पावनी:
उत्तराखंड में कई दंतकथाएं मौजूद हैं। दंतकथा मतलब ऐसी कहानियाँ या बातें जो कहीं लिखीं नहीं गई, किन्तु परंपरागत रूप से सुनी जाती हैं और दोहराई जाती हैं। ये लोक कथाओं का ही एक रूप है। इनमें सच्चाई हो भी सकती है और नहीं भी। उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव – लोद में भी ऐसी ही एक दंतकथा मौजूद है।
मेरे गाँव की एक भूतिया कहानी
बहुत समय पहले की बात है, दो गाँव थे – लोद और गल्ला। लोद गाँव में एक बची नाम का एक पुरुष रहता था। वह अपने घर में अकेला रहता था। दिनभर वह बकरियाँ चराता था, लेकिन रात में उस बेचारे के साथ कुछ और ही हो रहा होता था। वह रोज़ रात को बकरी का दूध लाता अपने लिए और उसे कोई और ही पी जाता। पर कौन? कौन था जो रोज़ रात को उसका सारा दूध पी जाता था? भूत? हाँ! चमार नाम का एक भूत, जो रोज़ उसका दूध पी जाता था। वह 17 फुट लम्बा था और उसकी सारी ताकत उसके बालों की लटों में थी, जो उसकी ही तरह 17 फुट की थी।
बची उससे बहुत डरता था। एक दिन सुबह-सुबह इस समस्या का हल ढूँढने बची अपनी माँ के पास गया। उसकी माँ ने पहले सारी समस्या सुनी और फिर बची को कहने लगी कि जब वो तुझसे दूध मांगने आएगा, तो तू पहले से ही उसमें मिर्च मिला देना। इतनी मिर्च डालना, जिससे उसे तुझ पर गुस्सा आए। फिर तो उसे तुझ पर इतना गुस्सा आएगा कि वो तेरे सामने आ जाएगा। तू फिर अपने दरवाज़े की सांग्व (पहाड़ी में पुराने समय के दरवाजों पर लगाई जाने वाली सांकल) से मार देना। उसको कहीं पर भी मारने से वो नहीं मरेगा। तू उसकी सीधा लट पर मारना और भागना बिल्कुल भी मत।
फिर बची अपने घर गया और शाम को उसने दूध में मिर्च मिला दी। भूत को इतनी मिर्च लगी कि वह बची को मारने के लिए उसके सामने आ गया। पर बची ने उसे मारा नहीं, वह वहां से भाग रहा था। भागते-भागते वह लोद-गल्ला के बीच नदी में पहुँच गया और भूत भी। दोनों अब आपस में लड़ने लगे। मारते-मारते बची ने चमार की लट उखाड़ दी और भूत ने बची को मार दिया।
बची तो मर गया, लेकिन भूत कहाँ मरता है, उसकी तो बस ताकतें गई थी। भूत ने फिर लोद और गल्ला गाँव वालों के सामने तीन शर्तें रखी। वो तीन शर्ते थीं –
1. लोद-गल्ला गाँवों में कोई भी बची नाम नहीं रखेगा।
2. तुमड़ी (लौकी) के ऊपर कोई नमक नहीं रखेगा।
3. शंख की माला कोई नहीं पहनेगा।
चमार की लट अभी भी लोद या गल्ला गाँव में हैं और ये शर्तें अभी भी मानी जाती हैं, नहीं तो चमार जीवित हो जाएगा, ये माना जाता है।
