरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण किया। कहा जाए तो आज भी आदिवासी गांवों में सुरमी बाई जैसी बहुत सी महिलाएं हैं जो कमरतोड़ मेहनत करके अपने  परिवार को पालने में मदद कर रही हैं । इनकी मेहनत के बिना घर चल ही नहीं सकता। पहले परिवार का सोचती हैं और अपने शरीर का कुछ ध्यान नहीं रखती। 

फोटो आभार: शटर स्टॉक

Author

  • शांता आर्य / Shanta Arya

    शांता आर्य राष्ट्रीय स्तर की जैवलिन थ्रोअर रह चुकी हैं। आजकल वे मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में आधारशिला शिक्षण केंद्र के माध्यम से आदिवासी बच्चों की शिक्षा व प्रवासी मज़दूरों के मुद्दे पर काम कर रही हैं।

Leave a Reply

Designed with WordPress

Discover more from युवानिया ~ YUVANIYA

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading