गरीबी और जाति का बड़ा ही गहरा रिश्ता है, और ऐसा ही रिश्ता है जाति और अशिक्षा का। जहां कुछ जातियों को अन्य जातियों ने संसाधन और शिक्षा दोनों से दूर रखा, वहीं आज सरकारों ने इसी भेदभाव को जारी रखते हुए इन जातियों को शिक्षा मुहैया करवाए जाने से वंचित रखा। कारण साफ है नीति बनाने वाले उन्हीं जातियों से आते हैं जिन्होंने शोषण किया था। इसी विचार को ध्यान में रखते हुए इस दफा संगठन के युवाओं के साथ मार्क्स और अम्बेडकर को पढ़ा गया। इन्हीं युवाओं में से एक मिथुन द्वारा ये लेख लिखा गया है।
भारतीय इतिहास में एक समय ऐसा था जब समाज का कोई व्यक्ति किस वर्ण का होगा या कौन सा काम करेगा, यह उस व्यक्ति की काबिलियत से तय होता था। जिस व्यक्ति में जैसा हुनर होता था, वह उस वर्ण के अन्दर आते थे, लेकिन आज के समाज में यह कैसे हो गया कि किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से ही तय हो जाती है? अगर किसी बच्चे या बच्ची का जन्म ब्राह्मण जाति के घर होता है तो वह ब्राह्मण हो जाता है, अगर दलित के घर जन्म लेता या लेती है तो वह जीवन भर के लिए दलित जाति का हो जाता है या हो जाती है। आखिर ये बदलाव कैसे आया? डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखे गए लेख “ब्राह्मणवाद की विजय” से इसका पता चलता है।
बात उस समय की है जब राजाओं का शासन हुआ करता था, अशोक भी ऐसे ही एक राजा थे। बाद में अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया और उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार–प्रसार भी खूब किया। अशोक ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर हिंसा पर रोक लगा दी थी। बौद्ध धर्म में किसी भी वर्ण के लोगों को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था और किसी भी तरह के छुआछूत को नहीं माना जाता था। सभी को सामान्य इन्सान मानते थे। पूजा-पाठ कराना, यज्ञ कराना, पशु बलि देना ब्राह्मणों का व्यवसाय हुआ करता था जो आज भी है।
अशोक के राजा होने और बौद्ध धर्म के आने से ब्राह्मणों का विशेषाधिकार ख़त्म हो गया और उनका जीवन भी अन्य लोगों की भाँति सामान्य हो गया। इससे पुष्यमित्र सुंग ने विद्रोह करना शुरू कर दिया, वह ब्राह्मण जाति के था और मनुस्मृति को आधार बनाकर ब्राह्मणों का वर्चस्व स्थापित करना चाहते था। मनुस्मृति में ये लिखवाया गया कि ब्राह्मण सबसे ऊपर है और बाकी वर्ण/जाति उससे नीचे। खासकर शूद्र या आज के बहुजन/दलित, केवल बाकी वर्ण /जातियों की सेवा करने के लिए हैं और उन्हें शिक्षा का कोई अधिकार नहीं है। यही नियम महिलाओं पर भी लागू हुए, ये झूठी ऊंच-नीच ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई, जिसका ज़हर आज भी मौजूद है।
ब्राह्मणवाद को स्थापित करने के लिए वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था में बदल दिया गया यानी अब जाति वो होगी जो पिता की है। अब अगर शूद्र पढ़ाई में अच्छा हो या हथियार अच्छे से चलाता हो, तो भी वो शूद्र ही रहेगा, ब्राह्मण या क्षत्रिय नहीं बनेगा। ब्राह्मणवाद ने समाज में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए हर तरह की बातों का खयाल रखा ताकि जाति व्यवस्था समाज में बनी रहे। इसके लिए उन्होंने एक ही जाति में विवाह करने के नियम को लागू किया। इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी जाति से बाहर शादी नहीं कर सकते था। अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण है और शूद्र से शादी कर ले, तो उनके बच्चे तो दोनों के ही होंगे। इससे जाति व्यवस्था टिक नहीं पाती, इसलिए जाति के नियम को बहुत सख्ती से लागू किया गया।
एक ही जाति में शादी करने के नियम बनाए रखने के लिए यह जरूरी था कि उस जाति में स्त्री और पुरुष की संख्या बराबर हो। अगर किसी स्त्री का पति मर जाता है तो समाज में एक स्त्री अधिक हो जाती, तो अब वह किसी और जाति में शादी करके अपनी जीवन यापन करना चाहती। क्योंकि उसकी जाति में अब कोई शादी योग्य पुरुष नहीं था, इससे जाति के नियम टूट जाते। इसलिए ब्राह्मणवादी सोच ने यह नियम लागू किया कि स्त्री को अब अपने पति के साथ जलकर मरना पड़ेगा या अपने परिवार और धन–संपति को छोड़कर जीवन भर समाज से बाहर विधवा बनकर रहना पड़ेगा। अगर किसी पुरुष की पत्नी मर जाती है, तो पुरुष को जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा या फिर उस पुरुष की शादी उस बच्ची से करवा दिया जाए, जिसकी उम्र अभी शादी के लायक नहीं हुई हों, यानि पुरुष की उम्र 30 साल है तो उसकी शादी 12 साल की लड़की से करवा दी जाए। इस प्रकार समाज में जाति व्यवस्था और महिला उत्पीड़न शुरू हुआ।
बाल विवाह और जाति प्रथा आज भी समाज में मौजूद है। जाति व्यवस्था ने जिस तरह समाज के ज़्यादातर लोगों को शिक्षा और रोज़गार से अलग रखा, उसका प्रभाव अभी तक देखने को मिल रहा है। अधिकतर लोग आज भी बेरोज़गार और अशिक्षित हैं। देश की जनसंख्या में अधिकतर संख्या तथाकथित नीची जाति के लोगों की ही है, जिन्हें हज़ारों वर्षों तक दबाया गया, इसीलिए अम्बेडकर जी ने शिक्षित होने पर ज़ोर दिया था।
