सीता – डर को जिसने निकाल फेंका

अमित:

सीता के इन्टरव्यू पर आधारित

सीता अपनी नई व्हीलचेयर पाकर बेहद खुश है। खासतौर से इसलिये कि यह फ़ोल्डिंग वाली है। सीता का कहना है कि अब वो बस से कहीं भी जा सकती है। बस कंडक्टर से कहकर फ़ोल्डिंग चेयर उपर रखवा लेगी या अपने साथ सीट के पास ही रख लेगी।

आधारशिला बालिका शिक्षण केन्द्र की संचालिका, सुमन जी, 40 डिग्री की तपन में चित्तौड़ बाज़ार में घूमकर उसके लिये लाई हैं। दो दिवसीय शिविर के लिये मंडी से सब्ज़ियाॅं लीं, फिर स्टेशनरी, कैंसर से लड़ते पति की दवाइयाॅं लीं और इसी तरह की कुछ चीज़ें। ऊपर से इस व्हीलचेयर के चक्कर में और एक दो घंटे लग गए। आज ही क्या ज़रूरी था यह व्हीलचेयर लेना? आज सीता शिविर में आएगी तो खुश हो जाएगी। बहुत दिनों से मेरे पीछे पड़ी है फ़ोल्डिंग वाली व्हीलचेयर लाने के लिये। किसी मित्र ने इसके लिये पैसे भी भिजवा दिए थे। तो आज ही ले लेती हॅूं, सोचा।

सीता, व्हीलचेयर पर बैठकर इधर-उधर घूमकर देख रही है कि यह ठीक है न। थोड़ी देर के बाद संतुष्ट होती है। हल्की है। नीचे पैर रखने वाला पार्ट भी नहीं है। इसकी ज़रूरत ही नहीं है, क्योंकि पैर तो हैं ही नहीं सीता के। 

क्या हुआ तुम्हारे पैरों को?
एक दुर्घटना हो गई थी मेरे साथ। एक बार मैं किसी रिश्तेदार के घर से बस में वापिस आ रही थी। ठेकेदार के आदमियों ने मुझे रास्ते में उतार लिया और हाथ-मुॅंह बांध दिए। एक वैन में डालकर कहीं ले गए, जहां उन लोगों नें मेरे साथ गलत काम किया। वहाॅं से वो मुझे रेल की पटरी के पास ले गए। जैसे ही रेल आई मुझे पटरी पर फेंक दिया।

तो बच कैसे गईं तुम ?
किस्मत से मेरा शरीर दोनों पटरियों के बीच में गिरा। पैर पटरी पर थे। बंधे होने के कारण मैं पैरों को नहीं बचा सकी। एकदम से रेल आ गई। रेल मेरे पैरों के उपर से गुज़र गई।

आश्चर्य की बात यह है कि सीता को यह सब याद है। वो बेहोश नहीं हुई। याद है कि दोनो पैर कटकर अलग हो गए थे। खून बह रहा था। रेल के ड्राइवर नें यह हादसा देखा था। वह ट्रेन वापिस लेकर आया। सब लोग देख रहे थे। एक आदमी ने मेरी मदद की। कुछ लोगों ने उठाया और रेल में डाल दिया और उदयपुर के अस्पताल ले गए।

डेढ़ महीने तक सीता अस्पताल में रही। कई महीनों तक घर से उसके घावों की ड्रेसिंग होती रही। किस्मत थी तो बच गई।

तुम्हे देख कर तो लगता नहीं कि तुम्हारे साथ इतना सब कुछ हो चुका है।
हाॅं अब तो मैं भूल भी गई हूॅं। मैने सोच लिया है कि मैं अपनी ज़िंदगी जियूॅंगी।

अच्छा ऐसा क्यों किया उन लोगों नें तुम्हारे साथ? पहले से छेड़-छाड़ करते थे या क्या बात थी?
मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई थी। मैं उन्नीस-बीस साल की थी। घर का खर्च चलाने के लिये मैं मज़दूरी करने जाती थी। गाॅंव में जो मज़दूरी निकलती उसमें काम करती थी। घर में माॅं थी और एक भाई। करीब चार एकड़ ज़मीन थी। पिताजी की मृत्यु के बाद से ही गाॅंव के सरपंच और ठेकेदार हमारी ज़मीन हड़पने के चक्कर में लगे हुए थे।

मैं उन्हे रोक रही थी। ज़मीन चली जाती तो हम कैसे खाते। मैने सोच लिया था कि ज़मीन तो इन्हे नहीं लेने दूॅंगी। 

कई बार प्रधान और ठेकेदार से मेरी बहसबाज़ी हो चुकी थी। मेरी माॅं मुझे समझाती थी कि बड़े लोगों से झगड़ा मत कर। इनसे हम नहीं लड़ सकेंगे। वे लोग मेरी माॅं को भी धमकियाॅं देते रहते थे, लेकिन मैं ज़मीन बचाने के लिये अड़ी रही। जब मैं नहीं मानी तो उन लोगों नें हमारे खेत जाने के रास्ते को रोक दिया। रास्ते में काॅंटे की झाड़ियाॅं भर दीं। तीन चार बार मैने वो काॅंटे हटाए। वो बार-बार रख देते थे। आखिर में मैनें वो काॅंटे जला दिए। इस बात से तो सरपंच और ठेकेदार बहुत गुस्सा हो गए और बात और बढ़ गई। उस दिन हमारा बहुत झगड़ा हुआ।

किसी से कम्प्लेन्ट नहीं की क्या?
सरपंच के लड़के ने मुझे धमकी दी कि वो मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर देगा। सरपंच का लड़का गुंडा था, उस पर बहुत से केस लगे थे। हिस्ट्रीशीटर था। गाॅंव में बहुत से महिलाओं के साथ वो गलत काम कर चुका था। कोई उसे कुछ बोलता तो उसे पीट देता था। सब लोग डरते थे उससे। पहले भी वो मुझे तंग करता रहता था। जब उन्होने देखा कि यह नहीं मान रही तो फिर एक दिन उन्होने मुझे पकड़ लिया और मेरे साथ वो सब किया।

पुलिस कार्रवाही तो हो गई थी। कोर्ट में केस चला। इस समय भी वे लोग मेरी माॅं और भाई को धमकियाॅं देते रहे केस ख़त्म करवाने के लिये। लेकिन मैं नहीं मानी। मैने ठान लिया था कि उन लोगों को सज़ा दिला कर रहॅूंगी। इस बात पर मेरी माॅं से भी झगड़ा हो गया और मेरी माॅं ने मुझे घर से बाहर फेंक दिया।

फेंक दिया?
हाॅं फेंक ही दिया, शाम का टाइम था। फिर मैने पुलिस का नम्बर डायल कर दिया। पुलिस मुझे थाने ले गई। वहाॅं वो मुझे नारी निकेतन में भेज रहे थे। मैने सोचा कि मैं नारी निकेतन में नहीं जाउॅंगी। मैने उन्हे चित्तौड़ की एक संस्था – प्रयास – का पता बताया और कहा कि मैं वहाॅं जाउॅंगी। मैने प्रयास का केवल नाम सुना था। फिर कुछ दिन प्रयास में रही, कभी दोस्तों के पास जयपुर रही। वहाॅं कुछ काम करती थी।

फिर एक बार प्रयास में सुमन जी मिल गई, उन्होने मुझे उनके स्कूल के बारे में बताया तो मैं वहाॅं पढ़ने आ गई। सुमन जी के पति खेमराज जी ने मुझे ज़बरदस्ती स्कूल में डाल दिया। मैं कह रही थी कि इतनी बड़ी हो गई हूॅं, अब नहीं पढ़ सकूॅंगी। लेकिन सुमन जी और उनके पति ने मुझे पीछे पड़कर पढ़वाया और इस साल मैं बारहवीं का एक्ज़ाम दे रही हूॅं। ओपन से फ़ाॅर्म भरा है।

तो केस का क्या हुआ?
केस चला, मैने गवाही दी। दो लोग जेल में हैं जिन्होंने मेरे साथ गलत किया था और रेल पटरी पर फेंका था। सरपंच का लड़का तो नहीं गया जेल में, जिसे जाना चाहिये था। वो था जब मुझे पटरी पर फेंक रहे थे पर उसने दूसरों से काम करवाया था।

और ज़मीन का क्या हुआ? 
ज़मीन हमारे पास है।

तो अब कहाॅं रहती हो तुम?
मैं एक दूसरे गाॅंव में रहती हूूॅं, मेरे गाॅंव के पास ही है। कुछ सिलाई का काम करती हॅूं। बारहवीं के बाद शायद कुछ और काम मिल जाए।

अब सरपंच, ठेकेदार तंग नहीं करते तुम्हे? 
नहीं। मैं तो उनके गाॅंव में ही रहती हॅूं। मैने भी उसे बोल दिया है – कुछ भी करके दिखा, हिम्मत है तो।

उनके गाॅंव में ही रहती हो ! डर नहीं लगता तुम्हे वहाॅं?
नहीं। डर को तो मैने कब से निकाल दिया है। अब और क्या करेगा मेरे साथ। डरती तो मैं बिलकुल नहीं हूॅं।

तुम तो बहुत ही बहादुर हो। अब आगे क्या सोच रही हो? 
देखो अब क्या होता है। और पढ़ूॅंगी। कुछ छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए तो करूंगी।

पैर लगवाने की नहीं सोची कभी?
लगाए थे जयपुर वाले, पर वो सीधे होते हैं और भारी भी तो ठीक नहीं लगे। मैं अकेले उन्हे बांध भी नहीं पाती थी। बस खड़ी हो पाती थी उनसे। अब एक कम्पनी के मिले हैं जो थोड़े हलके हैं पर इनसे भी सीढ़ी नहीं चढ़ पाती। इनमें भी घुटने का जाॅइन्ट नहीं है। बस ये है कि वाॅकर से घर में चल लेती हूं।

चलो देखते हैं कुछ और हो सकता है क्या तुम्हारे पैरों के लिए। यह शिविर कैसा लगा तुम्हे?
बहुत अच्छा लगा। मैं आगे भी ज़रूर आउॅंगी इसमें। आ सकती हूॅं ना?

अमित: ज़रूर आना, तुम्हारी कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूॅं। अपने दोस्तों को भी सुनाउॅंगा। तुम सच में बहुत बहादुर हो, एक मिसाल हो हम सब के लिए।

सामजिक परिवर्तन शाला के शिविर में सीता भी एक प्रतिभागी थी




















Author

  • अमित / Amit

    अमित, सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़े हैं और मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले में एक वैकल्पिक शिक्षा के प्रयोग पर शुरू हुआ स्थानीय स्कूल - आधारशिला शिक्षण केन्द्र चलाते हैं।

Leave a Reply