साकड़ म.प्र. में आयोजित मज़दूर वर्कशॉप का अनुभव

राजू राम:

साकड़ में बंधुआ मज़दूरी और उसके उन्मूलन के मुद्दे के बारे में समझ बनाने के लिए आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में विभिन्न संगठनों एवं संस्थाओं से लोगों ने हिस्सा लिया।

इस चर्चा में हिस्सा लेने एवं संघर्ष की कहानी अपने शब्दों में बयाँ करने के लिए खुद बंधुआ मज़दूर रह चुके लोगों ने भी भाग लिया और अपनी कहानियाँ बताई। यह बहुत दुख की बात है कि बड़े-बड़े पूंजीपतियों के ठेकेदार इन मज़दूरों को काम एवं ज़्यादा मज़दूरी देने का लालच देकर अपने साथ ले जाते और वहाँ जाकर उनके साथ अत्याचार करते हैं। संघर्ष की इन कहानियों को सुनकर लगा कि आज भी बंधुआ मजदूरी जैसी प्रथाओं का प्रचलन है और मज़दूरों को बिना किसी वेतन के अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। बंधक कर्जे (bondage debt) के कारण वह अपने मालिकों से बचने में असमर्थ होते हैं। उनके साथ शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण भी किया जाता है, और उन्हें बिना किसी ब्रेक के लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता हैं। 

प्रवासी श्रमिकों को अक्सर ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जहाँ वे स्थानीय भाषा या रीति-रिवाजों से परिचित नहीं होते हैं और ना ही उनके नियोक्ता या ठेकेदार संवेदनशील होते हैं। इन सभी तरह के अमानवीय व्यवहार को सुनकर ऐसा लगा कि इस समाज में कोई क़ानूनी व्यवस्था है ही नहीं और अराजकता फैली हुई है। विकास की सारी बातें सिर्फ एक जुमला हैं और मज़दूरों की वास्तविक स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।

लेकिन पश्चिम भारत मज़दूर एकता मंच जैसे कुछ सामाजिक संगठनों के अथक प्रयासों ने कई मज़दूरों को बंधुआ मज़दूरी के चंगुल से बाहर निकाला है और उनके जीवन को बेहतर बनाने के अवसर प्रदान किए हैं, जो काफी सराहनीय है।

इस वर्कशॉप के दौरान श्रम कानूनों पर एक सत्र था जिसमें पांच कानूनों पर संक्षेप में चर्चा की गई-

1.     अंतर्राज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम

2.     बंधुआ मज़दूरी (उन्मूलन) अधिनियम

3.     न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम

4.     एससी/एसटी (अत्याचार निषेध) अधिनियम

5.     कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम

मज़दूरों के पलायन के मुद्दे पर चर्चा के दौरान ये बात स्पष्ट हुई कि पलायन का सबसे बड़ा कारण बेरोज़गारी एवं उचित वेतन नहीं मिलना है। बेहतर रोज़गार के अवसरों और मज़दूरी की तलाश में श्रमिक अक्सर अपने घर, गाँव, शहर छोड़ देते हैं। इस विषय को और जानने के लिए निम्नलिखित तीन प्रश्नों पर विचार-मंथन करने के लिए एक सामूहिक गतिविधि की गई:

1.     पहला सवाल था कि प्रवासी मज़दूरों का रिकॉर्ड कैसे रखा जाएँ। इस प्रश्न के उत्तर में, प्रतिभागियों ने सुझाव दिया कि प्रवासी श्रमिकों के बारे में आंकड़े एवं जानकारी रखने के लिए सभी ग्राम पंचायतों में एक ग्राम प्रवास रजिस्टर (village migration register) होना चाहिए। इस रजिस्टर में श्रमिक का नाम, जो उसके साथ जाने रहे हैं उनके नाम, उसके आश्रित, वो काम के लिए कहाँ जा रहे हैं, उन्हें कौन ले कर जा रहा है, अग्रिम राशि कितनी दी, किस प्रकार का काम कराया जायेगा, काम करने की अवधि क्या होगी इत्यादि जानकारी शामिल हों। एनजीओ (गैर सरकारी संस्था) या अन्य संस्थाओं को प्रवासी श्रमिकों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गाँवों का सर्वेक्षण भी करना चाहिए, और स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रवासी श्रमिकों आदि के रिकॉर्ड को बनाए रखना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

2.     दूसरा सवाल यह था कि स्रोत और गंतव्य दोनों जगहों पर प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिए विभिन्न संस्थाएं, सरकार को क्या सुझाव दे सकती हैं। सुझावों में सरकार को श्रमिकों के लिए उचित और पर्याप्त मज़दूरी सुनिश्चित करना, प्रवासी मज़दूरों के बच्चों के लिए आवासीय शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करना, उचित कानूनी सहायता प्रदान करना सुनिश्चित करना और श्रम कानूनों का कड़ाई से पालन करना आदि शामिल थे।

3.     तीसरा प्रश्न यह था कि श्रमिकों के पलायन को कैसे रोका जा सकता है। प्रतिभागियों ने स्वयं सहायता समूहों की मदद से रोज़गार के वैकल्पिक स्रोत बनाने और श्रमिकों को ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त, प्रवासी मज़दूरों के बच्चों को आवासीय शिक्षा प्रदान करना, रोज़गार गारंटी योजनाओं के तहत रोज़गार प्रदान करना, नरेगा के तहत दिनों की संख्या और मज़दूरी को बढ़ाना, स्वरोज़गार को बढ़ावा देना और श्रमिको की सहायता करना, श्रमिकों को कौशल विकास हेतु प्रशिक्षण देना और काम के लिए न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाना आदि संभावित समाधान के रूप में सुझाए गए थे।

वर्कशॉप के दौरान यह महसूस हुआ कि मज़दूर वर्ग के लोगों को, खासकर जो मज़दूर असंगठित कामगारों की श्रेणी में आते हैं, उनमें उनके अधिकारों की समझ कम है। क़ानूनी प्रक्रिया एवं ऐसे मुद्दों को हल करने की प्रणाली के बारे में कम समझ है तो सरकार, एवं सामाजिक संस्थानों को आगे आकर ज़्यादा से ज़्यादा मज़दूरों को उनके अधिकारों एवं सम्बंधित क़ानूनी प्रक्रिया की जानकारी व इससे जुड़ी विभिन्न सहायता देने की आवश्यकता है।   

बंधुआ मज़दूरी के उन्मूलन और प्रवासी श्रमिकों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए कार्यशाला ने मुझे एक नई उर्जा दी। यह आंखें खोलने वाला एहसास था कि मैं भी मज़दूर एकता को बढ़ावा देने और श्रमिकों के अधिकारों का समर्थन करने में भूमिका निभा सकता हूँ। मैंने सीखा कि श्रमिक यूनियनों या संघों के गठन से श्रमिकों को अपने अनुभवों और शिकायतों को साझा करने, अधिकारियों के साथ सामूहिक रूप से अपनी चिंताओं को साझा करने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक मंच तैयार करने में मदद मिल सकती है।

मैंने यह भी महसूस किया कि जागरूकता अभियानों से श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में सूचित किया जा सकता है। और उनको एकजुट कर संगठित कर सकते हैं ताकि कठिन समय में एक-दूसरे के लिए खड़े हों और अपने अधिकारों और हितों की बेहतर ढंग से सुरक्षा कर सके।

इसके अलावा यह बात भी मेरे दिमाग में बार-बार आती रही कि सामाजिक संस्थाएं, श्रमिकों के बीच एकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ उनको क़ानूनी सहायता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। और यह एकता एवं क़ानूनी सहायता न केवल उनके कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि सभी के लिए न्यायपूर्ण कार्य वातावरण सुनिश्चित करके देश के समग्र विकास में भी योगदान दे सकती है।

संक्षिप्त में अगर बात रखूं तो मेरा अनुभव काफी अच्छा रहा, नये लोगों से बात करने का अवसर मिला, नई जानकारी मिली, सबसे महत्वपूर्ण मज़दूरों की दशा और उनके संघर्ष के बारे में जानने का अवसर मिला। इस कार्यशाला ने मुझे बंधुआ मज़दूरी की कठोर वास्तविकता और इसे खत्म करने के लिए मिलकर काम करने के महत्व और जरूरत के बारे में सिखाया।

Author

  • राजू राम / Raju Ram

    राजू ,राजस्थान के जोधपुर ज़िले से हैं और व्हाई.पी.पी.एल.ई. (YPPLE) के तौर पर सामाजिक न्याय केंद्र के साथ जुड़े हैं। वर्तमान में राजू मध्य प्रदेश में जेनिथ सोसायटी फॉर सोशियो लीगल एम्पावरमेंट संगठन के साथ कार्य कर रहे हैं। वह बास्केटबॉल खेलना एवं किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

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