उमेश्वर:
विकास बेटा की चाहत में, मैंने नदी नाला पहाड़ खोद डाला
बेटा विकास कहां छिपा है तू?
बड़े-बड़े पावर प्लांट चिमनी की धुआं से गुब्बारा बना डाला
एक बेटा नहीं मिल पा रहा,
सांसों से दिल तक पहुंच गया
ऐसा चुड़ैल पैदा कर डाला।
सबने सोचा था विकास बेटा सबका दिल जीत लेगा,
लेकिन वह तो अनेकों रूप में आता है।
कभी आंधी-तूफान, बाढ़ बनकर,
तो कभी ओला, सूखा, शैतान बन कर।
देश में अनेकों संघर्ष-आंदोलन चल रहे हैं,
विकास को समझने के लिए।
चाहत है विकास बेटा की,
जंगल ज़मीन जल, उजाड़ डाला,
सांस लेने के लिए ऑक्सीजन चाहिए,
कोरोना वायरस ने समझाया है।
दूर रहना विकास बेटा
ऑक्सीजन कितना ज़रूरी है,
कोरोना ने एक-एक सांस की कीमत समझाया है।
विकास की चाहत में,
नहीं उजाड़ो हसदेव अरण्य के जंगल को
कोरोना वायरस ने बताया है।
समझ जाओ जल्लादों, ये जंगल देश को बचाया है।
