हा कोरोना कधी जाईल व माय

समीक्षा:

(मराठी कविता)

हा कोरोना कधी जाईल व माय …..

आम्ही गरीबांनी सांगा खाव काय..

नाही चिल्लर ,नाही नोट 

मोदी सरकार म्हणे वाजवा ताट.

शासन म्हणे देतो ,सिलेन्डर गँस

दारात राहुन वाजवा ताट

ताट वाजवुन कोरोना गेलाच न्हाय…

आम्ही गरीबांनी सांगा खावं काय… 

शेतकर्‍याचे पिकं, विकण्या नाही बाजारपेठ

पिकं पिकवुन ….कराव काय…

मोठ्या लोकांच सारचं हाय 

गरीबान सांगा खाव काय

या वायरसन केली सारी पायापाय..  

हा कोरोना कधी जाईल व माय…

शेतकरी झाला चाकर…कराव काय हा आहे विचार..

सांजची भिळना भाकर..

घरात राहा म्हणे मोदी सरकार…..

घरात राहुन …राहुन खाव काय…

हा कोरोणा कधी जाईल व माय….

हिन्दी अर्थ

कोरोना महामारी में किसानों और श्रमिकों के ऊपर क्या गुजर रही है इसका वर्णन करते हुवे कविता में कहा है, इस वायरस के प्रकोप सर अब हमारे पास न नोट बचे है, ना चिल्लर।सरकार ने कहा था कि थाली बजाओ,फिर भी कोरोना तो गया नहीं और हमारे खाने के लाले पड़ गए।किसान की उपज के लिये बाज़ार नहीं, देहाडी मज़दूरों का काम बंद है,ऐसे में गरीब आदमी क्या करे,कैसे जिये।इधर शाम की रोटी के लाले पड़े हुए हैं और उधर मोदी सरकार कहती है घर में रहो जान बचाने के लिए। इस वायरस ने हमारा जीना दूभर कर दिया।

Author

  • समिक्षा / Samiksha

    समीक्षा, महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़ी हैं। वह कष्टकारी जन आन्दोलन के साथ जुड़कर स्थानीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।

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