काकरी डूंगरी, डूंगरपुर ज़िले में है। यहाँ कंकड़ और पत्थर की बहुतायत के कारण इसका नाम काकरी डूंगरी पड़ा है। यह हाइवे संख्या NH-8 पर स्थित है। काकरी डूंगरी पहाड़ी पर 18 दिन तक शांतिपूर्वक धरना-प्रदर्शन हो रहा था। यह प्रदर्शन 2018 की शिक्षक भरती में टीएसपी एरिया (जनजातीय क्षेत्र) के खाली 1167 पद जो अनारक्षित रह गए थे, उसके लिए धरना दे रहे थे।
(राजस्थान के टीएसपी एरिया या जनजातीय क्षेत्र में आठ जिले डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, सिरोही, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, राजसमंद और पाली आते हैं)
यहाँ पर धरना-प्रदर्शन होना कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले भी एक बार हाईवे जाम और पिछले साल दिसम्बर 2019 में भी छात्र इस पहाड़ी पर कड़ी ठण्ड में चढ़े थे, तो सरकार ने उनको आश्वासन देकर वहां से 6-7 दिन धरना देने के बाद, उतार दिया था। इन अनारक्षित पदों के लिए एक कमेटी गठितकर, उन छात्रों की मांग को तीन महीने में पूरी करने और नियुक्ति देने का आश्वासन दिया था। इसके बाद 9 महीने गुज़र जाने के बाद भी न तो कोई कमेटी गठित की और ना ही नियुक्ति देने की बात हुई और उनकी मांग को सरकार ने दरकिनार कर दिया।
काकरी डूंगरी पर फिर बेरोज़गार छात्र 9 महीने बाद, दिनांक 7 सितम्बर 2020 को वापिस आए तथा वहां पर ही दिन-रात रहने लगे, उनमे छात्र-छात्राएं दोनों ही थे। यह पहाड़ी जंगलों से घिरी हुई है और यहाँ पर जब धरना-प्रदर्शन चल रहा था उस समय दक्षिणी राजस्थान में तेज़ बारिश का दौर चल रहा था। बारिश के समय रहना छात्रों के लिए एक कड़ा संघर्ष था। इस धरने में सभी पार्टियों के कुछ जनप्रतिनिधि आए जो सिर्फ आश्वासन दे रहे थे। इस पर छात्रों ने इसका हवाला देते हुए कि हमको पहले भी आश्वासन देकर यहाँ से उतारा गया है, धारणा प्रदर्शन बंद करने से माना कर दिया। अब हम इन झूठे आश्वासनों से तब तक नहीं उतरेंगें जब तक सरकार इसके बारे में कोई ठोस कदम नहीं ले।
स्थानीय जनप्रतिनिधि:
राजस्थान के टीएसपी एरिया में कुल 17 एमएलए (विधायक) और 3 एमपी (सांसद) हैं। छात्रों की मांग थी कि समाज के सभी एमएलए यहाँ आएं, हम उन्हें यहां बुलाना चाहते हैं। इनमें बी.टी.पी. (भारतीय ट्राइबल पार्टी) के 2 एमएलए ने छात्रों की मांग को पूर्ण समर्थन दिया। कांग्रेस के 2 और बीजेपी के भी 2 पूर्व विधायक यहाँ आए थे। राज्य में कांग्रेस सरकार है, तो कुछ स्थानीय नेताओं व एमएलए ने यहाँ पर धमकी दी कि आप मेरे विधानसभा क्षेत्र से उतर जाओ और अन्य जगह जाकर धरना दो।
18 दिन तक धरना प्रदर्शन शांतिपूर्वक चला। बीच-बीच में पुलिस वालों ने भी सभी को धमकाया तथा 6-7 लोगों के ऊपर कोविड-19 के दौरान सामाजिक दूरी ना रखने के आरोप में FIR दर्ज की, जो कि सरासर गलत है। काकरी-डूंगरी एक बहुत बड़ा पहाड़ है और धरनास्थल पर सामाजिक दूरी के सभी नियमों का ध्यान रखा गया।
24 सितम्बर 2020 को जयपुर में इस मुद्दे के लिए उच्च स्तरीय मीटिंग रखी थी जिसके लिए सभी विधायक जयपुर गए, साथ ही बी.टी.पी. के 2 विधायक भी जयपुर गए। फिर मीटिंग को अचानक कोरोना का हवाला देते हुए निरस्त कर दिया गया। उस दिन आदिवासी समाज के लोग भी धरना स्थल पर आए थे। मीटिंग के रद्द होने से छात्रों के साथ-साथ समाज के शेष लोग भी सरकार के खिलाफ हो गए। इसके बाद सभी इस नतीजे पर पहुंचे कि सरकार हमें गुमराह करने का प्रयास कर रही है, फिर सभी पहाड़ी से उतर कर NH-8 पर आए, और रास्ते को जाम कर दिया।

हाईवे जाम:
प्रदर्शन के 18वें दिन 24 सितम्बर की शाम को 4 बजे NH-8 को दोनों तरफ से जाम कर दिया गया, जो लोग वहां शांतिपूर्वक बैठे थे, पुलिस ने उन्हें खदेड़ने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस का प्रयोग किया। इससे मची भगदड़ से कुछ आंदोलनकारियों को चोट भी आई। फिर पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हुई, जिसमें पुलिस ने लाठीचार्ज किया और भीड़ पर आंसू गैस के गोले दागे। फिर छात्र उग्र हो गए और पूरी रात वहीं डटे रहे। सुबह एसपी और कलेक्टर ने दौरा किया और छात्रों और पुलिस के बीच मामले को शांत करने का प्रयास किया। दोपहर के बाद फिर पुलिस ने बिना कोई चेतावनी दिए छात्रों पर हमला कर दिया, आस-पास के घरों में घुसकर स्थानीय लोगों से मारपीट की गई और कुछ युवाओं को घसीटकर, बंधक बनाकर साथ में ले गए। गाँव के सरपंच के भाई को भी घर से मारपीट कर साथ में ले गए।
पुलिस की हिंसात्मक कार्रवाही से गाँवों में पुलिस के प्रति एक डर पैदा हो गया, तब गाँव वालों ने ढोल बजाकर सभी को इकट्ठा किया और फिर लड़ाई स्थानीय लोग और पुलिस के बीच हुई। पुलिस ने छात्रों के वाहनों में आग लगा दी और तोड़फोड़ की, जिससे मामला और गर्म हो गया। प्रशासन के इस रवैये ने आंदोलन को और उग्र बना दिया। तीसरे दिन 26 सितंबर को पुलिस ने गोलाबारी चालू की, जिसमें 2 छात्रों की मौके पर ही मृत्यु हो गई और कई छात्र घायल हो गए। इस घटना के बाद, हाईवे को रात में ही खाली कर दिया गया और सभी डर गए कि पुलिस किसी को भी गोली मार सकती है। NH-8 तीन दिन तक बंद रहा, वहां 72 घंटे का जाम रहा, और फिर 28 सितम्बर को हाईवे पुनः चालू हुआ।
मीडिया की भूमिका:
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। मीडिया का काम निष्पक्षता से हर खबर को लोगों तक पहुँचाने का है। इस क्षेत्र के मीडियाकर्मी उच्च वर्ग से होने के नाते, हक़ और संविधान की लड़ाई लड़ने वालों को ‘नक्सलवादी’ की परिभाषा दे रहे हैं। सभी छात्रों को पत्रिका, समाचार पत्र, टीवी में ‘नक्सलवाद’ से जोड़कर बताया गया है जो कि पूर्णत: गलत है। अगर इसी तरह कोई और (गैर आदिवासी समुदाय) आन्दोलन कर रहा होता, तो वो शायद उसका समर्थन भी करते। पर यहाँ मीडिया, सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं बोली। यह कोई पहला आन्दोलन नहीं है, भारत में हर समय किसी ना किसी क्षेत्र में आंदोलन होते रहते हैं, जैसे राजस्थान में गुर्जर और जाट आंदोलन और गुजरात में पाटीदारों का आन्दोलन।
पुलिस प्रशासन की नीति:
पूरे घटनाक्रम की ज़िम्मेदारी प्रशासन की है, जिसने सबसे ज़्यादा गलत नीति अपनाई। वो निर्दोष लोगों को भी ज़बरदस्ती उठाकर ले गए और घरों में घुसकर लोगों के साथ मारपीट की और निर्दोष लोगों को टारगेट बनाया। हजारों की संख्या में लोगों पर FIR दर्ज़ की गई। अलग-अलग लगभग 40 मुकद्दमों में हज़ारों छात्रों का FIR में नाम आया है। इनमें कुछ ऐसे लोगों का भी नाम है, जिनकी दो साल पहले ही मृत्यु हो गई है। पुलिस और सरकार ने स्थानीय छात्र, सरकारी कर्मचारी, समाजसेवी लोगों को गिरफ्तार किया है। अभी लगभग 500 से 700 लोग जेल में हैं जिनमें ऐसे लोग ज़्यादा हैं जो ‘बीटीपी’ के कार्यकर्ता हैं।
प्रमुख नारे:
1167 सीटों की मांग पूरी करो, पूरी करो।
कांग्रेस सरकार होश में आओ, होश में आओ, होश में आओ।
हमारी मांग को पूरी करो, पूरी करो, पूरी करो।
घोघरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।
बेरोज़गारों को रोज़गार दो, रोज़गार दो।
