मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ – कविता 

डॉ. नेरन्द्र दांभोळकर: मूर्तियाँ पूजने के बजायमैं मानव पूजता हूँकृत्रिम देवों को न मानकरमैं फूले-शाहू-अंबेडकर को पढ़ता हूँमैं छाती ठोककर कहता हूँमैं झूठ त्यागकर, नास्तिक

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आस्तिकता और नास्तिकता से परे है हमारी संस्कृति

पावनी: एक बार मेरे पापा के दोस्त हमारे घर आए हुए थे। दूर का सफ़र था इसलिए रात को वो हमारे घर ही रुके। उनके

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अनायास : गांधीजी के लिए क्या थे ईश्वर के मायने

अरविंद अंजुम: “मैं सत्य का एक विनम्र शोधक हूं। इसी जन्म में आत्मसाक्षात्कार के लिए मोक्ष प्राप्त करने के लिए आतुर हूं। करोड़ों गूंगी जनता

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