मंथन:
कल काफिले उतरे थे
सड़कों पर,
कुदरती काले और साँवले
मेहनत के पसीने
और धूल मिट्टी से सने
धूपजले काले साँवले
कुछ मेहनतकश इंसाफपसन्द गोरे भी
रंगभेद सहित भेद के हर रंग से मुकाबिल
हर रंग के लड़ने – भिड़ने वाले
सफेदपोशों के लूटेरे हत्यारे
कानूनों को नकार रहे थे
साथ ही बड़े सहज भाव से
उन कानूनों को काला बता रहे थे
लगता था मानो
काला कहे बिना वे
वे उनकी पूरी गन्दगी दिखा न सकेंगे
मन की गजब गुलामी है
अकल की अजब नीलामी है
कि नीलामी और गुलामी पर बिफरे हम भोले
शब्दों में सने रंगभेद के आदी हैं
कब हम शब्दों की परतें खोलेंगे
उनके मायने तौलेंगे
नाप तौल ,सोच समझ
लिखेंगे और बोलेंगे
