रोहित और रिया:
भारत के भू-भाग का एक बड़ा हिस्सा जंगल हुआ करता था, जिसमें कई वनवासी जातियाँ निवास करती थी। ये वनवासी जातियाँ जंगल और जानवरों के साथ सामंजस्य में रहते थे तथा वनोपज का इस्तेमाल करते थे। 17वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों के भारत आने के बाद जंगल से मिलने वाले वनोपज एवं वन उत्पाद को अपने लिए राजस्व/आय के रूप में देखा जाने लगा। भारत के जंगलों का उपयोग करने के लिए अंग्रेज़ोंं द्वारा पहला वन अधिनियम, 1865 बनाया गया, फिर वर्ष 1894 में वन नीति और उसके बाद वर्ष 1927 में वन का कानून बनाया गया, जिसमें वनों को आरक्षित वन और संरक्षित वन के रूप में विभाजित कर दिया गया, जिसके कारण इमारती लकड़ी के उपयोग एवं प्रबंधन को अंग्रेज़ोंं ने अपने हाथ में ले लिया। जंगलों एवं वन उत्पादों को सरकार की संपत्ति घोषित कर दिया गया और सदियों से जंगलों में रहने वाले वनवासी अतिक्रमणकारी घोषित कर दिए गये।
आज़ादी के बाद इनकी दशा सुधारने के लिए 1988 में वन नीति लाई गयी। इस वन नीति में स्थानीय लोगों के अधिकारों को महत्व दिया गया, लेकिन आर्थिक विकास के लिए जंगलो की कटाई जारी रही और वनवासियों को जंगल से बेदखल किया जाने लगा। इस तरह से हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन शुरू हो गये और अंत में वर्ष 2006 में वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देने और इनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 लाया गया।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के मुख्य उद्देश्य-
वन अधिकार अधिनियम के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं-
- जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी और परंपरागत वनवासियों के अधिकारों को क़ानूनी मान्यता देना,
- जंगलों के संरक्षण की व्यवस्था को मजबूत करना,
- वनों में निवास करने वाले लोगों की आजीविका को सुनिश्चित करना ,
- वनों में निवास करने वाले लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना,
- वनों में ग्राम सभाओं का सशक्तिकरण करना,
- वन अधिकारों को मान्यता देने और अधिकार प्रदान करने के लिए आवश्यक सबूतों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करना, और
- ज़मीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
वन अधिकार अधिनियम के तहत वन अधिकार का दावा करने के लिए कौन पात्र है?
वन अधिकार का दावा करने के लिए मुख्यतः दो प्रकार के लोग पात्र हैं-
- आदिवासी समुदाय के सदस्य- वनों में निवास करने वाले अनुसूचित जनजाति के लोग जो 13 दिसम्बर 2005 के पहले से प्राथमिक रुप से वन भूमि पर निवास निवास कर रहे हो, या अपनी आजीविका की वास्तविक ज़रूरतों के लिए वन या वन भूमि या वन उत्पादों पर निर्भर हों।
- अन्य परंपरागत वनवासी- वनों में निवास करने वाले ऐसे सदस्य या समुदाय जो अनुसूचित जनजाति के नहीं है एवं जो 13 दिसंबर 2005 से पहले कम से कम तीन पीढ़ियों (75 साल) से प्राथमिक रुप से वन भूमि पर निवास करते आ रहे हो, या अपनी आजीविका की वास्तविक ज़रूरतों के लिए वन या वन उत्पादों पर निर्भर हों।
आजीविका की वास्तविक ज़रूरतों का मतलब इस कानून की धारा 3(1) में दिये गये अधिकारों में से किसी भी अधिकार के इस्तेमाल द्वारा अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने से है, जिसमें अतिरिक्त उत्पाद की बिक्री भी शामिल है। उदाहरण के लिए वनभूमि के अंदर निवास करना, खेती करना, जलाने की लकड़ी इकट्ठा करना, पशुओं को चराना, गैर- इमारती वन उत्पाद जैसे चिलगोजा और जड़ी-बूटी आदि का संग्रह करना और उपयुक्त यातायात के माध्यम से वन क्षेत्र के भीतर और बाहर परिवहन व बिक्री व आजीविका से जुड़े अन्य सभी प्रकार के वन उपयोग हैं। लेकिन इस अधिनियम के तहत वन्य प्राणियों का शिकार करना एक अपराध है।
वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत क्या अधिकार दिए गए हैं :-
- व्यक्तिगत वन अधिकार-
- वनभूमि, जिस पर लोग व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से निवास (घर) या आजीविका के लिए खेती का अधिकार,
- खेती से जुड़े कार्य जैसे पशु रखने, फसल कटाई के बाद के काम, वृक्ष उपज और उत्पाद के भंडारण के लिए इस्तेमाल का अधिकार,
- सरकार या स्थानीय अधिकारी द्वारा लीज़/ पट्टों/ अनुदान में दी गयी भूमि को मलिकाना भूमि में बदलने का अधिकार,
- जहाँ पर 13 दिसंबर 2005 से पहले लोगों को किसी भी प्रकार की वनभूमि से पुनर्वास बिना गैरकानूनी रूप से बेदखल या विस्थापित किया गया हो वहाँ यथावत पुनर्वास का अधिकार,
- इस अधिकार के तहत दी गयी भूमि भूमि का क्षेत्रफल 4 हेक्टेयर से ज्यादा नहीं होगा इत्यादि।
- सामुदायिक वन अधिकार-
- सामुदायिक अधिकार जैसे निस्तार का अधिकार,
- वन या वनभूमि पर सामुदायिक उपयोग के अधिकार जैसे चराई, घास, लकड़ी, जड़ी-बूटी, देवस्थल, पानी के स्रोत, रास्ते, जैव-विविधता आदि अपनी वास्तविक ज़रूरतों के लिए 13 दिसंबर, 2005 से पहले से ऐसी भूमि का उपयोग करना,
- पारम्परिक रुप से गाँव की सीमा के भीतर या बाहर इकट्ठा किये गये लघु वन उत्पाद पर मालिकाना, इकट्ठा करने, उपयोग करने और उसे बेचने का अधिकार,
- खड्ड-नालों से मछली या अन्य उत्पादों के सामुदायिक उपयोग करने का अधिकार,
- सभी वन ग्रामों, पुराने आवासों, बिना सर्वे किये गये गाँवों और अन्य गाँव में बसने, और राजस्व गाँव में परिवर्तन का अधिकार,
- घुमन्तू पशु पालकों को मौसमी व स्थायी चराई और पारम्परिक मौसमी संसाधनों तक पहुँच का अधिकार,
- जैव-विविधता तक पहुँच और सांस्कृतिक व जैव विविधता से जुड़े पारम्परिक ज्ञान एवं बौद्धिक सम्पदा का अधिकार जैसे देव स्थलों की पूजा एवं जड़ी-बूटी इकठ्ठा करने का अधिकार,
- विशेष कमज़ोर जनजातीय समूह के लिये सामुदायिक आवास का अधिकार,
- समुदाय या गाँव के विकास का अधिकार आदि।
- सामुदायिक वन संसाधनों का अधिकार-
- वन संसाधनों की रक्षा, प्रबंधन, संरक्षण और पुनर्जीवित करने का अधिकार,
- ऐसे वन संसाधनों की सुरक्षा व संरक्षण का अधिकार जिनका उपयोग समुदाय परम्परागत रुप से करते आ रहे हैं।
वन अधिकार क़ानून में ज़िम्मेदार निकाय :
इस अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए विभिन्न निकायों का गठन किया गया हैं।
- ग्राम सभा और वन अधिकार समिति
- उप-खण्ड स्तरीय समिति
- जिला स्तरीय समिति
- राज्य स्तरीय निगरानी समिति
ग्राम सभा- ग्राम पंचायत, ग्राम सभा की स्थापना करेगी, ग्राम सभा वन अधिकार समिति का गठन करेगी इस समिति में 10-15 लोग होंगे। ग्राम सभा द्वारा गठित वन अधिकार समिति कानून को लागू करने में ग्राम सभा की सहायता करेगी। ग्राम सभा द्वारा 10-15 लोग इसके सदस्य चुने जाते हैं। इसमें से 2/3 जनजातीय समुदाय से होंगे और जहाँ जनजाति न हों तो अन्य परम्परागत वनवासी सदस्य होंगे। समिति में 1/3 महिला सदस्यों का होना आवश्यक है। अध्यक्ष और एक सचिव भी होंगे।
ग्राम सभा के कार्य (नियम 4)
- वन अधिकारों की प्रकृति और सीमा को निर्धारित करने की प्रक्रिया शुरू करना, उनसे संबंधित दावोंं को प्राप्त करना और उन पर सुनवाई करना,
- वन अधिकारों के दावेदारों की एक सूची तैयार करना और एक रजिस्टर बनाना जिसमें दावेदारों और उनके दावोंं का विवरण हों,
- इच्छुक व्यक्तियों को उचित अवसर देने के बाद वन अधिकार दावोंं पर एक ठहराव प्रस्ताव पारित करना और उन्हें उपखण्ड समिति को भेजना,
- पुनर्वास पैकेज पर विचार करना,
- अपने सदस्यों में से वन्य जीवन, वन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए समितियों का गठन करना,
- ट्रांजिट परमिट जारी करने, उपज की बिक्री से आय के उपयोग या प्रबंधन, योजनाओं के संशोधन से संबंधित समिति के सभी निर्णयों को मंजूरी।
उपखंड स्तरीय समिति – उपखंड स्तरीय समिति में उपखंड अधिकारी (अध्यक्ष), वन विभाग का उपखंड स्तरीय अधिकारी, जनजातीय विभाग का अधिकारी और जिला पंचायत/परिषद के चुने हुए दो सदस्य अनुसूचित जनजाति समुदाय के (और जहाँ अनुसूचित जनजाति नहीं है वहाँ दो सदस्य अन्य परम्परागत वनवासी हो सकते हैं), और एक महिला सदस्य होती है।
उपखंड स्तरीय समिति के कार्य-
- ग्राम सभाओं को जानकारी देना,
- दावोंं पर र्विचार करना, सही पाए जाने पर जिला समिति को भेजना,
- अपील की सुनवाई करना,
- लोगों को जागरूक करना।
जिला स्तरीय समिति – जिला स्तरीय समिति में डिप्टी कमिश्नर/जिलाधीश (समिति अध्यक्ष), जिला स्तर पर डी.एफ.ओ, जनजातीय विभाग का जिला स्तरीय अधिकारी या ए.डी.एम.(अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी), और जिला पंचायत/परिषद के चुने हुए दो सदस्य अनुसूचित जनजाति समुदाय के (और जहाँ अनुसूचित जनजाति नहीं है वहाँ दो सदस्य अन्य परम्परागत वन निवासी हो सकते हैं), और एक महिला सदस्य होती है।
जिला स्तरीय समिति के कार्य-
- दावोंं की जाँच करना कि सभी अधिनियम के अनुसार किये गए है या नहीं ,
- दावोंं का अंतिम रूप से अनुमोदन करना,
- अपील की सुनवाई करना,
- वन अधिकार का पट्टा जारी करना आदि।
राज्य स्तरीय निगरानी समिति – इस समिति में प्रमुख सचिव (समिति अध्यक्ष), सचिव – राजस्व विभाग, सचिव- जनजातीय या सामाजिक कल्याण विभाग, सचिव – वन विभाग, सचिव- पंचायती राज विभाग, मुख्य वनपाल जनजातीय सलाहकार परिषद के तीन अनुसूचित जनजाति सदस्य जिन्हें राज्य सरकार चुनती है एवं कमिश्नर- जनजातीय विभाग या उनके बराबर का कोई अधिकारी- जो इस समिति के सचिव होंगे।
राज्य स्तरीय निगरानी समिति के कार्य-
- वन अधिकारों की मान्यता और प्रदान करने की प्रक्रिया की निगरानी करना,
- मानदंड और संकेतक तैयार करना,
- वन अधिकार देने, निहित करने, दावोंं के सत्यापन की निगरानी करना,
- पुनर्वास की निगरानी करना आदि।
वन अधिकार दावा करने की प्रक्रिया:
वन अधिकार के दावे करने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है –
- एक नियत तारीख पर ग्राम सभा की बैठक बुलाई जाती है।
- ग्राम सभा की बैठक में वन अधिकार के दावे लिए जाते हैं।
- ग्राम सभा एक वन अधिकार समिति का गठन करती है जो ग्राम सभा के समक्ष आये वन अधिकार के दावोंं के सत्यापन में सहायता प्रदान करती है और दावों के साथ आये साक्ष्य, मानचित्र आदि को रिकॉर्ड करती है, दावोंं की पुष्टि करती है, सभी दावोंं की एक सूची बनाती है, और अपने निष्कर्ष ग्राम सभा के समक्ष प्रस्तुत करती है।
- व्यक्तिगत वन अधिकार के दावे के साथ उसके (कोई दो) साक्ष्य प्रस्तुत करने होते हैं।
- समुदायिक वन अधिकार दावोंं का भी साक्ष्य सहित सत्यापन किया जाता है और, जहाँ दो या उससे अधिक ग्राम के सामुदायिक दावोंं में विवाद होता तो उनके समीप के ग्राम सभाओं और उपखंड समिति को सूचित किया जाएगा।
- वन अधिकार समिति सभी दावोंं के समर्थन में साक्ष्य लेती है और उनके सत्यापन के बाद ही उनको लेखबद्ध करके ग्राम सभा को अपनी राय के साथ प्रेषित करती है।
- इसमे निरस्त दावोंं की सूची और स्वीकृत दावोंं की भी सूची बनाई जाती है।
- ग्राम सभा वन अधिकार समिति द्वारा वन अधिकार के दावोंं पर दिए गए निष्कर्ष पर विचार करके उन दावोंं को उप खण्ड स्तरीय समिति को भेजती है।
- फिर राजस्व विभाग एवं वन विभाग उन दावों की पुष्टि करता है और भौतिक सत्यापन करता है,
- अगर ग्राम सभा द्वारा भेजे गए दावों पर उप खण्ड स्तरीय समिति को कोई आपत्ति होती है तो वह उन्हें वापस ग्राम सभा को पुनः पुष्टि करने के लिए भेज देता है और सबसे महत्वपूर्ण बात इसके बाद उन दावों पर ग्राम सभा का जो निर्णय होगा, वही अंतिम निर्णय होगा। जो दावे के सत्यापन के बाद उसे जिला स्तरीय समिति को भेजी जाती है।
- जिला स्तर समिति और उप खण्ड स्तर समिति किसी भी दावे को सीधे निरस्त नहीं कर सकती है, जिला स्तर समिति और उप खण्ड स्तर समिति को यदि किसी भी दावे में कोई आपत्ति तो वह उस दावे को ग्राम सभा को पुर्नवलोकन के लिए भेजती है और इसके बाद ग्राम सभा का निर्णय अंतिम निर्णय होगा।
वन मित्र पोर्टल की प्रक्रिया:
- ग्राम सभा द्वारा ग्राम वन अधिकार समिति का गठन अथवा पुनर्गठन तथा सामुदायिक संसाधनों की पुष्टि करना,
- गठित /पुनर्गठित ग्राम वन अधिकार समिति का ग्राम पंचायत सचिव द्वारा ‘एम पी वनमित्र पोर्टल में पंजीयन,
- दावेदार द्वारा कियोस्क सेंटर से एम. पी. वनमित्र पोर्टल में निशुल्क ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है,
- ग्राम वन अधिकार समिति द्वारा पंजीकृत दावोंं के स्थल सत्यापन हेतु तिथि निर्धारण कर दावेदारों और अन्य संबंधित लोगों को सूचित करना,
- ग्राम वन अधिकार समिति द्वारा निर्धारित तिथि को दावे की भूमि का भौतिक सत्यापन कर, ‘एम.पी. वन मित्र सर्वे’ मोबाइल एप द्वारा नक्शा बनाना और आवेदन तथा साक्ष्यों का सत्यापन करना,
- ग्राम वन अधिकार समिति द्वारा सत्यापन का निष्कर्ष ग्राम सभा में प्रस्तुत करना,
- ग्राम सभा आयोजित कर सत्यापित तथा व्यक्तिगत वन अधिकार दावोंं के सम्बन्ध में ग्राम सभा का ठहराव प्रस्ताव पारित करना,
- ग्राम वन अधिकार समिति द्वारा ग्राम सभा के संकल्प, कार्यवाही विवरण, फोटो,उपस्तिथि पत्रक को एम. पी. वन मित्र पोर्टल में अपलोड करना तथा दावोंं को उपखंड स्तरीय समिति को भेजना,
- उपखंड स्तरीय वन अधिकार समिति द्वारा बैठक करके ग्राम वन अधिकार समिति से प्राप्त दावोंं से सम्बंधित अनुशंसाएं दर्ज कर जिला स्तरीय वन अधिकार समिति को भेजना,
- जिला स्तरीय वन अधिकार समिति द्वारा बैठक आयोजित कर उपखंड स्तरीय वन अधिकार समिति से प्राप्त अनुशंसाओं का परीक्षण, दावोंं पर अंतिम निर्णय करते हुए मान्य या अमान्य करना,
- जिला स्तरीय वन अधिकार समिति द्वारा मान्य किये गए दावेदारों के वन अधिकार पत्र वन मित्र पोर्टल से जनरेट होंगे, जिनकी सॉफ्ट एवं मुद्रित हस्ताक्षरित प्रति दावेदारों को प्रदाय करना।
वन अधिकार दावोंं के लिए ज़रूरी सबूत (नियम 13) निम्नलिखित साक्ष्यों में से कोई दो:
- लोक दस्तावेज, सरकारी अभिलेख जैसे जनगणना, मानचित्र, सर्वेक्षण , सेटेलाइट फोटो, कार्य योजना, प्रबंधन योजना, वन जांच रिपोर्ट, अधिकारों का रिकॉर्ड, पट्टे, सरकार की रिपोर्ट, आदेश, परिपत्र, प्रस्ताव आदि,
- सरकार द्वारा अधिकृत दस्तावेज जैसे मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट, गृह कर रसीद, अधिवास प्रमाण पत्र,
- भौतिक संरचना जैस घर, झोपड़ी और समतलीकरण सहित भूमि में किए गए स्थायी सुधार, बांध, आदि,
- अदालत के आदेश और निर्णय सहित अर्ध-न्यायिक और न्यायिक रिकॉर्ड,
- भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा अनुसंधान अध्ययन, रीति-रिवाजों और परंपराओं के दस्तावेज जो किसी भी वन अधिकारों के उपयोग और प्रथागत कानून को दर्शाते हैं,
- पूर्व रियासतों या प्रांतों या अन्य ऐसे मध्यस्थों से मानचित्र, अधिकारों का रिकॉर्ड, विशेषाधिकार, रियायतें सहित कोई भी रिकॉर्ड,
- प्राचीन समय की पारंपरिक संरचनाएं जैसे कुएं, कब्रगाह, पवित्र स्थान आदि,
- पहले के भूमि अभिलेखों में उल्लिखित व्यक्तियों के लिए वंशावली का पता लगाने या पहले की अवधि में गाँव के वैध निवासी होने के रूप में मान्यता प्राप्त किये हुए,
- दावेदारों के अलावा अन्य बुजुर्गों का लिखित बयान।
सामुदायिक वन संसाधन के लिए आवश्यक दस्तावेज:
- सामुदायिक निस्तार का अधिकार पत्रक।
- पारंपरिक पशु चराई के मैदान, जड़ों और कंदों, चारा, खाद्य फल और अन्य लघु वन उपज को इकठ्ठा करने के क्षेत्र, मछली पकड़ने का स्थान, सिंचाई करने, मानव या पशुओं के उपयोग के लिए पानी के स्रोत, जड़ी बूटियों एवं औषधीय सामग्री, या ऐसी सामग्री लाने के क्षेत्र से सम्बंधित दस्तावेज, आदि।
- स्थानीय समुदाय द्वारा निर्मित संरचनाओं के अवशेष, पवित्र वृक्ष, उपवन और तालाब या नदी क्षेत्र, कब्रिस्तान या श्मशान भूमि आदि।
- संरक्षित वन या गोचर या अन्य गाँव भूमि, निस्तारी वन के रूप में वर्तमान आरक्षित वन के सरकारी रिकॉर्ड या पूर्व वर्गीकरण में विद्यमान वन भूमि का रिकॉर्ड,
- पुरानी या वर्तमान में परंपरागत खेती।
उपखंड समिति के समक्ष अपील:
कोई भी व्यक्ति जो ग्राम सभा के निर्णय से पीड़ित है, ग्राम सभा के निर्णय के 60 दिन के भीतर उपखंड समिति के समक्ष अपील दायर कर सकता है। उपखंड समिति पुर्नर्विचार के लिए ग्राम सभा को रेफ़र कर सकती है, उसके बाद ग्राम सभा 30 दिन के भीतर प्रस्ताव पारित करके वापस उपखंड समिति को भेज देगी, तथा उपखंड समिति प्रस्ताव पर विचार करके उचित आदेश देगी।
जिला समिति के समक्ष अपील:
कोई भी व्यक्ति जो उपखंड समिति के निर्णय से पीड़ित है वह इसके निर्णय के 60 दिन के भीतर जिला समिति के सामने अपील दायर कर सकता है, उसके बाद जिला समिति पुर्नर्विचार के लिए उपखंड समिति को रेफ़र कर सकती है, उपखंड समिति याचिकर्ता एवं ग्राम सभा को सुनकर निर्णय लेगी और जिला समिति को बताएगी। जिला समिति इस पर विचार करके उचित आदेश देगी।
इसके बाद जिला समिति पट्टा प्रदान करेगी या ग्राम सभा के निर्णय के अनुसार अपना आदेश देगी।
इस प्रकार यह वन अधिकार अधिनियम ऐसे वनवासियों के लिए बनाया गया है जो कई वर्षों से वन भूमि पर निवास करते आ रहे हैं या अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर रहते हैं। खास करके यह अधिनियम आदिवासी लोगों को एक बहुत महत्वपूर्ण आधार देता है कि कोई भी उन्हें वन, जो उनका घर है, से नहीं निकाल सके और उनकी आजीविका को सुरक्षित किया जा सके। इसलिए यह हमारा कर्तव्य बनता है कि इस अधिनियम के तहत जिन वनवासी बहनों-भाइयों के दावे नहीं हुए हैं, दावा करने में उनकी मदद करें और वन अधिकारों के बारे में वनवासी समुदाय के सदस्यों को जागरूक करें।