“ମୁଁ ମାଆ ଟେ” | क्यों महुआ तोड़े नहीं जाते पेड़ से?

ଜାକିଣ୍ଟା କେର୍କେଟା :

ମା!
ତୁ ଏମିତି ରାତିସାରା
କାହିଁକି ଅପେକ୍ଷା କରୁଛୁ?
ମହୁଲ ଫୁଲ ଗୁଡ଼ିକ ତଳେ
ପଡ଼ିଲା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ!
ଗଛରୁ ଛିଣ୍ଡାଇ ଆଣି ଦେଉନୁ!

ପ୍ରଶ୍ନ ଶୁଣି ମା କହେ,
ଇଏ ରାତି ସାରା
ଗର୍ଭ ରେ ରହେ
ଜନ୍ମ ସମୟ
ଉପନୀତ ହେଲେ
ସ୍ଵତଃ ପୃଥିବୀ ଉପରେ
ଖସି ପଡ଼ି ପାଦ ଥାପେ ।।

ପରିପକ୍ୱତା ପାଇଁ
ରାତିସାରା
ମାଟି ଉପରେ
ଶିଶିର ରେ ଭିଜି ରହେ
ରାତି ପାହିଲେ
ଏସବୁକୁ ଉଠାଇ ଆଣୁ
ଆମ ଘରକୁ, ଆମ ପାଇଁ!।।

ତେବେ କହ,
ରାତିସାରା ଗଛ ଯେବେ
ପ୍ରସବ ଯନ୍ତ୍ରଣା ରେ ଥାଏ
କେମିତି ତାକୁ
ଜବରଦସ୍ତ ଦୋହଲେଇ ଦେବି
ଛିଣ୍ଡାଇ ଆଣିବି ମୁଁ!
ମା ଟେ ହୋଇ।।

ଏଇଥି ପାଇଁ
ଅପେକ୍ଷା କରେ
କାରଣ ଜୀବନ ବଦଳରେ
ତାକୁ ମୁଁ ବହୁତ ଭଲପାଏ,
କାରଣ ମୁଁ ମାଆ ଟେ।।
(ଜସିଂତା କେରକେଟ୍ଟା ଙ୍କ ଦ୍ଵାରା ରଚିତ
ଏକ ହିନ୍ଦୀ କବିତା ର ଓଡ଼ିଆ ଅନୁବାଦ)

जसिंता केरकेट्टा:

माँ तुम सारी रात
क्यों महुए के गिरने का इंतज़ार करती हो?
क्यों नहीं पेड़ से ही
सारा महुआ तोड़ लेती हो?

माँ कहती है
वे रात भर गर्भ में रहते हैं
जन्म का जब हो जाता है समय पूरा
ख़ुद-ब-ख़ुद धरती पर आ गिरते हैं

भोर, ओस में जब वे भीगते हैं धरती पर
हम घर ले आते हैं उन्हें उठाकर

पेड़ जब गुज़र रहा हो
सारी रात प्रसव पीड़ा से
बताओ, कैसे डाल हिला दें ज़ोर से?
बोलो, कैसे तोड़ लें हम
जबरन महुआ किसी पेड़ से?

हम सिर्फ़ इंतज़ार करते हैं
इसलिए कि उनसे प्यार करते हैं।

उड़िया अनुवाद: प्रफुल्ला मिश्रा

Author

  • जसिंता / Jacinta

    जसिंता केरकेट्टा एक आदिवासी स्वतंत्र पत्रकार और कवि हैं। रांची, झारखंड  की रहने वाली हैं और वह कुरुख / उरांव समुदाय से हैं। कई विदेशी भाषाओं में इनकी कविताओं का अनुवाद किया जा चुका है।

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