अनायास: सिविल नाफरमानी पर गाँधी के विचार और उन पर अरविंद अंजुम की टिप्पणी

अरविंद अंजुम:

काश मैं सबको इस बात के लिए मना सकता कि सिविल नाफरमानी हर नागरिक का जन्मजात अधिकार है। वह मनुष्यता छोड़े बिना इसको छोड़ नहीं सकता। सिविल नाफरमानी से कभी अराजकता नहीं पैदा होती। मुजरिम नाफरमानी को शक्ति से कुचला जाता है, लेकिन सिविल नाफरमानी को कुचलना आत्मा को कैद करना है। सिविल नाफरमानी से तो केवल ताकत और पवित्रता उपजती है। सिविल नाफरमानी, शस्त्र का इस्तेमाल नहीं करता, इसलिए वह उस राज के लिए हरगिज़ नुकसानदेह नहीं है जो जनता की आवाज को सुनने को तैयार है। वह निरंकुश राज के लिए अवश्य ही खतरनाक है, क्योंकि वह जनता की शक्ति को, जिस बुराई का वह प्रतिकार करता है, उसके खिलाफ लगाकर उस राज को ढहा देता है। ऐसे राज  में जो कानूनहीन हो गया है या भ्रष्ट हो गया है, सिविल नाफरमानी एक पवित्र कर्तव्य हो जाती है। और वह नागरिक जो ऐसे राज के साथ हेल- मेल रखता है, वह भ्रष्टाचार और कानूनहीनता का सहभागी होता है। 

इसलिए संभव है कि किसी खास काम के लिए बने कानून के खिलाफ सिविल नाफरमानी करने का विवेक विवादास्पद हो। सावधानी बरतने की या तो थोड़ा थमने की सलाह भी दी जा सकती है। लेकिन सिविल नाफरमानी के अधिकार को अपने आप में चुनौती नहीं दी जा सकती। यह तो एक जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसका विसर्जन आत्मसम्मान का विसर्जन किए बिना नहीं किया जा सकता।

सिविल नाफरमानी के हक का आग्रह करते समय इसके अमल को हरसंभव पाबंदी से मर्यादित रखना चाहिए। हिंसा या आत्म कानूनहीनता  फैलने न देने की हरसंभव तैयारी करनी चाहिए। इसकी हद और व्यापकता जितनी बिल्कुल ज़रूरी हो, उतनी रखनी चाहिए।              (- महात्मा गांधी, यंग इंडिया 5-1- 52 ,सत्याग्रह पृष्ठ 174)

टिप्पणी:-

वैसे तो सरकारें अक्सर समाज के सबसे शक्तिशाली वर्ग के पक्ष में खड़ी रहती है। पर कभी-कभी अन्य वर्गों और जनता के दबाव के चलते उसे कुछ कदम उठाने पड़ते हैं। कभी-कभी तो सरकारें समाज के प्रभु वर्ग के लिए जमकर और तनकर इस कदर खड़ी हो जाती है कि जनता की परवाह तक नहीं करती।

आज किसानों, मजदूरों, बेरोज़गारों के हकों को जिस प्रकार से कुचला जा रहा है, उसमें सरकार की वह तस्वीर देख सकते हैं। सिविल नाफरमानी ऐसे ही वक्त का नुस्खा है। हुकूमतें जब बद से बदतर होने लगें, तो जनता का कर्तव्य होता है कि उसे अमान्य कर दे।आज की स्थिति को देखें तो ऐसा करना भी सरल नहीं है। राजद्रोह कानून, यूएपीए और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों सहित केंद्र एवं प्रांतीय सरकारों के पास लगभग 270 ऐसे कानून हैं जिनके द्वारा किसी भी नागरिक को एहतियातन हिरासत में लिया जा सकता है। प्रायःऐसे कानून सुप्त अवस्था में रहते हैं। लेकिन जब जनता की तकलीफें बढ़ती है और उसमें सुगबुगाहट होने लगती है, तब इन कानूनों का धड़ल्ले से  दुरुपयोग होता है।

IT एक्ट के 66A के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने बरसों पहले असंवैधानिक घोषित कर दिया था। पर इस प्रावधान के तहत लगभग एक हजार लोगों पर मुकदमे किए गए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आश्चर्य व्यक्त करने के बाद गृह मंत्रालय ने प्रांतीय सरकारों को इस प्रावधान के तहत मुकदमे न करने का निर्देश दिया है। पर राजद्रोह कानून का आज भी खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन हो रहा है। इतना ही नहीं सभी सरकारी एजेंसियों को केंद्र सरकार ने विरोधियों को कुचलने के हथकंडे में बदल डाला है। शांतिपूर्ण सिविल नाफरमानी से ही हम सरकार के दमनकारी रवैये का प्रतिकार कर सकते हैं।

Author

  • अरविंद / Arvind

    श्रुति से जुड़े झारखण्ड के संगठन विस्थापित मुक्ति वाहिनी को बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अरविन्द भाई, अभी जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी के अंशकालिक कार्यकर्ता हैं। अध्ययन, अनुवाद, प्रशिक्षण जैसी वैचारिक गतिविधियों में विशेष सक्रियता के साथ-साथ स्थानीय और राष्ट्रिए स्तर के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सवालों पर विशेष रुचि और समय-समय पर लेखन का काम करते हैं।

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