देश भर में उत्साह के साथ मनाया गया महिला दिवस

युवानिया डेस्क:

बीसवीं सदी के शुरुआती सालों में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुई थी। यह औध्यौगिक क्रांति के कुछ सालों बाद का समय था जब दुनिया भर में उत्पादन के तरीकों में बड़े बदलाव हो रहे थे, बड़े स्तर पर कारखानों का उदय हो रहा था और उत्पादन बदने के लिए बड़े पैमाने पर मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा था। कारखानों के विस्तार ने दुनिया भर में मानव संसाधन या कहें कि मज़दूरों को मांग को बढ़ा दिया था। 

उस समय भी दुनिया भर के कारखानों में काम करने वाले मज़दूरों में एक बड़ी संख्या महिलाओं की भी थी। आम तौर पर कारखानों में काम करने की परिस्थितियां सभी कामगारों के लिए काफी खराब थी, जिनमें स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबन्धित कई खतरे मौजूद थे। लेकिन महिलाओं को इनके साथ-साथ लैंगिक स्तर पर भी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था। अधिक काम के घंटों के एवज में उन्हें मज़दूरी भी कम दी जाती थी। यह वह समय भी था जब दुनिया भर के मज़दूर, सही मज़दूरी और काम के तय घंटों के लिए आवाज़ उठा रहे थे। महिला मज़दूरों ने भी इन मुद्दों को लेकर आवाज़ उठाई ओर मज़दूरों के संघर्ष में बराबरी की भूमिका निभाई। 

8 मार्च 1908 को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 15 हज़ार महिला मजदूरों ने उचित मजदूरी, काम के कम घंटे और वोट देने के अधिकार की मांग करते हुए एक मार्च किया था। इसी दिन को महिला दिवस की शुरूआत भी माना जाता है। लेकिन नियमित रूप से 8 मार्च को महिला दिवस मनाए जाने में कुछ और समय लगा। इससे पहले 1913 तक अमेरिका में 28 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। 

पहले विश्व युद्ध के शुरुआत के ही समय 23 फरवरी 1914 को रूस की महिला मज़दूरों ने आजीवका और शांति की मांग को लेकर पहला महिला दिवस मनाया। उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर को माना जाता था, जबकि अन्य यूरोपियन देशों और उनके उपनिवेशों (गुलाम देशों) में ग्रेगोरियन कैलेंडर (वर्तमान कैलेंडर) माना जाता था। जूलियन कैलेंडर में 23 फरवरी, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 8 मार्च को आता है। इसके बाद दुनिया भर में महिला अधिकारों पर आवाज़ उठा रही महिलाओं ने कुछ चर्चाओं के बाद सर्वसम्मति से दुनिया भर में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाना तय किया।

इस साल भी दुनिया और देश के विभिन्न हिस्सों में उत्साह के साथ महिला दिवस मनाया गया। आइये देखते हैं देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाए गए महिला दिवस की कुछ झलकियाँ:

ज़िंदाबाद संगठन; बालंगीर, ओडिशा | श्रमिक अधिकार मंच; खपराखोल बालंगीर

बालंगीर, ओडिशा

दलित आदिवासी मंच; बलौदाबाज़ार (छत्तीसगढ़)

ग्राम खोसड़ा ब्लॉक कसडोल जिला बलौदाबाज़ार (छत्तीसगढ़) के वन ग्राम में दलित आदिवासी मंच और दो पंचायत के 18 महिला स्वसहायता समूहों ने मिलकर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में कपड़ा मिल में काम करने वाली महिलाओं ने अपने अधिकारों की ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी। रोज़ 12 घंटे की दिहाड़ी की जगह, 8 घंटे काम की मांग को लेकर महिलाओं ने आंदोलन किया था। उस दिन को याद करते हुए आज गांव, शहर और पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया जाता है। 

महिला किसान अधिकार मंच की राजिम दीदी ने महिलाओं को अपने वक्तव्यों द्वारा मंच से संबोधित किया और गांव की सब महिलाओं को महिला दिवस की बधाई देते हुए कहा, “आज अपने गांव में इस दिवस को मनाते हुए, हमें गर्व महसूस हो रहा है कि हमारे गांव की महिलाएं अपने हक़ और अधिकारों को लेकर मुखर हो कर सामने आ रही हैं।” 

दलित आदिवासी मंच से देवेंद्र भाई ने अपने विचार रखते हुए कहा, “आज हमारे देश में महिलाएं, पुरुष के बराबर हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। महिलाओं के ऊपर आज हिंसा लगातार बढ़ रही है और उसके लिए न केवल महिलाएं, बल्कि पूरे समाज को आगे आने की ज़रूरत है।” इस कार्यक्रम में लगभग 700 से 800 लोग शामिल हुए। 

बलौदाबाज़ार (छत्तीसगढ़)

जागृत आदिवासी दलित संगठन; बड़वानी (मध्य प्रदेश)

महिला दिवस पर आदिवासी महिलाओं ने उठाई दारू बंदी का मांग, अवैध रेत खनन, शिक्षा, रोज़गार के मुद्दों पर सरकार को घेरा।

महिलाओं ने किया ऐलान: “8 मार्च का है ये नारा, अब से पूरा साल हमारा”

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जागृत आदिवासी दलित संगठन की ओर से सैकड़ों आदिवासी महिलाओं ने आदिवासी महिलाओं के अधिकारों की बात रखते हुए पाटी में रैली निकाली और बुदी गाँव में सभा आयोजित की। सरकार द्वारा आदिवासी इलाकों में दारू बिक्री को दी जा रही छूट का तीव्र खंडन करते हुए महिलाओं ने कहा कि दारू हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है। सरकार घर-घर जाकर राशन तो नहीं बांटती है, लेकिन आज घर-घर में दारू ज़रूर उपलब्ध करवा रही है। दारू बंदी की मांग करते हुए महिलाओं ने नारा लगाया “दारू पीना छोड़ दो, दारू की बोतल फोड़ दो।”  सरकार को ललकारते हुए नलती गाँव की नासरी बाई ने पूछा, “एक साल से स्कूल बंद है, पाटी का अस्पताल खंडर के बराबर है, सारे पढ़े-लिखे बेरोज़गार हैं। इन मुद्दों के बारे में कुछ करने के बजाए, सरकार लोगों को दारू क्यूँ बेच रही है? दारू नहीं पीनी चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार चाहिए !”     

कार्यक्रम की शुरुआत आदिवासी परंपरा के अनुसार धरती माता की पूजा से शुरू करते हुए महिलाओं ने कहा कि धरती चीर के अनाज पकाने वाली और 9 महीनों तक सारे दर्द को सह कर जन्म देने वाली महिला को पुरुष के समान अधिकार नहीं मिलता। पोसपुर की लया बाई ने कहा, “हर महिला अपनी जिंदगी में तीन घरों को संभालती है: वह पहले अपने पिता के घर को संभालती है, फिर अपने पति/ससुर के घर को और अंत में अपने बच्चों के घर को – लेकिन उसका अपना घर कोई नहीं होता।” महिलाओं और पुरुषों के बीच में बराबरी की मांग करते हुए महिलाओं ने कहा कि महिलाओं के नाम से राशन कार्ड होना चाहिए, जॉब कार्ड होना चाहिए और अपने परिवार की संपत्ति पर महिलाओं का पुरुषों के समान हक होना चाहिए। 

नए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए आदिवासी महिलाओं ने कहा की यह कानून आदिवासियों से उनकी ज़मीन छीनकर आदिवासियों को बड़े कंपनियों का गुलाम बनाने की साजिश का हिस्सा है। आदिवासियों और महिलाओं को अपनी परंपरा के अनुसार खेती करने की आज़ादी चाहिए और पुरुषों के बराबर का वेतन मिलना चाहिए। महिलाओं ने 600 रु. दिन न्यूनतम वेतन की मांग की और कहा कि जब सरकार मानती है कि उसके सबसे निचले कर्मचारी को भी इज़्ज़त की ज़िंदगी जीने के लिए 600 रु./दिन की ज़रूरत है, तब मज़दूरों के लिए 120-150 रु./दिन की न्यूनतम मज़दूरी तय करके गैर बराबरी को क्यों छूट दी जा रही है? 

आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन के अधिकार को दोहराते हुए महिलाओं ने तहसील में हो रहे अवैध रेत खनन का भी विरोध किया। लिम्बी ग्राम की महिला  बिलयती बाई ने कहा, “यह नदी हमारी माता है, हमारी संस्कृति है। ग्राम सभा की अनुमति के बिना ठेकेदार द्वारा अवैध रूप से रेत उठाई जा रही है। अगर यह नदी सूख जाएगी, तो हमारी खेती, मवेशी सब मर जाएंगे।” आदिवासी महिलाओं के नेतृत्व में, पाटी में चल रहे अवैध रेत खनन के खिलाफ़ आंदोलन को महिलाओं ने समाज और संस्कृति की लड़ाई बताया। 

कई गीतों के माध्यम से महिलाओं ने अपने अधिकार की बात रखी और कहा कि महिलाओं के हक़ और सम्मान की बात बस एक दिन तक सीमित नहीं होनी चाहिए और घोषणा की, “8 मार्च का है ये नारा, अब से पूरा साल हमारा !”

बड़वानी (मध्य प्रदेश)

डेल्ही यंग आर्टिस्ट फोरम; दिल्ली

भलस्वा, दिल्ली

खेतिहर खान मज़दूर संगठन; चित्तौरगढ़ (राजस्थान)

चित्तौरगढ़ (राजस्थान)

झारसुगुड़ा (ओडिशा)

झारसुगुड़ा (ओडिशा)

विस्थापित मुक्ति वाहिनी; जमशेदपुर (झारखंड)

जमशेदपुर के कदमडीह में 110वां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया, जिसमें मुख्यबिंदू पर नाटक भी किया गया। इस कार्यक्रम में बाल विवाह और महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी मिलने पर भी चर्चा की गई। दिनेश यादव एवं सेंती सरदार ने कार्यक्रम के दौरान मनरेगा में महिलाओं के अधिकारों को लेकर विस्तारपूर्वक जानकारी दी।

जसकनडीह आजीविका महिला ग्राम संगठन और युवा संस्था के सहयोग से प्रकृति रक्षा के संदेश के साथ साउथ गदरा ग्राम पंचायत के टुपुडांग गाँव में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया गया। गाँव में महिलाओं के योगदान का जश्न मनाया गया और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया गया। लड़का-लड़की को समान शिक्षा, समान स्वस्थ्य और समान अधिकार मिलें, इस पर चर्चा की गई। चाचा के दौरान यह माना गया कि महिला को एक देवी का दर्जा देने के बजाय उसे एक इंसान के रूप में सम्मान मिले। इसकी शुरूआत किसी स्कूल से नहीं बल्कि अपने घर से ही होगी, जहां हर माँ एक शिक्षिका की भूमिका निभा सकती है। वह अपनी बेटी और बेटे में अंतर ना कर दोनों में एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न कर सकती है और बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकती है। करीब 200 लोगों के इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

जमशेदपुर साक्ची में विरसा चौक पर महिला दिवस को किसान आंदोलन के समर्थन में विजय संकल्प दिवस के तौर पर भी मनाया गया।

जमशेदपुर (झारखंड)

सर्वहारा जन आंदोलन; रायगढ़ (महाराष्ट्र)

पारंगखार, तहसील रोहा में मनाया गया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

सभी जाति-धर्म की महिलाओं के साथ 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर यह सम्मलेन संपन्न हुआ। पती के निधन के बाद मंगलसूत्र, बिंदी और चूड़ियाँ न उतारने का जाहिर संकल्प कई महिला और पुरुषों ने लिया। एक गांव ने अगले महिला दिवस तक पूरे गांव द्वारा यह सामुहिक शपथ लेने का संकल्प लेने का ऐलान किया। कई बहनों ने अपने परिवार में पहले से ही इन बदलावों की शुरुआत की है, उन्होने भी अपने अनुभव इस कार्यक्रम के दौरान साझा किए। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई की राह पर अनगिनत लोग चल रहे है! सामाजिक परिवर्तन जारी है!

रायगढ़ (महाराष्ट्र)

लोक चेतना संगठन; रायगढ़ा (ओडिशा)

रायगढ़ा (ओडिशा)

गाँव गणराज्य संगठन; सरगुजा (छत्तीसगढ़)

सरगुजा (छत्तीसगढ़)

छात्र युवा संघर्ष वाहिनी; चाईबासा (झारखंड)

चाईबासा (झारखंड)

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