पावनी:
दिल्ली शहर में गयी पहली बार,
सोचा देखूंगी लाल किला और कुतुबमीनार,
दो-मंजली गाड़ी में बैठी पहली बार,
वहां से दिखी मुझे एक मीनार,
मैंने सोचा, शायद यही है कुतुबमीनार।
मैंने सोचा, आज तो हो ही गया बेड़ा पार
मैं तो हो गयी खुशहाल
आज मैंने देख लिया कुतुबमीनार।
लेकिन कुछ और ही होना था इस बार,
उससे आगे देखा कितनी ऐसी मिनारें,
मैंने सोचा इतनी कुतुबमिनारें!
उस मिनार से निकला धुएँ का गुब्बार,
उन मिनारों के बीच में कूड़े की बाढ़
वैसे तो पहाड़ी ठेरे हमें नहीं थी दिल्ली की सार,
दिल्ली को सड़कों पर थी आदमियों की बाढ़।
