सुरेश डुडवे (बड़वानी):
मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले की वरला तहसील के देवली गांव के किसान फसल के सही दाम नहीं मिल पाने से परेशान हैं। केंद्र सरकार मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी 1850₹/क्विंटल, कपास की 5255₹-5825₹/क्विंटल, और सोयाबीन की 3880₹/क्विंटल निर्धारित की है। लेकिन कई सारे किसानों से आस-पास के व्यापारी, मक्का 800₹ से 900₹/क्विंटल, जबकि कपास 3500₹ – 4000₹/क्विंटल के दाम पर खरीद रहे हैं। इसी प्रकार अन्य फसलों को भी एमएसपी के मुक़ाबले बहुत कम दामों में खरीदा जा रहा है। ऐसे में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से प्रति क्विंटल 900₹ से 1000₹ कम दाम मिल रहा रहा है।
किसान सरकार की बताई गई वेबसाइट mpeuparjan.nic.in पर जाकर अपनी फसल का पंजीयन करने का प्रयास कर रहे हैं, किंतु उसमें भी पटवारी द्वारा फसल के गलत विवरण भरे जाने के कारण समस्या आ रही है। देवली गांव के किसानों के फसल विवरण में अधिकतर ज्वार, कपास और बाजरा की फसल ऑनलाइन में दिखाई दे रही है, जबकि अधिकतर किसानों ने मक्का और सोयाबीन भी बोया था जिसका ऑनलाइन विवरण उपलब्ध नहीं है। जिस किसान ने अपनी ज़मीन पर मक्का लगाया है उसे ऑनलाइन ज्वार की फसल दिखाई दे रही है, जबकि जिस किसान ने सोयाबीन लगाई थी उसकी ऑनलाइन में बाजरा की फसल अंकित की हुई है। अब किसान को मक्का का पंजीयन करना है तो वह कैसे कर पाएगा? ऑफलाइन पंजीयन कराने की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार के कर्मचारी बिना मुआयना किए किसानों की फसल का ब्यौरा मन से कैसे भर दिये? इस कारण किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त करने के लिए पंजीयन करने में समस्या आ रही है। यह केवल मेरे गाँव की बात नहीं है। आस-पास के अन्य गांवों के किसानों को भी अपनी फसल का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा। आप भी अपने गांव में इस प्रकार की समस्या का सामना कर रहे हैं तो लिखें और किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने की कोशिश करें।

पंकज सेनानी (बड़वानी):
ये जो नया कृषि बिल पास हुआ है वो किसान के हित के लिए नहीं है, सरकार के एमएसपी तय किए जाने के बाद भी छोटा किसान, बाज़ार में, प्राइवेट जगह या सेठ के यहां अपनी फसल बेचता है। कारण यह है कि सेठ के यहां से ही वह बीज, खाद एवं दवा खरीदकर लाता है और उसका कर्ज़ चुकाने के लिए उसे सेठ को ही फसल बेचनी पड़ती है। एमएसपी से बहुत कम दाम मिलने पर भी किसान को सेठ को ही फसल बेचनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में यह बिल कॉरपोरेट को फ़ासलों के दाम तय करने का मौका देता है।
खेती के व्यापार और फसलों के दामों को कॉरपोरेट के हाथ में छोड़ देने से छोटे तो क्या जो बड़े-बड़े किसान हैं, वह भी बहुत प्रभावित होंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं कि अगर किसान को फसल का भाव पसंद हो तो वह फसल बेचें, नही तो ना बेचें। ऐसे में किसान बुरी तरह से फंस जाता है, क्यूंकी व्यापारियों की भी एक यूनियन होती हे जो एक होकर चलती है। यानि सब मिलकर फसल का भाव तय करते हैं और सब उसी दाम पर फसल खरीदते हैं। वहीं किसान एक असंगठित समूह है, इस बात को हमे समझना होगा।

मोहन (दमोह):
किसान बिल के संदर्भ में केंद्र सरकार व राज्य सरकार की चाल को समझना चाहिए। पिछले साल प्रधानमंत्री ने 5 एकड़ से कम ज़मीन जोतने वाले लघु किसानो के लिए सालना 6000/- की किसान सम्मान निधि की घोषणा की। इसमें राज्य सरकार द्वारा किसान सम्मान निधि 4000/- और जोड़ी गई और टोटल 10000/- रुपये की राशि किसान को देने की बात हुई। वहीं इस साल किसान विरोधी 3 कानून बना दिये गए। हमारे देश व राज्य में किसान संगठनो की कमी है, इस कारण केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए किसान विरोधी बिलों का विरोध, राज्यों में पुरज़ोर तरीके से नहीं हो पा रहा है।
